भारत में बच्चों की गुमशुदगी की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आज स्थिति यह है कि देश में हर पांच मिनट में कहीं न कहीं से एक बच्चे को गायब कर दिया जाता है। इनमें से लगभग 40 फीसदी का कोई अता-पता नहीं चल पाता है। अगर बच्चे देश के भविष्य हैं, तो सोचना ही होगा कि बच्चे गुम होते रहे तो देश का वह आने वाला कल भी क्या अंधेरी गलियों में गुम नहीं हो सकता है ? याद रहे कि इन्हीं बच्चों के लिए नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है जैसे तराने भी इसी धरती पर गूंजे हैं। अब आप ही बताइये कि खो जाने वाले या गुम कर दिए जाने वाले गुमसुम बच्चे आखिर कैसे कहेंगे – मुट्ठी में है तक़दीर हमारी। बेबस बच्चे भला अपनी किस्मत को बस में करने का ऐलान कैसे कर सकते हैं ?
बच्चों की गुमशुदगी, बच्चों और उनके माता-पिता व परिजनों के साथ ऐसा घिनौना और यातनामय अपराध है जिसे किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये। गुमशुदा बच्चों में ज्यादातर झुग्गी-बस्तियों, विस्थापितों, रोजगार की तलाश में दूर-दराज के गाँवों से शहरों में आ बसे परिवारों, छोटे कस्बों और गरीब व कमजोर तबकों के बच्चे होते हैं। चूँकि ऐसे लोगों की कोई ऊँची पहुँच, जान-पहचान या आवाज नहीं होती इसलिये समाज उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता हैं।
बचपन वह अवस्था है जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का आनन्द लिया जाता है। नन्हे होंठों पर फूलों सी खिलती हँसी, शरारत, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना ये सब बचपन की पहचान है। सच कहें तो बचपन ही वह वक्त होता है, जब हम दुनियादारी के झमेलों से दूर रहते हैं। गुजरा हुआ बचपन कभी लौटकर नहीं आता। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आज आपके बच्चों का वो बेखौफ बचपन कहाँ खो गया है? हर वक्त बच्चों की सुरक्षा का सवाल मुँह बाए खड़ा रहता है। जरा सोचें तो सही कि मुस्कुराहट के बजाय इन नन्हे चेहरों पर बेबसी, उदासी और तनाव क्यों है?
अगर समाज और पुलिस की मुश्तैदी से बच्चों का चुराया जाना रोका जा सके तो ऐसे अनेक अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। विडम्बना इतनी ही नहीं है के बच्चे गुम हो रहे हैं, त्रासदी यह भी है कि अनगिन ऐसे बच्चे भी हैं जिनका बचपन ही गुम हो गया है। ये काम पर जाने वाले बच्चे हैं। लिहाज़ा, बच्चों की गुमशुदगी के साथ-साथ बचपन की नामौजूदगी की दोहरी चुनौती हमारी व्यवस्था के सामने है। इस चुनौती से मुंह फेरना एक ऐसे इतिहास में खुद को दर्ज़ करने की तैयारी है जो हमें कभी माफ़ नहीं करेगा। हम याद रखें कि बच्चे बचेंगे तो देश बचेगा और बचपन बचेगा तो देश संवरेगा। बशीर बद्र साहब ने क्या खूब कहा है –
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
इसलिए गुम बच्चों और बचपन की थोड़ी खबर लें और कह दें पूरी तसल्ली से – जियो जीतने के लिए।
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