गैर-मुस्लिम लोगों की गला रेतकर हत्या करने और उसका वीडियो बनाकर वायरल करने वाले बर्बर आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (ISIS) की विचारधारा का समर्थन करने और उस संगठन का सदस्य बनने के आकांक्षी एक मुस्लिम युवक को मद्रास हाईकोर्ट ने आतंकवादी मानने से इनकार करते हुए हत्या के एक मामले में उसे ज़मानत दे दी, जबकि इससे पहले उसकी बेल, निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज़ हो चुकी थी।
जस्टिस एसएस सुंदर और सुंदर मोहन की खंडपीठ ने कहा कि सबूतों से पता चलता है कि आरोपी आसिफ़ मुस्तहीन ने कुछ धार्मिक नेताओं पर हमला करने की साजिश रची थी, लेकिन गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 15 के तहत यह परिभाषा बताई गई है कि किसी धार्मिक नेताओं की टारगेट किलिंग को आतंकवादी कृत्य नही माना जा सकता है। इसी बिना पर हाईकोर्ट ने पिछले 17 महीनों से ये जेल में बंद आसिफ़ को ज़मानत दे दी।
खंडपीठ ने आतंकवाद को परिभाषित करते हुए हा कि आतंकवादी कृत्य के अंतर्गत कोई मामला तब बनता है जब कोई कार्य भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या देश की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया हो या किसी विदेशी व्यक्ति या संगठन द्वारा देश में लोगों या किसी वर्ग में आतंक फैलाने या उन पर संभावित रूप से हमला करने के इरादे से किया जाए। लिहाज़ा, धार्मिक नेताओं पर हमला आतंकवाद है या नहीं यह बहस का विषय है।
हाईकोर्ट ने कहा “जहां तक यूएपीए अधिनियम की धारा 18 के तहत अपराध का संबंध है, अंतिम रिपोर्ट में अभियोजन पक्ष का मामला है कि अपीलकर्ता ने भाजपा और आरएसएस से जुड़े हिंदू धार्मिक नेताओं के खिलाफ भारत में आतंकवादी कृत्य करने की साजिश रची। सबूतों से पता चलता है कि साजिश कुछ धार्मिक नेताओं पर हमला करने की थी। लेकिन प्रतिवादी ने यह नहीं बताया है कि इसे यूएपीए अधिनियम की धारा 15 के तहत परिभाषित आतंकवादी कृत्य कैसे माना जाएगा।”
हाईकोर्ट ने आगे कहा “यूएपीए अधिनियम की धारा 15 के तहत एक अधिनियम लाने के लिए, यह कार्य भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, या संप्रभुता को धमकी देने या धमकी देने की संभावना के इरादे से किया जाना चाहिए या ऐसा करने के इरादे से किया जाना चाहिए। भारत में या किसी विदेशी देश में लोगों या लोगों के किसी भी वर्ग में आतंक फैलाना या आतंक फैलाना संभावित है। यह प्रश्न विवादास्पद है कि क्या हिंदू धार्मिक नेताओं की हत्या को आतंकवादी कृत्य माना जा सकता है। हालाँकि, अभियोजन पक्ष द्वारा एकत्र की गई सामग्रियों से मामले की व्यापक संभावनाओं को देखते हुए, कोई निश्चित रूप से यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है कि आतंकवादी कृत्य करने की साजिश थी, हालांकि गंभीर अपराधों सहित अन्य अवैध कृत्यों को अंजाम देने की साजिश है।”
इस मुक़दमें का सबसे हास्यास्पद बात यह रही कि मद्रास हाईकोर्ट के दोनों जजों ने माना कि आसिफ़ आईएस में शामिल होना चाहता था और उसने बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हिंदू धार्मिक नेताओं को मारने की साजिश रची थी, लेकिन यह भी कहा कि हिंदू नेताओं की हत्या की साज़िश को आतंकवादी अपराध नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि सबूत कहीं से भी ये इशारा नहीं करते कि आरोपी आईएस में शामिल होना चाहता था।
आरोपी आसिफ को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने 26 जुलाई 2022 को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था। उसकी जमानत याचिकाओं को ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। पिछले 17 महीने जेल में काटने के बाद आसिफ़ को मद्रास हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई। कोर्ट ने कहा कि जो सबूत दिए गए हैं वो ये साबित नहीं कर पा रहे हैं कि आरोपित इस्लामिक स्टेट का सदस्य था या उसका साथी उस संगठन से जुड़ा था।
मद्रास हाईकोर्ट के जजों ने कहा कि मुकदमे के लंबित रहने तक आरोपी को अनिश्चितकालीन समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है, लिहाज़ा यह अदालत आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश देती है। खंडपीठ ने यह ज़रूर कहा कि ज़मानत मिलने के बाद आरोपी को मुकदमा चलने तक इरोड जिले में ही रहने और अगले आदेश तक हर दिन सुबह 10.30 बजे ट्रायल कोर्ट में हाजिरी लगाने की निर्देश दिया।
(साभार Oppindiahindi)