हम भारत के लोग, किसान अपने संविधान का सम्मान करते है। हमारा संविधान जब लागू हुआ था, तब हमारा संवैधानिक संकल्प था- ‘‘आजाद भारत धीरे-धीरे समता की तरफ बढ़ेगा।’’ हमनें इस संकल्प को निभाने के लिए अभी तक बहुत प्रयास किए है। उन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, आजादी के समय हम मजदूर किसान और जमीनदार होते थे। अब हम केवल ‘किसान’ है। अब हमारी अपनी जमीन है, इसलिए आजादी के बाद, हमारा वर्ग-भेद मिटा और जमीनदारी, किसानी तथा मजदूरों की जातियाँ टूटी। आज खेत में काम करने वाला हर इंसान अपने को किसान कह सकता है। यह अधिकार हमें हमारे संविधान ने ही दिया है।
किसानी के 75 सालों की यात्रा के बाद, अब हमें फिर से उद्योगपतियों के अधीन करने के लिए, श्रम के सारे उत्पादनों का कोई एक व्यक्ति को भंडारण करने का अधिकार मिल जाए तो, वह हमारा जमीनदार नहीं, बल्कि हमारे ऊपर राज करने वाला तथा अपने कोडे़ से खेती कराने वाला बन जाऐगा। हम किसान है। किसी के कोडे़ से खेती करना नहीं चाहते। दोबारा से गुलाम भी नहीं बनना चाहते। इसलिए हम हमारी राजधानी दिल्ली के चारों तरफ उसे घेरकर शांतिमय तरीके से बैठे है। शांति और सब्र से लड़ने की सीख हमें भगवान राम व महात्मा गांधी से मिली है। हम शांतिमय सत्य को बचाने के लिए जब तक हमारे सत्य का आग्रह पूरा नहीं होगा, तब तक हम अपनी राजधानी को नहीं छोड़ेंगे।
पंजाब की धरती से शुरू हुआ भारत भर के लोगों का आंदोलन, अब भारत के सभी राज्यों में शुरू हो गया है। दिसम्बर में ही 27 राज्यों में इस आंदोलन के समर्थन में किसानों के साथ-साथ महात्मा गांधी को मानने वाले, जलवायु परिवर्तन संकट को जानने वाले सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने एक दिन का उपवास रखकर यह संदेश दिया था कि, उत्तर भारत से आरंभ होने वाला यह आंदोलन हम पूरे भारत के लोगों का अपना आंदोलन है। आंदोलन ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने का अवसर दिया है। आंदोलन की शुरूआत भले ही किसान के श्रम का सम्मान पाने के ‘लाभ’ से हुई है। परंतु यह भारत के शुभ् की चिंता रखने वाले संविधान के सिद्धांतो की पालना कराने के लिए है। भारत सरकार को समतामूलक संविधान का सम्मान करना ही पड़ेगा।
जनवरी 2021 में आते-आते इस आंदोलन ने भारत भर में यह चेतना जगा दी कि, कृषि के लिए बने तीन नए कानून केवल किसानों की श्रमनिष्ठा पर हमला नहीं है। ये भारत की खेती-संस्कृति को नष्ट करने वाले है। जो खेती भारत के लोक का पालन करती रही है, वह खेती अब उद्योगपतियों के लिए ही केवल कमा कर देगी। भारतीय संविधान तो सबके समान शुभ की चिंता करता है, इसलिए यह किसानों के द्वारा शुरू हुआ आंदोलन अब उन सबको भी समझ में आने लगा है, जो बाजार के लूटने वाले चरित्र को पहचानते है। उपभोक्ता और उत्पादनकर्त्ता को अलग-अलग करने हेतु उद्योगपतियों को सब कुछ करने हेतु सबल बनाने वाले कृषि कानून है।
उद्योगपति और व्यापारी का कभी कोई अपना देश नहीं होता है, उसका कोई अपना संविधान भी नहीं होता है। उसके जीवन का साध्य केवल ‘लाभ्’ कमाना ही है। वह अपने लाभ को सुनिश्चित करने हेतु नए कानून बनवाता और बनाता है। ये कानून, राजतंत्र में भी व्यापारियों को संरक्षण करने लगते है, तब वहाँ अन्याय, अत्याचार और असमानता ही बढ़ती है। हमारा संविधान तो हम भारत के लोगों को न्याय प्रदान करने हेतु समता के रास्ते पर चलाने वाला है। ये तीनों कृषि कानून भारत में गैर-बराबरी लाने वाले है अर्थात ये भारत के लोगों को समता की तरफ जाने से रोकते है।
किसान आंदोलन ने अभी तक अपने-आप को शांतिमय अनुशासित बनाकर, अहिंसात्मक सत्याग्रह का रास्ता ही पकड़ा है। इसी रास्ते से भारत के संविधान को सम्मान मिलेगा। क्योंकि भारतीय संविधान का सृजन करने वाले भारत के जन और लोक नायकों ने, अपने जीवन भर हिंसक सरकार से, अहिंसामय तरीके से लड़कर जीत हासिल की थी। उसी जीत से हमारे संविधान का सृजन हुआ। इसलिए हम अपने संविधान को सम्मान देने हेतु खेती करने वाले किसान संकल्पित है।
हम किसान जहाँ भी है, जैसे भी है, जो भी कुछ कर रहे है, वह भारत में अपनी आजादी बचाये रखने के लिए किसान आंदोलन यज्ञ में जैसे भी, जहाँ से भी संभव हो रहा है अपनी आहुती देने का काम कर रहे है। किसान आंदोलन को दी हुई आहुती व्यर्थ नहीं जाऐगी। हम भारत के लोग किसान-मजदूर सभी एक होकर संविधान को सम्मान दिलायें। 4 दिन के बाद हमारे संविधान का स्थापना दिवस हैं। इस गणतंत्र दिवस को हम सब शांतिमय तरीके से एक बनकर मनाऐं। यही दिन है जिस दिन हमारी आजादी को अक्षुण रखने वाला संविधान हमारे देश में लागू हुआ था। इसलिए अपने संविधान को आनंद व उत्सव से सम्मान देने हेतु गणतंत्र दिवस 2021 मनायें।