नई दिल्ली : राष्ट्रपति भवन की तरफ से अभी हाल में दो नए राज्यपालों की नियुक्तियां की गई हैं. इसके अनुसार, ओडिशा में प्रोफेसर गणेशी लाल को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया है, वहीं कुम्मानम राजशेखरन को मिजोरम का राज्यपाल बनाया गया है. के राजशेखरन लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) निर्भय शर्मा की जगह लेंगे. लेकिन के राजशेखरन की नियुक्ति पर मिजोरम में बवाल मचा हुआ है.
मिजोरम में उनकी नियुक्ति को क्रिश्चयनिटी के लिए खतरा बताया जा रहा है. मिजोरम में दो संगठन ग्लोबल काउंसिल ऑफ इंडियन क्रिश्चियंस और पीपुल्स रिप्रजेंटेशन फॉर आइडेंटिटी एंड स्टेटस ऑफ मिजोरम (PRISM) नाम के संगठन ने इसके खिलाफ बाकायदा आंदोलन छेड़ दिया है. PRISM की मिजोरम शुरुआत एक एनजीओ के रूप में हुई थी. 2017 में इसने राजनीतिक दल की शक्ल ले ली. अब ये संगठन मिजोरम के नए राज्यपाल की नियुक्ति का इसलिए विरोध कर रहा है, क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं.
PRISM अध्यक्ष वनलालरुआता के राजशेखरन के राज्यपाल बनने पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि हम सभी जानते हैं कि के राजशेखरन को हमारे राज्य मिजोरम का नया राज्यपाल बनाया गया है. सभी जानते हैं कि वह एंटी सेक्युलर हैं. वह आरएसएस और वीएचपी के कार्यकर्ता रह चुके हैं. हम सभी जानते हैं कि वह एंटी क्रिश्चियन हैं.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक वनलालरुआता ने इस नियुक्ति की आलोचना करते हुए कहा, हम एक क्रिश्चियन स्टेट हैं. वह आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं. इस साल के आखिर में मिजोरम में चुनाव होने हैं. हमें इस बात में कोई शक नहीं है कि भाजपा ने इसीलिए उनकी नियुक्ति की है. अगर वह वहां होंगे, तो भाजपा उनका इस्तेमाल करेगी.
PRISM ने नए राज्यपाल की नियुक्ति का विरोध करने के लिए मिजोरम के सभी चर्च, पार्टियों और एनजीओ को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने आम लोगों से भी अपील की है कि वह नए राज्यपाल का विरोध करें. हालांकि सोशल मीडिया पर इस विरोध के खिलाफ भी गुस्सा फूट पड़ा है. इसका कारण है PRISM द्वारा मिजोरम को एक क्रिश्चयन स्टेट कहना.
PRISM का आरोप है कि नियुक्त किए गए नए राज्यपाल आरएसएस और वीएचपी के अलावा हिंदू एक्य वेदी के कार्यकर्ता रहे हैं. इसके अलावा वह नीलाक्कल एक्शन काउंसिल के संयोजक भी रह चुके हैं. इस संगठन पर 1983 में हिंदू ईसाइयो के बीच हुए उपद्रव को भड़काने का आरोप है.