नए वर्ष का स्वागत हम और हमारे निर्माता इस सोच और संकल्प के साथ करें कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। हमें नीतियां ही नहीं नियम भी बदलने है और इसी दिशा में मोदी सरकार जुटी है। नोटबंदी के बाद एक और अच्छी शुरूआत के रूप सरकार ने बेनामी संपत्ति के खिलाफ कानून को ज्यादा धारदार बना दिया है और वह उसे जल्द लागू करने के लिये तत्पर है।
विषमता की स्थितियों को आखिर कैसे मिटायें जबकि घर, समाज एवं देश में छिपी बुराइयां को दूर करने के लिये अपने आंगन में दीया जलाने से पहले ही हम यह सोचने लगें कि इसका प्रकाश तो पड़ोसी के घर-आंगन तक भी पहुंचेगा? ईमानदार प्रयत्नों का सफर कैसे बढ़े आगे जब शुरुआत में ही लगने लगे कि जो काम मैं अब तक नहीं कर सका, भला दूसरों को भी हम कैसे करने दें? प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के संकल्प और मिशन को असफल बनाने में विपक्ष एवं राजनीतिक दलों ने ऐसा ही तो किया है। भला भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर कैसे नियंत्रण होगा?
आज देश में नकारात्मक सोच वाले लोग ज्यादा है। यही कारण है कि जब भी कोई परिवर्तन की बात होती है, कुछ नया करने का कोई साहस दिखाता है, समस्याओं से मुक्ति के लिये प्रयत्न किये जाते हैं और कोई शंकर बनकर समस्याओं का गरल पीने का प्रयास करता है तो दुःशासन, दुर्योधन, जरासंध, कंस जैसी शक्तियां अच्छाई को स्थापित नहीं होने देती। इस प्रकार का नकारात्मक दृष्टिकोण आदमी को दुःखी बनाता है और यही कारण है कि सात दशक की आजादी के बावजूद हमारे दुःख आज भी कायम है। शिव अगर विष का पान नहीं करते तो क्या उनको कल्याणकारी अधिष्ठाता की संज्ञा प्राप्त हो पाती? विधायक दृष्टिकोण से ही व्यक्ति मसीहा बन सकता है और स्वस्थ समाज का सृजन कर सकता है। इस समाज एवं देश में जहां-जहां जो शक्तियों सृजन और निर्माण में जुटी हैं, उन्हें हमें प्रोत्साहन देना ही होगा और यही हमारे नये वर्ष का संकल्प होना चाहिए।
भ्रष्टाचार एवं कालेधन के खिलाफ जंग ने अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरा करने की ठानी है। हमें नये वर्ष का स्वागत करते हुए ये जंग और ऐसी ही अन्य जंगों के लिये तैयार होना होगा। यह हमारे युग की एक बड़ी सकारात्मक पहल है। जबकि कुछ स्वार्थी लोग इस जंग में तमाशाई बनकर ईमानदार लोगों को भड़काने की मुहिम में लगे हुए है। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा। एक बात और समझी जानी चाहिए कि स्वतन्त्र भारत के इतिहास का यह सबसे साहसिक फैसला नरेन्द्र मोदी ने न अपनी पार्टी और न अन्य किसी संगठन या क्षेत्र के लाभ के लिए लिया था। यह फैसला पूरी तरह गैर-राजनीतिक और विशुद्ध रूप से संतुलित एवं समतामूलक समाज निर्माण के संकल्प से जुड़ा है। जो इस मुल्क के ‘गरीबों’ को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए लिया गया था।
इस फैसले की चपेट में तो कालाधन बनाने वाले सभी लोग एक सिरे से आ रहे थे, चाहे उनकी पार्टी कोई भी हो और उनका मजहब कोई सा भी हो किन्तु श्री मोदी पर चैतरफा हमला इसलिए किया गया कि श्री मोदी यदि यह लड़ाई जीत गये तो विरोधियों की हैसियत न राजनीति में रहेगी और न समाज में। होना भी यही चाहिए। राजनीति के शुद्धिकरण के लिये यह जरूरी है।
एक कल्याणकारी सरकार वही हो सकती है जिसकी नियत एवं नीतियां साफ-सुथरी हो। आजादी के बाद से ही हर सरकार इसकी दुहाई देती रही है। लेकिन ‘नीयत’ में खोट की वजह से ही तो गांवों और गरीबों के पास एक रुपए में से केवल पन्द्रह पैसे ही पहुंच पाते थे और बीच में दलाली खायी जाती रहती थी। इस लम्बे समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने का बीड़ा किसी को तो उठाना ही था। अगर नरेन्द्र मोदी ने यह बीड़ा उठाया है तो कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं के पेट में दर्द क्यों हो रहा है? अक्सर देखने में आता है कि कुछ व्यक्तियों की मनोवृत्ति दोहरी होती है। वे अपने बारे में सकारात्मक नजरिया रखते हैं और दूसरों के बारे में निषेधात्मक दृष्टि का उपयोग करते हैं। जिन लोगों का दृष्टिकोण विधायक नहीं होता, वे जीवनभर दूसरों की कमियां निकालते रहते हैं। पर जो व्यक्ति विधायक दृष्टिकोण वाले होते हैं, वे अपनी और पराई सभी कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ऐसा करने से ही मानव समाज की तस्वीर सुंदर बन सकती है।
विश्व की एक बड़ी कंपनी के मालिक से पूछा गया कि आपकी सफलता का राज क्या है? मालिक ने कहा-‘सकारात्मक दृष्टिकोण।’ वस्तु और व्यक्ति के हर पहलू को देखा जाए तथा सही दिशा चुनी जाए तो सफलता मिलते देर नहीं लगती। परिवार-समाज-देश में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं। उनके प्रति दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं होना चाहिए। उन बातों पर चिंतन करें, अपनी कमी का अनुभव करें, अपनी शक्ति का विकास करें, अपने कर्तृत्व से नई रेखाएं खींचें तथा खींचीं हुई लीक से बड़ी लीक खींचने का प्रयास करें। किसी की कही हुई छोटी-सी बात व्यक्ति के सकारात्मक नजरिये एवं सकारात्मक प्रयास से उसको उत्कर्ष प्रदान कर सकती है। व्यक्ति का विश्वास होना चाहिए कि उसकी विकासयात्रा में उसका विधायक दृष्टिकोण ही उसकी गति को सार्थकता प्रदान करेगा।
नये वर्ष का हमारा सबसे बड़ा संकल्प होना चाहिए कि हम शक्ति-सम्पन्न बनेंगे। शक्तिसंपन्न बनने के लिए संतुलित एवं सामुदायिक चेतना का विकास भी बहुत जरूरी है। आज के युग में मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। वह जितना अधिक आत्मकेन्द्रित होगा, उतना ही शक्तिहीनता का अनुभव करेगा। शक्तिसंपन्न बनने के लिए सामुदायिक चेतना जगाने की अपेक्षा है। इस चेतना का जागरण तभी संभव है, जब कठिन काम करने की मनोवृत्ति विकसित हो। कुछ लोग काम करना चाहते हैं, कुछ बनना चाहते हैं, पर पुरुषार्थ करने से घबराते हैं, मुश्किल कामों से कतराते हैं। ईमानदार एवं नैतिक व्यक्ति का निर्माण वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है और यह एक दीर्घकालीन योजना है। लेकिन हर दौर में और हर युग में इस पर काम करना जरूरी है। एक प्राचीन कहावत है-यदि आप एक वर्ष का लक्ष्य देकर चलते हैं तो फूलों की खेती कर सकते हैं। यदि आपके सामने दस वर्ष का लक्ष्य है तो आप वृक्षों की खेती कर सकते हैं और यदि आपके पास अनंत काल तक काम करने का लक्ष्य है तो आप मनुष्य का निर्माण करने का संकल्प कर सकते हैं। मोदी जैसे लोगों को समाज एवं देश की विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने के साथ-साथ व्यक्ति निर्माण का भी संकल्प लेना होगा।
नय वर्ष की अगवानी में सबसे कठिन काम है- दिशा-परिवर्तन। दिशा को बदलना बड़ा काम हैं। मोदी सरकार न केवल दिशा बदलने का बल्कि दशा भी बदलने का काम कर ही है। बिडम्बना रही है कि हमारी सरकारों ने दिशा नहीं बदली, दिशा वहीं की वहीं बनी रहती है। आदमी एक ही दिशा में चलते-चलते थक गया, ऊब गया। किन्तु दिशा बदले बिना परिवर्तन घटित नहीं होता और दशा भी नहीं बदलती। एमर्सन का कहा है वे विजय कर सकते हैं, जिन्हें विश्वास है कि वे कर सकते हैं। जीवन की दिशा को बदलना बड़ा काम है। जीवन की दिशा वे ही बदल सकते है जो बदलने की चाहत रखते हैं। यदि जीवन की दिशा बदल जाती है तो सब कुछ बदल जाता है। जीवन की दिशा बदलती है अपने आपको जानने और देखने से। महान् क्रांतिकारी श्री सुभाषचन्द बोस का मार्मिक कथन है कि जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान नहीं बन सकता।
वर्तमान सरकार शासन की खामियों को ही दूर नहीं कर रही है बल्कि जीने का नया अन्दाज भी दे रही है। यह वर्तमान की जरूरत भी है। क्योंकि जिन्दगी को एक ढर्रे में नहीं, बल्कि स्वतंत्र पहचान के साथ जीना चाहिए। जब तक जिंदगी है, जिंदादिली के साथ जीना जरूरी है। बिना उत्साह के जिंदगी मौत से पहले मर जाने के समान है। उत्साह और इच्छा व्यक्ति को साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती है। जिस तरह सिर्फ एक डिग्री के फर्क से पानी भाप बन जाता है और भाप बड़े-से-बड़े इंजन को खींच सकती है, उसी तरह उत्साह हमारी जिंदगी के लिए काम करता है। इसी उत्साह से व्यक्ति को सकारात्मक जीवन-दृष्टि प्राप्त होती है और ऐसी ही सकारात्मक दृष्टि के लिये श्री मोदी नित-नये अजूबें कर रहे है।
इसलिये एक नये एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर होने वाले लोगों के लिये महावीर की वाणी है-‘उट्ठिये णो पमायए’ यानी क्षण भर भी प्रमाद न करे। प्रमाद का अर्थ है-नैतिक मूल्यों को नकार देना, अपनांे से पराए हो जाना, सही-गलत को समझने का विवेक न होना। हम कोशिश करें कि ‘जो आज तक नहीं हुआ वह आगे कभी नहीं होगा’ इस बूढ़े तर्क से बचकर नया प्रण जगायें। बिना किसी को मिटाये निर्माण की नई रेखाएं खींचें। यही साहसी सफर शक्ति, समय और श्रम को सार्थकता देगा और इसी से हमारा नया वर्ष शुभ और श्रेयस्कर होगा।
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(ललित गर्ग)
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