Sunday, November 24, 2024
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देसी गाय वाकई में काम धेनुः देश के 40 लाख किसान बिना खर्च ले रहे लाभ

उज्जैन। अगर आप किसान हैं और आपके पास देशी गाय है तो फिर कृषि कार्य पर कुछ भी खर्च करने की जरूरत नहीं। आप एक देशी गाय की मदद से 30 एकड़ जमीन पर भरपूर फसल ले सकते हैं। देशभर के 40 लाख किसान इस पद्घति का लाभ ले रहे हैं। उज्जैन जिले का पालखेड़ी गांव इस मामले में मॉडल बनकर उभरा है।

महाराष्ट्र के अमरावती निवासी पद्मश्री सुभाष पालेकर की पहल धीरे-धीरे रंग ला रही है। किसान के घर पर ही मौजूद विभिन्न सामग्री से खेती करने का तरीका पसंद आने लगा है। इसमें बीज बोवनी से लेकर तैयार होने तक खर्च की लागत शून्य आ रही है। उत्पादन भी बढ़कर मिल रहा है। उज्जैन में शून्य बजट खेती को अपनाने वाले पालखेड़ी के किसान जगदीश आंजना बताते हैं कि उन्होंने प्राकृतिक तरीके से 6 बीघा जमीन में चना एवं लहसून बो रखा है, जो कि अब लहलहाने लगा है। इस तकनीक से देश के करीब 40 लाख किसान खेती कर लाभ कमा रहे हैं। प्रदेश में होशंगाबाद, नृसिंहगढ़, हरदा, खरगोन, भोपाल, विदिशा सहित अनेक जिलों में प्राकृतिक खेती की जा रही है। उज्जैन जिले में भी बीते वर्ष से पालखेड़ी के किसान इस तकनीक को अपना रहे हैं।

क्या है शून्य बजट खेती, दो चरण में जानें

-शून्य बजट खेती के दो चरण होते हैं। पहले चरण में बोवनी के लिए बीज का शोधन किया जाता है। किसान आसानी से घर पर ही बीजोपचार कर सकता है। इस पद्घति के शोधकर्ता सुभाष पारलेकर बताते हैं कि 100 किलो बीच के उपचार के लिए देशी गाय का 5 किलो गोबर, 5 लीटर गौ मूत्र, 50 ग्राम चूना, 100 ग्राम मिट्टी को 20 लीटर पानी में घोलकर 24 घंटे तक रखें। इसके बाद छांव में सुखाकर बोवनी कर दें।

-द्वितीय चरण में जीवामृत (खाद) बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक ड्रम में देशी गाय का 5 से 10 लीटर गौ मूत्र, 10 किलो गोबर, एक से दो किलो गुड़, दलहन तथा आटा, 100 ग्राम जीवाणु युक्त मिट्टी को 200 लीटर पानी में मिलाकर घोल बना ले। ड्रम को जूट की बोरी से ढंककर 48 घंटे तक रखे। इस प्रक्रिया से गुणवत्ता युक्त जीवामृत जैयार हो जाएगा। इसे 7 दिन के भीतर खेतों में डाल दें, इससे फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन काफी अच्छा होगा।

गैर दुधारू गायों को भी पालने लगे किसान

जब से शून्य बजट खेती का चलन बढ़ा है, किसान गैर दुधारू गायों को भी पालने लगे हैं। इस पद्घति में गाय का गोबर व मूत्र का उपयोग ही महत्वपूर्ण है। इसके बिना इस खेती की कल्पना नहीं की जा सकती है। नतीजतन अब किसान गायों को बेचने से परहेज करने लगे हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में उज्जैन जिले के किसानों को शिविर लगाकर शून्य बजट खेती के बारे में जानकारी दी जाएगी।

साभार- दैनिक नईदुनिया से

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