Friday, November 22, 2024
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देवस्नान पूर्णिमा और भगवान जगन्नाथ

2023 की देवस्नान पूर्णिमा आगामी 4जून को है। वह तिथि है -ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा। उस दिन श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रहों को भोर में पहण्डी विजय कराकर श्रीमंदिर के रत्नवेदी से स्नानमण्डप लाया जाता है। चतुर्धा देवविग्रहों को शीतल जल से महास्नान कराया जाता है। महास्नान के उपरांत भगवान जगन्नाथ को गजानन वेष में सुशोभित किया जाता है।गौरतलब है कि श्रीमंदिर के सिंह द्वार के समीप निर्मित है-देवस्नानमण्ड।श्रीमंदिर प्रांगण अवस्थित माता विमला देवी के स्वर्ण कूप से 108 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल लाकर चतुर्धा देवविग्रहों को महास्नान कराया जाता है। 35 स्वर्ण कलश जल से जगन्नाथ जी को,33 स्वर्ण कलश जल के बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश जल से सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश जल से सुदर्शन जी को महास्नान कराया जाता है। उसके उपरांत जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेव जी महाराजा अपने पुरी राजमहल श्रीनाहर से पालकी में आकर छेरापंहरा का दायित्व निभाते हैं। अत्यधिक स्नान करने के चलते देवविग्रह बीमार प़ड जाते हैं।तब उन्हें बीमार कक्ष में लाकर 15 दिनों तक एकांतवास कराया जाता है। उनका वहां पर आयुर्वेदसम्मत इलाज होता है।

उन 15 दिनों तक श्रीमंदिर का कपाट बन्द कर दिया जाता है। उस दौरान जो भी जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आते हैं वे जगन्नाथजी के दर्शन ब्रह्मगिरि अवस्थित भगवान अलारनाथ के दर्शन के रुप में करते हैं। ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ की काले प्रस्तर की भगवान विष्णु की मूर्ति है जो बहुत ही सुंदर है। उस दौरान ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ को निवेदित होनेवाला खीर भोग समस्त जगन्नाथ भक्त बडे चाव से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। देवस्नान पूर्णिमा को पुरी धाम में भगवान के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है।उस दिन अर्थात् ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जगन्नाथ जी महास्नान कराकर गजानन वेष में सुशोभित किया जाता है।

वास्तव में देवस्नान पूर्णिमा चतुर्धा देवविग्रहों का महास्नान का पावन दिवस होता है जो लगभग एक हजार वर्ष से मनाया जा रहा है।ऐसी मान्यता है कि एक समय देवस्नान पूर्णिमा के दिन महाराष्ट्र से एक गाणपत्य भक्त विनायक भट्ट पुरी धाम आया जिसकी इच्छा हुई कि वह जगन्नाथ जी को उनके जन्मोत्सव के दिन अर्थात् देवस्नान पूर्णिमा के दिन महास्नान के उपरांत उन्हें गजानन वेष में दर्शन करे।भक्तों की आस्था और विश्वास के जगन्नाथ तत्काल अपने मुख्य पुजारी को यह दिव्य संदेश दिए कि उन्हें विनायक भट्ट भक्त की इच्छानुसार महास्नान के उपरांत गजानन वेष में सुशोभित किया जाय और उसी समय से प्रतिवर्ष देवस्नान पूर्णिमा के दिन महास्नान के उपरांत देवविग्रहों को गजानन वेष में सुशोभित किया जाता है।गौरतलब है कि पुरी धाम अपने आप में धाम भी है,तीर्थ भी है और श्रेत्र भी है जहां पर भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव को गजानन वेश में दर्शन का अति विशिष्ट महत्त्व होता है।

देवस्नान पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ समेत चतुर्धा देवविग्रहों के गजानन रुप में दर्शन का आध्यात्मिक महत्त्व है क्योंकि श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमन चतुर्धा देवविग्रह साक्षात चारों वेदों के जीवंत रुप हैं। जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद हैं,बलभद्र जी साक्षात सामवेद हैं,देवी सुभद्रा माता साक्षात यजुर्वेद हैं तथा सुदर्शनजी साक्षात अथर्ववेद के प्रतीक हैं।कहते हैं कि महास्नान के उपरांत लगातार 15 दिनों तक आर्युवेदसम्त इलाज के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह पूरी तरह से स्वस्थ होकर आषाढ शुक्ल प्रतिपदा तिथि को अपने भक्तों को अपने नवयौवन वेष में दर्शन देंगे और उसके अगले दिन आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन अर्थात् 20जून,2023 को जगत के नाथ अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करेंगे।रथारुढ होकर वे अपनी मौसी के घर गुण्डीचा मंदिर जाएंगे। वहां पर वे सात दिनों तक विश्रामकर पुनः बाहुडायात्रा कर (28 जून,2023 को) श्रीमंदिर लौट आएंगे।

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