राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए राहुल गांधी ने एक बार फिर यह साबित किया कि वे राजनीतिक रूप से अपरिपक्व राजनेता ही हैं। उनको पता ही नहीं कि भारत में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी कितनी महत्वपूर्ण है और विपक्ष के नेता के रूप में भारत ही नहीं पूरा विश्व उसको वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में देखता है। लोकसभा में दिया गया भाषण किसी चुनावी रैली में दिए गए भाषण जैसा नहीं होता, वह भाषण संसद की कार्यवाही में अंकित होता है और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होता है। लेकिन अपनी इस पहली ही परीक्षा में राहुल गांधी विफल हो गए।
देश के जिन भी मतदाताओं ने यह सोचा था कि राहुल गांधी ने दो यात्राओं के जरिए देश के मन को समझा है और वे इन यात्राओं में मिले अनुभवों से पहले ज्यादा परिपक्व होकर उभरे हैं, उन सबकी समझ को उस समय धक्का लगा जब राहुल गांधी ने भारत कि संसद में खड़े होकर कहा कि हिन्दू हिंसक होते हैं। पूरे विश्व का कोई भी समझदार व्यक्ति राहुल गांधी के इस कथन पर हंसेगा ही। क्या कोई राहुल गांधी को यह बताने वाला नहीं है कि जिस कांग्रेस के सांसदों के दम पर वो विपक्ष के नेता बने हुए हैं, आजादी से पहले अंग्रेजों से हुए संघर्ष में उस कांग्रेस के अधिकतर नेता हिन्दू ही थे। ना केवल हिन्दू थे बल्कि उनकी सनातन धर्म में गहरी आस्था थी।
हिन्दू ही यदि हिंसक होते तो देश का विभाजन ही नहीं हुआ होता ! यदि हिन्दू हिंसक होते तो कश्मीर घाटी से अपने ही देश में हिन्दुओं को शरणार्थी नहीं बनना पड़ता। हिन्दू हिंसक होते तो मुस्लिम समुदाय की आबादी ही नहीं बढ़ पाती और ना ही पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दू समाप्त हो गए होते! हिन्दू हिंसक नहीं बल्कि सहनशील हैं, उनकी ही सहनशीलता है कि जब भी किसी नेता के मन में जो भी आता है, वो बोल देता है।
लोकसभा में राहुल गांधी ने भगवान शंकर, गुरू नानक और जीसस क्राईस्ट के चित्र दिखाए। लेकिन जिस मतदाता को खुश करने के लिए उन्होंने हिन्दू समाज को हिंसक कहा, उसके किसी भी प्रतीक चिन्ह का प्रयोग नहीं किया। यह छद्म वीरता इसीलिए देखी जा रही है कि हिन्दू ना केवल शान्तिप्रिय है बल्कि पर्याप्त रूप से सहनशील भी है। प्रश्न यह भी है कि कांग्रेस में जितने भी राजनीतिक कार्यकर्ता हिन्दू हैं, क्या राहुल गांधी उन्हें भी हिंसक मान बैठे हैं? क्या वे कांग्रेस को मुस्लिम लीग बना देना चाहते हैं ? राहुल गांधी ने ना केवल हिन्दुओं का अपमान किया है अपितु अपनी मां सोनिया गांधी को लज्जित करते हुए उस आरोप को भी पुष्ट किया है, जिसमें यह कहा जाता है कि विदेशी माता से उत्पन्न संतान देश, समाज और संस्कृति का पोषण नहीं कर सकती।
अब यह भी स्पष्ट हो चला है कि 2014 में सत्ता से दूर हुई कांग्रेस यह पचा नहीं पा रही है कि वो सत्ता से दूर कैसे हो सकती है? उसे यह लग चुका है कि *उसको सत्ता से बाहर करने में हिन्दू समाज का बड़ा योगदान है। उसे हिन्दुओं की एकजुटता से खतरा महसूस होने लगा है, इसीलिए वो जातियों के बंटवारे की राजनीति कर रही है, संविधान को बदल देने और भाजपा आरक्षण खत्म कर देगी जैसी झूठी अवधारणा को फैला रही है।*
कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति को पूरा समाज अच्छी तरह से समझ रहा है, उसके द्वारा इतिहास में पढ़ाए गए गलत और झूठे तथ्य एक एक कर सबके सामने आ रहे हैं, यही वो बात है जिससे कांग्रेस और उसके रणनीतिकार बुरी तरह से बौखला गए हैं। संयोग से उनको राहुल गांधी के रूप में ऐसा विवेकहीन नेतृत्व मिल गया है, जो उनके एजेंडे को बिना विचारे आगे बढ़ा रहा है। तभी तो कांग्रेस पार्टी में सनातन की बात करने वाले नेताओं की कोई जगह नहीं बची है। यदि हेमंत विश्व शर्मा, संजय निरूपम और आचार्य प्रमोद जैसे नेताओं को सुनें तो वे कहते हैं कि राहुल गांधी इतने अहंकारी हैं कि वे अपने अलावा किसी और की बात को सुनते तक नहीं हैं।
राजनीति में आया नया नया व्यक्ति भी यह सामान्य ज्ञान रखता है कि बहुसंख्यक समुदाय का अपमान करके और उसको नीचा दिखाकर राजनीतिक क्षेत्र में सफलता नहीं मिल सकती। इसीलिए चुनावों से पहले जातीयतावादी राजनीति का प्रबल दौर आता है, लेकिन लगता है कि राहुल गांधी राजनीति का यह प्रारम्भिक तथ्य भी समझ पाने में विफल रहे हैं। तो यदि उनको लगता है कि वो इस तरह की सोच के साथ भारत में वैकल्पिक नेतृत्व देने में सफल होंगे तो यह मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जिसका प्रतिफल कांग्रेस के साथ साथ देश के लोकतंत्र को भी चुकाना पडे़गा।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर
सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट