Sunday, November 24, 2024
spot_img
Homeव्यंग्यदिवाली क्या गई जीना हराम कर गई

दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई

दिवाली वैसे तो खुशी का त्योहार है, हर कोई चाहता है की उसके जीवन में दिवाली आए पर कुछ लोगो को लगता है कि भगवान करे इस बार दिवाली नहीं आए क्योंकि दिवाली आने के पहले ही उनको टेंशन शुरू हो जाती है और दिवाली के बाद तो उनका जीना हराम हो जाता है। उनने उधार किराना, राशन देने वाले को, दूध वाले को, काम वाले को, यहॉ तक की अपनी पत्नी को, बच्चों को और हर किसी को बस यही कहा है कि दिवाली बाद करेंगे। बेचारे दिवाली बाद के कामों की लिस्ट बनाने लगे तो होली आ जाए पर लिस्ट पूरी नही हो।

दिवाली के बाद क्या-क्या करना है,करने वाले कामो की श्रंखला इतनी लंबी है कि चार जन्म इस धरा पर वो ले तो भी पूरी नहीं होगी। दिवाली नहीं हुई तब तक तो एक आड़ थी की दिवाली हो जाने दो फिर करते है । न जाने कितने वायदे दिवाली की आड़ में धक रहे थे। जिनको पूरा करने का समय भगवान करे कभी न आए। पर अब तो ये दिवाली भी गई मतलब अब बहाना बनाने के लिए होली से पहले कोई त्योहार नहीं और कुछ बहाने ऐसे होते है जो केवल दिवाली से जुड़े होते है उनको होली के लिए टाल नहीं सकते।

सालभर राशन किराना उधार देने वाला या वक्त जरुरत नगद मदद करने वाला दिवाली के बाद कुछ दिन और ज्यादा से ज्यादा देव दिवाली तक मन मार कर नही मांगेगा पर फिर तो मांगेगा ही और कोई बहाना भी उनके पास नहीं होगा। या तो करार हो गया चुकारा करो या मुंह छुपाओ और कोई इलाज नहीं। क्योंकि देने वाल जानता है कि दिवाली पर नहीं मिला तो अगली दिवाली तक इंतजार करना पड़ेगा। और इंताजार का एक पल भी दिनों के समान होता है,वे और हम सब जानते है।

उनकी सेहत की एक मात्र शुभ चिंतक याने उनकी धर्मपत्नी का सुबह घूमने जाने के लिए किया जाने वाला तगादा,जो उनके फेसबुक और व्हॉटसएप चलाते हुए दिनभर सोफे पर पड़े रहने के कारण बढ़ी तोंद को कम करने के लिए होता है,शुरु हो गया। शायद उनकी तोंद कम करने से ज्यादा घर के सुबह के काम शांति पूर्वक कर सके इसका आग्रह भी होता है सुबह घुमने के कठोर आग्रह में। ये काम बिना किसी ना नुकुर के दिवाली बाद शुरु हो गया। क्योकि दिवाली के पहले से ही रेड अलर्ट इस मामले में जारी कर दिया गया था और भाई दूज के एक दिन पहले से ही अपने पीहर वालो के सामने उनको बेइज्जत नहीं करने और उनके सम्मान के इरादे से सचेत कर दिया गया था। तथा धमकी के साथ सुबह 5 बजे का अलार्म लगा दिया जा रहा है। वे भी घरवाली की मनुहार और अपनी तोंद के सामने नत मस्तक होकर मन मार कर घुमने का संकल्प ले कर घर से निकल जाते है। कुछ घुमना, कुछ घुमाना हो जाता है सुबह-सुबह, पर नहीं मिलता है तन-मन को चैन कारण दिनभर याद आते है दिवाली बाद के इकरार और और उनके पुरे करने के लिए क्या जुगाड़ करना है। कई बार लगता है दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई ।

-संदीप सृजन

संपादक-शाश्वत सृजन

ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन 456006

मो. 09406649733

ईमेल- shashwatsrijan111@gmail.com

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार