कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद अखबारों में भी आम कश्मीरियों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास व मौलिक ढांचे से जुड़े मुद्दों पर लेख और समाचार नजर आ रहे हैं। करीब तीन दशकों में पहली बार आम कश्मीरियों के मुद्दे समाचार पत्रों में प्रमुखता पा रहे हैं। यह बदलाव इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कश्मीर घाटी में मीडिया के एक बड़े वर्ग की संपादकीय नीतियां और भूमिका निरंतर सवालों के घेरे में रही हैं। इसकी वजह वो परिस्थितियां रही हैं जो आतंकवादियों, अलगाववादियों और पाकिस्तानी मीडिया के चलते पैदा हुईं।
पूर्व तथा हाल में प्रकाशित खबरों तथा इनकी पड़ताल के आधार पर यह बात भी उभरकर सामने आ रही है कि आतंकवादियों, अलगाववादियों और पाकिस्तानी मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, पत्रकारिता और पत्रकारों के नाम पर कश्मीर में आतंकवाद,अलगाववाद और भारत विरोधी तथ्यों को हवा देने का काम किया। फेक न्यूज और सोशल मीडिया को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर ऐसे तत्वों ने भारत की एकता-अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया।
यह तथ्य नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया (एनयूजे-आई) की एक टीम की रिपोर्ट: कश्मीर का मीडिया तथ्यों के आईने में उभरकर सामने आए हैं। कश्मीर से लौटे एनयूजे-आई के इस प्रतिनिधिमंडल ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के चेयरमैन चंद्रमौली कुमार प्रसाद को यह रिपोर्ट सौंपी और मांग की कि कश्मीर में पत्रकारों को पत्रकारिता करने के पूर्ण सुरक्षित अवसर प्रदान किए जाएं। भारत के अन्य शहरों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों, मीडिया संस्थाओं को श्रीनगर व कश्मीर में अपने कार्यालय खोलने के लिए सुरक्षा व सुविधा प्रदान की जाए।
एनयूजे-आई प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार हितेश शंकर, एनयूजेआई के राष्ट्रीय महासचिव मनोज वर्मा, एनयूजे-आई के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राकेश आर्य, दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुराग पुनैठा,दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के महासचिव सचिन बुधौलिया, एनयूजे-आई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हर्षवर्धन त्रिपाठी और दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष आलोक गोस्वामी शामिल थे।
बता दें कि एनयूजे-आई के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 10 से 15 सितंबर 2019 के दौरान जम्मू-कश्मीर का दौरा कर वहां मीडिया और पत्रकारों की स्थिति को समझने का प्रयास किया और एक रिपोर्ट तैयार की। एनयूजे-आई के इस प्रतिनिधिमंडल ने घाटी से प्रकाशित अखबारों, अन्य मीडिया माध्यमों की स्थिति-उपस्थिति, निष्पक्षता जानने के लिए पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं अखबार विक्रेताओं से बात तो की ही, श्रीनगर स्थित प्रेस क्लब का दौरा भी किया।
उन्होंने वहां मौजूद पत्रकारों के अलावा अलग-अलग स्तर पर विभिन्न मीडियाकर्मियों और संपादकों से बातचीत कर कश्मीरी मीडिया के विभिन्न पहलुओं को जानने और समझने की कोशिश की। कश्मीर दौरे के दौरान एनयूजे-आई के पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने जो देखा और सुना उसके आधार पर रिपोर्ट तैयार की।
कश्मीर में मीडिया और पत्रकारों की स्थिति को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा किया गया है। खासकर पाकिस्तान और अलगाववादियों ने कैसे सोशल मीडिया और प्रेस को आतंकवाद,अलगाववाद और हिंसा फैलाने का हथियार बनाया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर की मीडिया और पत्रकार आतंकवाद और अलगाववाद के चलते गहरे दबाव, भय और अंदरूनी आक्रोश सहित कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ने कश्मीर में अफवाह फैलाने और फेक न्यूज के जरिये माहौल खराब करने के लिए कथित मीडिया की एक फैक्टरी खोल रखी है। इसमें कश्मीर को लेकर भारत और भारतीय सैन्यबलों के खिलाफ फेक न्यूज बनाई जाती हैं।
श्रीनगर में इंटरनेट और मोबाइल पर पाबंदी से मीडिया भी प्रभावित हुआ है। हालांकि, सरकार की ओर से एक मीडिया सेंटर स्थापित किया गया है, ताकि पत्रकार अपना काम कर सकें। कुछ पत्रकार संगठनों ने इंटरनेट पर पाबंदी को मुद्दा बनाने की कोशिश की। अपने दौरे के दौरान एनयूजे-आई के प्रतिनिधिमंडल ने पाया कि श्रीनगर में किसी भी प्रकार की कोई पाबंदी मीडिया पर नहीं है। समाचार पत्र रोजाना प्रकाशित होते हैं। मीडिया पर अलगाववादियों और आतंकवाद का भय अधिक दिखा। दिल्ली और अन्य शहरों से प्रकाशित होने वाले कई प्रमुख समाचार पत्रों के कार्यालय श्रीनगर में नहीं हैं और गैर कश्मीरी पत्रकार भी नहीं हैं।
गैर कश्मीरी पत्रकारों को श्रीनगर में काम करने नहीं दिया जाता। रिपोर्ट के अनुसार, गैर कश्मीरी पत्रकारों के साथ प्रशासनिक स्तर पर भी भेदभाव किया जाता है। प्रशासन में और मीडिया के एक तंत्र में अलगाववादी और स्थानीय राजनीतिक दलों के समर्थकों की घुसपैठ ने भी कश्मीरी मीडिया की स्वतंत्रता पर सवालिया निशान लगा रखा है।
एनयूजे-आई की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवाद और अलगाव के चलते कई चुनौतियों से जूझते हुए पत्रकारिता कर रहे घाटी के पत्रकार स्वतंत्रता के साथ पत्रकारिता नहीं कर पा रहे हैं। इसकी पहली और बड़ी वजह आतंकवाद और अलगाववाद है जो उन्हें एक एजेंडा आधारित पत्रकारिता करने को मजबूर करती है। इस मजबूरी के बीच उन लोगों के लिए कोई स्थान नहीं जो ईमानदारी के साथ पत्रकारिता करना चाहते हैं।
यहां काम करने के बेहद सीमित अवसर हैं क्योंकि आतंकवाद के चलते घाटी में भारत से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों और चैनलों के कार्यालय नहीं हैं। पत्रकारों और मीडिया कर्मियों को पूरा वेतन या वेज बोर्ड नहीं मिलता क्योंकि कश्मीर में बहुत से श्रम कानून लागू नहीं होते थे। आतंकवाद प्रभावित और खतरों के बीच कार्य करने के बावजूद कश्मीरी पत्रकारों को न पेंशन मिलती है और न ही कोई स्वास्थ्य या सुरक्षा संबंधी बीमा है। कश्मीर के पत्रकारों की इस हालत के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो आतंकवाद और अलगाववाद है। इसके भय के चलते लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ कश्मीर में अपनी विश्वसनीयता और स्वंतत्रता की जंग लड़ता रहा है।
कश्मीर मीडिया और पत्रकारों की बेहतरी के लिए एनयूजे-आई ने अपनी इस रिपोर्ट के जरिए मांग की कि आतंकवाद और अलगाववादी पोषित पत्रकारिता पर कठोरता के साथ अंकुश लगाया जाए। जाति और समुदाय के नाम पर कश्मीर में पत्रकारों की मान्यता में भेदभाव समाप्त हो, इसके लिए कदम उठाए जाएं। जम्मू कश्मीर सहित सीमावर्ती राज्यों और क्षेत्रों में काम करने वाले पत्रकारों व मीडियाकर्मियों को बेहतर वेतन, पेंशन और सुरक्षा व स्वास्थ्य संबंधी बीमा व सुविधाएं दी जाएं। जांच के नाम पर सुरक्षा बलों द्धारा पत्रकारों को बिना वजह परेशान न किया जाए। गैर कश्मीरी पत्रकारों को भी श्रीनगर में पत्रकारिता करने के पूर्ण सुरक्षित अवसर प्रदान किए जाएं। भारत के अन्य शहरों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों,मीडिया संस्थाओं को श्रीनगर व कश्मीर में अपने कार्यालय खोलने के लिए सुरक्षा व सुविधा प्रदान की जाए।
साभार- https://www.samachar4media.com/ से