पहले कोरोना अब डिजिटल जासूसी से चीन ने अपना कहर बरसाना शुरू कर दिया है। चीनी कंपनी द्वारा सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से लेकर बड़े अपराधियों की डिजिटल कुंडली बनाए जाने के बड़े खुलासे से पूरे देश में तूफान आ गया है। हाल ही में भारतीय मीडिया ने खबर छापी कि चीन जासूसी कर रहा है। हालांकि यह कोई नया विषय नहीं है और ना ही ऐसा है कि दुनिया में चीन ही ही पहला देश है जो जासूसी करने लगा है। प्रत्येक देश की कूटनीति का एक आवश्यक अंग जासूसी है। जासूसी करने के अनेक उद्देश्य होते हैं- जैसे
1) राज्य की सुरक्षा के लिए
2) प्रशासनिक मजबूती के लिए
3) आर्थिक हितों के लिए
4) राज्य विस्तार के लिए
5) अन्य देशों में हस्तक्षेप के लिए
6) संभावित नीतियों निर्णयों का पता लगाने के लिए और स्वयं को उसके अनुरूप परिवर्तित करने नहीं चाहता है, जासूसी है । गुप्तचरी का पुराना पारंपरिक तरीका विपक्षी के साथ गुके लिए दूसरों की नीतियों निर्णय को बदलने के लिए जासूसी की जाती है।
किसी व्यक्ति समुदाय या राष्ट्र के बारे में उसे बिना बताए वह सब जानना जो वह उजागर करना प्तचर का व्यक्तिगत भौतिक रूप से साथ रहकर भेद जानना है। जैसे जैसे तकनीकी बढ़ी वैसे वैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग होने लगा। दूरबीन का उपयोग, वाइस रिकॉर्डर, छुपे हुए कैमरे इत्यादि। अनेक देशों ने सेटेलाइट से निगरानी करना प्रारंभ किया। तकनीकी बढ़ती गई तरीके बदलते गए। आज साइबर दुनिया में हैकिंग, बिगडाटा चोरी के माध्यम से जासूसी होने लगी है।
ऑपरेशन प्रिज्म के माध्यम से 14 साल पहले अमेरिका ने भारत की सुरक्षा में सेंध लगाई थी उस मामले का खुलासा करने वाले नॉर्दन को अमेरिका से भागना पड़ा था। कैंब्रिज एनालिटिका फेसबुक के माध्यम से भारत की चुनावी व्यवस्था में हस्तक्षेप की कोशिश की गई थी। पेगासस-व्हाट्सएप मामले में प्राइवेसी में दखलंदाजी के आपराधिक साक्ष्य मिलने के बावजूद सरकार और विपक्ष दोनों मोन ही बने हैं।
सस्ता डाटा, इंटरनेट और स्मार्टफोन के विस्तार से भारत डाटा का वैश्विक महासागर बन गया है।
लोगों का नाम, फोटो, ईमेल, मैसेज, वीडियो, मोबाइल नंबर और लोकेशन का डाटा डिजिटल मंडी में कौड़ियों के भाव नीलाम हो रहा है। डाटा माइनिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से विदेशी कंपनियों ने भारत के बाजार और सामरिक तंत्र में पूरा कब्जा कर लिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इसका सबसे सरल माध्यम बनते जा रहे हैं।
खबर यह है कि चीन स्थित डाटा कंपनी दुनिया के लगभग 24 लाख लोगों से जुड़े डिजिटल डाटा चोरी छिपे जमा कर निगरानी कर रही है। उसने यह स्वीकार किया है कि वह यह काम चीन की सरकार और चीनी सेना के लिए कर रही है। वास्तव में यह न केवल चौंकाने वाली खबर है बल्कि चिंता का विषय भी है। विश्व को सावधान होने की आवश्यकता है। भारत को विशेष रुप से चौकन्ना रहने की आवश्यकता है, क्योंकि अनेक अवसरों पर चीन से हमने धोखा खाया है। चीन की विस्तारवादी नीति को देखते हुए भारत सरकार को इसके लिए सख्त कदम उठाने चाहिए और स्पष्ट कानून बनाने चाहिए। स्पष्ट कानूनों के अभाव में डाटा चोरी रोकना संभव नहीं हो रहा है। साइबर सिक्योरिटी को ठीक करना चाहिए इसके लिए हमें तकनीकी रूप से सक्षम होना होगा।
पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट और ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट जैसे कानून की वजह से सरकारी कार्यों में विदेशी ईमेल और नेटवर्क के इस्तेमाल पर कानूनी प्रतिबंध है। किंतु इसका पालन बहुत कम होता है।
भारत में इस्तेमाल हो रहे तीन चौथाई फोन चीनी है। जो डिजिटल जासूसी का सबसे बड़ा माध्यम है।
चीनी कंपनी ने सूचनाओं को हासिल करने के लिए फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप, टिक टॉक, गूगल, लिंकेडीन जैसे प्लेटफार्म का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया है।
चीन यह सब कुछ हाइब्रिड युद्ध के अंतर्गत कर रहा है। आधुनिक तकनीकी युग में सेना उतारे बिना दुश्मन को बर्बाद करने की योजना जिसमें डिजिटल डाटा का उपयोग किया जाए हाइब्रिड युद्ध कहलाता है।
1999 में चीन के कर्नल किआओ लियांग और कर्नल बांग ने “प्रतिबंधित युद्ध” नामक किताब लिखी जिसमें हिंसा को सेना से हटाकर राजनीतिक आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में ले जाने पर जोर दिया। उन्होंने इसे हाइब्रिड वार फेयर कहा। इसके हथियार आम आदमी से जुड़े होते हैं। आम आदमी की सामान्य जानकारी उनका हथियार है।
चीन लगभग चार दशकों के जासूसी कर रहा है। ऐसा बताया जाता है कि भारत के पूर्व पांच प्रधानमंत्री, 40 वर्तमान और पूर्व के मुख्यमंत्री, 350 सांसद, 460 राजनेताओं के करीबी रिश्तेदार तथा 700 राजनेताओं पर सीधी नजर रखे हुए हैं। कुल मिलाकर भारत में 10000 लोगों की डाटा डाटा चोरी की जा रही है।
साइबर जासूसी के माध्यम से ही रूस ने क्रीमिया जैसे बड़े इलाके पर कब्जा किया और 2014- 15 में उसका विलय कर लिया। इसी प्रकार चीन ने साइबर जासूसी के द्वारा ही हांगकांग में हो रहे लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला।
ब्रेकसिट का जनमत संग्रह और 2016 के अमेरिकी चुनावों में सोशल मीडिया कंपनियों के माध्यम से रूस ने व्यापक हस्तक्षेप किया भारत में अनेक पार्टियों की सोशल मीडिया कंपनियों के साथ सांठगांठ के सबूत भी यदा-कदा उजागर होते हैं।
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव के पश्चात चीनी ऐप पर भारत ने प्रतिबंध तो लगाया है किंतु अभी भी हम जासूसी से सुरक्षित है ऐसा नहीं कहा जा सकता। अतः भारत सरकार को इसकी और ध्यान देना चाहिए।
चीनी सरकार के एक निजी सुरक्षा कॉन्ट्रैक्टर द्वारा भारत में बड़े पैमाने पर सर्विलांस कार्यक्रम चलाने के आरोपों के बीच, अब केंद्र सरकार ने मामले की जांच करने के लिए एक समिति का गठन किया है।
मनमोहन पुरोहित
मनुमहाराज
7023078881
फलोदी, राजस्थान