Saturday, November 23, 2024
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चर्च बना अय्याशियों का अड्डा, आर्क विशप ने माफी मांगी

पोलैंड के एक कैथोलिक चर्च में 300 बच्चों के यौन शोषण का मामला सामने आया है। सोमवार (जून 28, 2021) को नाबालिगों के शोषण को लेकर जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 1958 से लेकर 2020 तक करीब 292 पादरियों ने 300 बच्चों का यौन शोषण किया। इनमें लड़के और लड़कियाँ, दोनों ही शामिल थे। 2018 के मध्य से लेकर 2020 तक इनमें से कई हालिया मामलों की शिकायत चर्च प्रशासन से भी की गई।

कई पीड़ितों, उनके परिवारों और पादरियों के अलावा मीडिया और सूत्रों के हवाले से ये रिपोर्ट तैयार की गई है। हाल ही में वॉरसॉ में पोलैंड के कैथोलिक चर्च के मुखिया आर्कबिशप वोजसिक पोलाक ने पीड़ितों से माफ़ी माँगते हुए कहा कि आशा है कि वो पादरियों को क्षमा कर देंगे। उन्होंने बताया कि वो पहले भी माफ़ी माँग चुके हैं। कुल मिला कर चर्च को 368 बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट सौंपी गई है।

इनमें से 144 मामलों को तो वेटिकन के ‘कॉन्ग्रिगेशन ऑफ डॉक्ट्रिन ऑफ फेथ’ ने भी शुरुआती जाँच में पुष्ट माना है। 368 में से 186 की अभी भी जाँच की जा रही है। हालाँकि, वेटिकन ने इनमें से से 38 मामलों को फर्जी मान कर उन्हें नकार दिया है। यौन प्रताड़ना के इन मामलों की जाँच कर रहे अधिकारी ने बताया कि उनके पास कई रिपोर्ट्स आई हैं। इस तरह की पिछली रिपोर्ट मार्च 2019 में जारी की गई थी।

इससे पहले चर्च की जो पहली रिपोर्ट आई थी, उसमें 1990-2018 के बीच के मामलों के बारे में बताया गया था। इस दौरान करीब 382 पादरियों द्वारा 625 नाबालिग बच्चों का यौन शोषण किया गया। ताज़ा रिपोर्ट में केवल उसके बाद खुलासा हुए मामलों को ही शामिल किया गया है। इनमें से 42 यौन शोषक पादरी ऐसे हैं, जिनके नाम पहली रिपोर्ट में भी दर्ज थे और उनके नाम दूसरी रिपोर्ट में भी मौजूद हैं।

पोलैंड एक कैथोलिक राष्ट्र है, जहाँ पादरियों को विशेष छूट एवं सुविधाएँ मिलती हैं। ऐसे में वेटिकन वहाँ आए इस तरह के मामलों की जाँच कर रहा है। वेटिकन ने इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए अपने कुछ पदाधिकारियों को आधिकारिक समारोहों से दूर कर दिया है और उन पर कार्रवाई की है। दक्षिण-पश्चिमी पोलैंड के एक पादरी ने इस्तीफा भी दिया है, जिसे पोप फ्रांसिस ने स्वीकार कर लिया है।

पोलैंड में विदेशी शासन के दौरान कैथोलिक चर्च ने वहाँ राष्ट्रवाद की अलख जगाए रखी थी, ऐसा लोगों का मानना है। इसीलिए, वहाँ की सरकार और समाज के मन में उसके लिए खास प्रतिष्ठा का भाव है। 1989 में वहाँ कम्युनिस्ट शासन ख़त्म हुआ था। उससे पहले भी चर्च कम्युनिस्ट विरोधी गतिविधियों में सक्रिय था। हालाँकि, हाल के दिनों में चर्च का झुकाव ईसाई कट्टरपंथी ताकतों की ओर बढ़ा है, जिससे युवा उससे दूर हुए हैं।

साभार- https://hindi.opindia.com/ से

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