बेंगलुरु। 26 साल की माला एम दांत के दर्द के कारण आईसीयू में पहुंच गईं थीं। वह न बोल पा रहीं थीं न खा-पी पा रहीं थीं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ओरल हाइजीन उनकी यह हालत कर सकता है। जो बात दांत के दर्द से शुरू हुई, वह शरीर के कई अंगों के काम न करने तक पहुंच गई थी। माला को दो महीनों में तीन बार दिल का दौरा पड़ा, उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया।
जब माला के दांत में दर्द और मसूड़ों में सूजन आई तो उन्होंने सोचा कि पेनकिलर से उन्हें राहत मिलेगी। लेकिन, उन्हें कोई राहत नहीं मिली, बल्कि दर्द कोशिकाओं तक पहुंच गया और सूजन उनके गले तक। उनका गला जाम हो गया।
इसके बाद माला न कुछ खा पा रहीं थीं, न कुछ पी। यहां तक कि वह बोल भी नहीं पा रहीं थीं। दिन-ब-दिन वह कमजोर होती जा रहीं थीं। जब वह दर्द बर्दाश्त नहीं पा रहीं थी तो उनकी मां ने उन्हें पास के अस्पताल में भर्ती करवाया। दुर्भाग्य से उस अस्पताल में ऐसे केस का इलाज करने के लिए उपचार-उपकरण नहीं थे, उन्हें फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया।
कई टेस्ट हुए और पता चला कि इन्फेक्शन उनके शरीर में फैल गया है और उनके शरीर के कई अंग बेकार हो गए हैं। उनका इलाज करने वाली डॉक्टर सुधा मेनन ने बताया कि जब माला को अस्पताल लाया गया था तब उन्हें तेज बुखार था और बीपी काफी लो था।
उन्होंने आगे बताया, ‘पहले हमें डेंगू या H1N1 का डाउट हुआ, लेक्न टेस्ट नेगेटिव मिला। उसे निमोनिया था और वेंटिलेटर पर रखा गया। उन्हें ठीक करने का सारा श्रेय स्टाफ और आईसीयू के डॉक्टरों को जाता है, जिन्होंने उनका पूरा ध्यान रखा। माला थोड़ा ठीक होंती, फिर हालत बिगड़ जाती। उनके फेफड़ों में बैक्टीरिया इकट्ठा हो गए थे जो दिल के आसपास इक्ट्ठा होना शुरू हो गए थे। दिल को सिर और गले से जोड़ने वाली नस में खून का क्लॉट बन गया था।’
सांस लेने में बाधा को दूर करने के लिए माला का ऑपरेशन किया गया, विंडपाइप में कट लगाया गया। एक ट्यूब के जरिए इन्फेक्शन को खींचा गया।
माला को साल 2015 के दिसंबर महीने में अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह वापस काम पर लौट गईं हैं। उन्होंने बताया, ‘मेरे दांतों में बहुत कैविटीज थीं और मैं उनपर ध्यान नहीं देती थी। मुझे तभी एहसास हुआ जब मैं बोल नहीं पा रही थी, खा नहीं पा रही थी।’
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से