बलूचों पर अत्याचार के लिए कुख्यात पाकिस्तानी सेना अब उनके खून और शरीर के अंगों की तस्करी भी करने लगी है। सेना कफन में लिपटे शव परिजनों को सौंपने के बाद अपने सामने ही दफन कराती है ताकि राज फाश न हो। अब तो फौज के खूनी हाथ पश्तूनों और मुजाहिरों तक पहुंच गए हैं
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के हाल के अमेरिकी दौरे की दो घटनाएं याद करें। पहला, इमरान जब अमेरिका में रह रहे पाकिस्तानियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर संबोधित कर रहे थे, तब पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रांत के तीन नागरिक अचानक ‘पाकिस्तानी सेना मुदार्बाद’ तथा ‘इमरान खान वापस जाओ’ के नारे बुलंद करनेे लगे। बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया गया। दूसरी घटना उस समय की है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व इमरान खान के बीच द्विपक्षीय वार्ता चल रही थी और बाहर सड़क पर बलूच पाकिस्तानी फौज के विरुद्ध तख्तियां व बैनर लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।
दरअसल, ऐसी नौबत बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के बढ़ते अत्याचारों के कारण आई है। तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद बलूचों के प्रति पाकिस्तान की नीति नहीं बदली है। उन पर सेना का जुल्म निरंतर जारी है। अब तो सेना का और क्रूर चेहरा सामने आ रहा है। बलूचों के अपहरण, उन्हें गायब करने और उन पर अत्याचार की घटनाओं से कहीं आगे अब एक शर्मनाक खुलासा हुआ है। पाकिस्तानी सेना अब बलूचों के शारीरिक अंगों का भी सौदा करने लगी है। बलूचों को मौत के घाट उतारने से पहले उनके शरीर का सारा खून, उनके तमाम अंग जैसे आंखें, गुर्दे आदि निकाल लिए जाते हैं। उसके बाद सफेद कफन में शव लपेट कर परिजनों को सौंप दिया जाता है। पाकिस्तानी सैनिक वहां तब तक जमे रहते हैं, जब तक शव को दफना नहीं दिया जाता। इस दौरान मृतक के परिजनों को शव से कफन हटाने की इजाजत नहीं होती। वे केवल मृतक का खुला चेहरा ही देख सकते हैं, शेष शरीर कफन से पूरी तरह जकड़ा होता है। सेना की इस हरकत का विरोध करने वालों को मृतक की तरह अंजाम भुगतने की धमकी दी जाती है। सेना का यह कुकृत्य बलूचिस्तान के कोच जिले के हेरोनक इलाके से गायब युवक गुमरान बलूच की मौत के बाद सामने आया है। इस शहर पर मानव अंगों के तस्करों ने भी बलूचिस्तान को अपना गढ़ बना लिया है।
बताया जा रहा है कि 22 फरवरी को गुमरान बलूच बाजार गया था, तभी सेना की एक टीम उसके घर पहुंची। उन्होंने परिजनों से गुमरान के बारे में पूछताछ की, फिर उसे बुलाने को कहा। गुमरान के घर पहुंचते ही दो अन्य भाइयों के साथ उसे गिरफ्तार कर नजदीकी सैन्य छावनी में ले गए। हालांकि अगले दिन घायल हालत में दोनों भाई घर आ गए, पर गुमरान का शव सेना अपनी गाड़ी में लेकर उसके घर पहुंची। कफन में लिपटा गुमरान का शव सौंपते हुए फौजियों ने परिजनों को धमकाया कि वह इस बारे में किसी को कुछ न बताए, वरना उनका हश्र भी गुमरान जैसा ही होगा। फौज की मौजूदगी में शव को दफनाने की प्रक्रिया पूरी की गई। हालांकि इस घटना से इलाके के लोग बेहद आक्रोशित थे, पर फौज की मौजूदगी के कारण कोई भी विरोध करने का साहस नहीं जुटा सका। बाद में सोशल मीडिया पर जब यह खबर वायरल हुई तो स्थानीय मीडियाकर्मियों ने मामले की पड़ताल की। तब पता चला कि गुमरान के शरीर से सारे महत्वपूर्ण अंग गायब हैं।
वेबसाइट ‘न्यूज-कम्युनिकडॉटकॉम’ ने सेना की इस करतूत का भंडाफोड़ किया है। वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, गुमरान के मुंह को छोड़कर पूरे शरीर को कफन से जकड़ दिया गया था ताकि सेना की करतूत सामने नहीं आए। रिपोर्ट के अनुसार, मुहाजिरों व पश्तूनों को भी वही सबकुछ झेलना पड़ रहा है जो बलूच झेल रहे हैं। बलूचों के अधिकारों के लिए संघर्षरत बलूच नेशनल मूवमेंट (बीएनएम) के केंद्रीय सूचना सचिव दिलमुराद बलूच कहते हैं कि पाकिस्तानी फौज राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अपना शिकार बना रही है। ऐसी घटनाएं भले ही अब सुर्खियों में हैं, पर बलूच, पश्तून और मुजाहिर 2013 से ही सेना पर हत्या व मृतकों के अंगों की तस्करी की शिकायत करते आ रहे हैं। लेकिन पाकिस्तानी मीडिया और देश के मावाधिकार संगठनों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। चूंकि फौज पहले शवों को सुनसान जगहों पर फेंक देती थी, इसलिए उसके द्वारा मानव अंगों की तस्करी की खबरें तथ्यों के साथ सामने नहीं आ रही थीं। जब से फौज ने शवों को घरों तक पहुंचाने का सिलसिला शुरू किया है, उसकी करतूतों पर से परदा उठने लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, जिंदा व्यक्ति के शरीर से खून और अंग निकालने का यह अमानवीय कृत्य फौज ने चीन से सीखा है। चीन में मामूली खर्च पर अंग प्रत्यारोपण किया जाता है।
बलूचिस्तान में अगवा लोगों की सैन्य यातना के बाद हत्या और उनके शवों की बरामदगी का सिलसिला 2009 से शुरू हुआ, जो अब भयावह स्थिति में पहुंच गया है। लापता लोगों के उत्पीड़न और क्षत-विक्षत हालत में फेंके गए शवों का अध्ययन करने वाली एक संस्था का कहना है कि सैन्य हिरासत में लिए गए लोगों के अंग निकालने का मामला सामने आने लगा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 24 फरवरी, 2013 को बीएनएम के उपाध्यक्ष लाला मुनीर के चचेरे भाई व बीएनएम कार्यकर्ता अब्दुल रहमान को सेना पंजगुर स्थित घर से उठाकर अज्ञात स्थान पर ले गई।
इसी तरह एक अन्य युवक जाहिद पजेर को भी अगवा किया गया था। दोनों के शव 10 मार्च, 2013 को कराची के मिलर इलाके में लावारिस हालत में पाए गए थे। उनके शरीर पर टांके लगे थे और उनके अंग गायब थे। कई दिनों बाद जब शवों की शिनाख्त हुई तो सेना पर उनकी हत्या व अंग निकालने का आरोप लगा था, जिसे सेना ने नकार दिया था। गुमजी निवासी राजनीतिक कार्यकर्ता नेमतुल्लाह को भी फौज इसी तरह उठा कर ले गई थी। मजन बैंड के गुलाम हैदर के साथ भी ऐसा ही हुआ था। बाद में दोनांे के सिले हुए शव कराची के सिरजानी इलाके में एक सुनसान स्थान पर मिले थे।
आरोप है कि सेना ने 20 मई, 2016 को जाहू जोन के बीएनएम सदस्य रफीक बलूच का उसके गृहनगर कोहडो जाहू से अपहरण किया, जिसका क्षत-विक्षत शव लावारिस हालत में मिला। उसके शरीर से भी अंग निकाल लिए गए थे। बलूचों के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों का आरोप है कि अब तक हजारों लोग सेना की दरिंदगी का शिकार हो चुके हैं। दिलमुराद बलूच गुस्से से कहते हैं, ”यह मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है। बीते दो दशकों में हजारों लोग सेना की यातना के शिकार हुए हैं। अब तो वे सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। बलूचिस्तान के एक व्यक्ति को गायब कर उसका मांस क्वेटा के एक होटल में बेच दिया गया। यह मामला कई दिनों अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में भी रहा। फिर भी सेना के रवैये में बदलाव नहीं आया। बलूचिस्तान अब मानव अंगों की तस्करी का केंद्र बन गया है।”
सेना की शह, तस्करों की चांदी
एक अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता सुमैरा बलूच के अनुसार, सेना पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर बलूच युवकों का अपहरण करती है। खुफिया एजेंसियां बिना किसी सबूत के किसी भी मामले में बलूचों को गिरफ्तार कर लंबे समय तक अज्ञात स्थानों पर कैद में रखकर उन्हें यातनाए देती हैं। बाद में जब व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसके शव को दूर-दराज के सुनसान इलाके में फेंक देती है ताकि उसकी पहचान न हो सके। वाशिंगटन डीसी के इंस्टीट्यूट ऑफ गिलगित बाल्टिस्तान स्टडीज के अध्यक्ष सेंज एच. सेरिंग ने एक रिपोर्ट में कहा है कि बलूचिस्तान में मानव अंगों का व्यापार तेजी से पनपा है। माफिया गिरोह भी सक्रिय हैं। बच्चों, औरतों को भी बख्शा नहीं जा रहा। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सेना की शह पर यह कारोबार पनप रहा है।
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में ‘कंबाइंड मिलिट्री हॉस्पिटल्स’ नाम से पाकिस्तान के सैन्य अस्पतालों की एक शृंखला है। सेना से जुड़े लोगों और उनके परिवार के किसी सदस्य को अगर अंग की जरूरत होती है तो सेना द्वारा अपहृत लोगों के अंग निकाल कर तुरंत उन्हें प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। पाकिस्तान में चीनियों के बढ़ते दखल के बाद से विदेशी मुद्रा कमाने के लिए बड़ी संख्या में मानव अंग चीन को बेचे जा रहे हैं। पाकिस्तान भी सस्ते अंग प्रत्यारोपण के बड़े केंद्र के रूप में उभरा है। हालांकि पाकिस्तान में स्वेच्छा से रिश्तेदारों या परोपकार के लिए अंग दान की इजाजत है। पर विदेशियों को मानव अंग की बिक्री पर प्रतिबंध है। पाकिस्तान में 2010 से यह कानून लागू है। इसका उल्लंघन करने पर डॉक्टरों, बिचौलियों, अंग खरीदने व बेचने वाले पर 10 लाख रुपये का जुर्माना व अधिकतम दस साल कैद की सजा का प्रावधान है। मगर लचर कानून-व्यवस्था के कारण अवैध अंग प्रत्यारोपण का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। खासकर, लाहौर और कराची के रिहायशी इलाके में तहखानों में चलने वाले ऑपरेशन थिएटरों में अंग प्रत्यारोपण धड़ल्ले से होता है। यहां ब्रिटेन, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीकी देशों से बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। अनुमान के मुताबिक, विदेशियों से एक किडनी के एवज में एक करोड़ रुपये तक वसूले जाते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता नायला चतुरी बलूचों की तुलना बांग्लादेशियों व यहूदियों से करते हुए कहते हैं कि उनकी पूरी नस्ल खत्म करने की साजिश रची जा रही है। उनका दावा है कि बलूचिस्तान से रोजाना 10 से 50 लोग गायब किए जा रहे हैं। इस कारण पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत होने के बावजूद आबादी के मामले में बलूचिस्तान देश के बाकी प्रांतों से पीछे है। नायला चतुरी बलूच इस मसले को कई बार संयुक्त राष्ट्र में उठा चुकी हैं। इमरान खान के अमेरिका दौरे के समय भी उन्होंने इस मामले को उठाया। मंजूर पश्तून की मानें तो सिंध और पंजाबी बहुल इलाके से भी सेना पश्तूनों और हिन्दुओं को उठा रही है। एक आंकड़े के अनुसार, बलूचिस्तान से 40 हजार, सिंध से 25 हजार मुहाजिर और खैबर पख्तूनख्वा से 10 हजार पश्तून गायब कर दिए गए।
लावारिस शवों पर राजनीतिक बवंडर उठने तथा शवों से संक्रामक रोग फैलने की आशंका के बाद पाकिस्तानी सेना ने ‘दुश्मनों’ के शरीर के अंगों व उनके खून का कारोबार शुरू कर दिया। सेना की मौजूदगी में शवों को दफनाने से राजनीतिक बवंडर उठने की संभावना भी लगभग नहीं रहती। सेना तब तक किसी व्यक्ति को खुफिया ठिकानों पर कैद में रखती है, जब तक कि उनके अंगों का खरीदार नहीं मिल जाता। मानव अंगों के कारोबार में शहरों के रिहायशी इलाकों के तहखाने में ऑपरेशन थिएटर चलाने वाले डॉक्टर और दलाल शामिल हैं। इन अस्पतालों के आसपास सेना किसी को भी फटकने नहीं देती।
(लेखक पायनियर, हरियाणा संस्करण के संपादक हैं)
साभार https://www.panchjanya.com से