महोदय
सुप्रीम कोर्ट जो कि ” तीन तलाक और चार शादी” की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, उसमें कट्टरपंथी मुस्लिमों की संस्था “ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड” ने एक शपथ पत्र दिया है कि ‘अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए अति की स्थिति में अगर वह व्यक्ति उसकी हत्या करके गैर कानूनी ढंग अपनाये तो उससे अच्छा है कि उसे तीन बार तलाक कहने दिया जायें”।इसके अतिरिक्त मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि वह मुस्लिम समाज के शरिया आधारित (धार्मिक) मामलों में दखल नहीं दे सकता।
परंतु धर्मनिरपेक्षता व मानवाधिकार की दुहाई देने वाले सब मौन है ? बात बात में हिन्दू साम्प्रदायिकता को कटघरे में खड़ा करने वाले भी क्या अब मानसिक दिवालिये हो गये है ?
लोकतंत्र की यही विडम्बना है कि अहिंसक , उदार व सहिष्णु हिन्दू समाज को बहुसंख्यक होने पर भी अनेक योजनाओं में भेदभाव होने से उत्पीड़ित होना पड़ता है, पर कट्टरपंथी मुस्लिम समाज अल्पसंख्यक व अनेक विशेषाधिकार होने पर भी राष्ट्र की संविधानिक व्यवस्थाओं पर धौस के साथ दबाव बनाकर अपने असहिष्णु व आक्रामक व्यवहार से पीछे नहीं हटता।
क्या अबला नारियों का रुढ़ीवादी कुप्रथाओं के अनुसार उत्पीड़न होने दिया जाय या फिर आज के आधुनिक वैज्ञानिक युग में उसमें आवश्यक सुधार किये जायें ? समाज सुधारको को आगे आ कर इस विषय पर हस्तक्षेप करके महिलाओं के शोषण को रोकना चाहिये।
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद