दीपावली कितना सुंदर नाम है,
खुशियों का पैग़ाम है, यह एक हसीं शाम है।
इस शाम मे गरीब भी अमीर बनने जाते हैं,
भाग्य जुए मे आजमाते हैं, जुआ एक अभिशाप है, कंगाली का बाप है।
मैंने दीवाली की शाम मे रोते देखा है, हारे हुए जुआरी को खोते देखा है,
उसकी दिवाली खाली है, करती उसकी बेहाली है।
कुछ का यह भी अंध विश्वास है, कि खुले द्वार रखने से लक्ष्मी आती है,
दिवाली की रात में मालामाल कर जाती है,
पर सुनो कहीं ऐसा ना हो जाये,
लक्ष्मी के बदले लक्ष्मीचंद आ जाये,
अपनी प्रिय लक्ष्मी को बटोर कर ले जाये,
दिवाली की रात में तुम्हारा दिवाला हो जाये।
दिवाली के असली आनंद से वंचित ना रहो, इन कुरीतियों के थपेड़े ना सहो, अंधविश्वासो का दामन छोड़कर दिवाली मनाओ,
खुशियों से भर दो त्यौहार को आदर्श बनाओ।
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-अनुज कुच्छल-
सीनियर सेक्शन इंजिनियर
मध्य – पश्चिम रेल मंडल
कोटा