प्रधान संपादक, दैनिक भास्कर समूह एवं डीबी डिजिटल
महोदय/महोदय,
आपकी अंग्रेजी वेबसाइट 100% अंग्रेजी में हैं पर हिंदी वेबसाइट पर 40% अंग्रेजी क्यों परोस रहे हैं? अभी आपने समाचार-पत्र को रोमन लिपि से बख्श रहा है, अखबार में अंग्रेजी की 30%शब्दावली पिलाने के बाद आप रोमन की धुआंधार करने की तैयारी कर रहे हैं.
क्या हिंदी लिखने में शर्म महसूस होने लगी है, हिंदीभाषियों ने ही भास्कर समूह को इन ऊँचाइयों पर पहुँचाया है, आपसे प्रार्थना है कि हिंदी को हिंग्रेजी बनाकर ख़त्म मत कीजिए. छद्म हिंदी वेबसाइट के नाम पर इतनी अंग्रेजी नहीं पढ़ना है पाठकों को, यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं. ऐसी बकवास भाषा पढ़ने के बजाय हम किसी अंग्रेजी वेबसाइट पर समाचार पढ़ेंगे. कम से कम बेकार हिंदी तो नहीं पढ़नी पढ़ेगी. मेरे एक सहकर्मी ने पूछा कि मैं अपनी हिंदी ठीक करना चाहती हूँ, कोई हिंदी अखबार बताइए जिसे पढ़कर ‘हिंदी’ सुधार सकूँ तो मुझे कहना पड़ा आजकल के हिंदी अखबार पढ़कर आपकी हिंदी सुधरेगी नहीं बल्कि जो थोड़ी बहुत आती है वह भी समाप्त हो जाएगी. तो आप लोग ऐसे मानक स्थापित कर रहे हैं!!! यही व्यथा भोपाल में मिले एक विदेशी हिंदी विद्वान ने व्यक्त की थी कि इंटरनेट पर हिंदी समाचार की हिंदी इतनी अंग्रेजीमय/रोमनमाय हो चुकी है कि मुझे डर लगने लगा है कि मैं अपनी हिंदी ख़राब कर बैठूँगा. वे आगे बोले ‘अब मैं हिंदी सुधारने के लिए ऑनलाइन हिंदी समाचार नहीं पढ़ सकता. आप भारतीय लोग अपनी समृद्ध भाषा को दीनहीन क्यों बना रहे हैं?
यहाँ तक कि वेबसाइट पर आपका यह प्रतिक्रिया का प्ररूप भी अंग्रेजी में है. कितने लाज्जित हैं आपके संपादक, हिंदी का अखबार और वेबसाइट चलाने पर कि उसमें 40% अंग्रेजी और रोमन लिपि का घोंटा लगाकर हिंदी का गला घोंट रहे हैं.
प्रवीण जैन
मुंबई