राजनांदगाँव। दिग्विजय कालेज के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि आत्मा की आवाज़ कभी रोबोट नहीं हो सकती। अगर आप एकलव्य की तरह एकनिष्ठ हैं तो ज्ञान और कौशल के अधिकारी अवश्य बनेंगे। गुरुमंत्र घर बैठे भी मिल सकता है। इच्छा शक्ति, अनुशासन और ज़ुनून के दम पर हर लड़ाई जीती जा सकती है। कोरोना काल ने बेहतर कल के लिए मनुष्य की विवेकज्योति को जगाया है। इसके संकेत और सन्देश को समझना समय की सबसे मांग है। अब कई विद्यार्थी एक शिक्षक नहीं, एक शिक्षक और एक एक विद्यार्थी के बीच ऑनलाइन संवाद हो सकता है। जो दुनिया आभासी थी वह अब वास्तविक लग रही है और वास्तविक दुनिया संकुचन के लिए विवश हो गयी है । बच्चों के वर्चुअल ज़ुनून पर कभी अभिभावक चिंता करते थे अब वही रीयल मालूम पढ़ रहा है। यह बदलाव का ऐतिहासिक दौर है।
इंटरनेशनल इकनॉमिक डिप्रेशन एंड कोविड-19 एन्ड इट्स इम्पैक्ट आन एन्वायरॉनमेंट एन्ड इकनॉमी विषय पर एकाग्र सेमिनार में डॉ. जैन ने उक्त उदगार व्यक्त किया। राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अम्बिकापुर के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित इस सेमीनार में उदघाटन वक्तव्य प्राचार्य एवं अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा डॉ. एस. के.त्रिपाठी ने दिया । उदघाटन सत्र के प्रमुख वक्ता इंदिरा गांघी ट्राइबल नेशनल यूनिवर्सिटी अमरकंटक के प्रोफेसर डॉ. विनोद सेन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर और आगरा विवि के पूर्व कुलपति प्रोफेसर मुजम्मिल और आरजेएम नागपुर युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. आर.वाय. माहोरे आदि विद्वानों के साथ डॉ. चन्द्रकुमार जैन विशिष्ट वक्ता के रूप में शामिल थे। आयोजन का कुशल संयोजन प्रोफ़ेसर डॉ. जयनारायण पण्डे ने किया।
डॉ. जैन ने कहा कि विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण विश्व अर्थव्यवस्था इस साल एक फ़ीसदी तक सिकुड़ सकती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का असर और भी ज़्यादा व्यापक हो सकता है। हालात की गंभीरता के मद्देनज़र निडर नीतिगत उपायों की ज़रूरत महसूस की जा रही है। खासतौर पर असंख्य मजदूरों और निर्बलों की सहायता और समाज के हर वर्ग के बुज़ुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता है। तीन महीने बाद कड़े संघर्ष का दौर आ सकता है। स्कूल कालेज का रास्ता भूल चुके नब्बे प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुए है जिसे वर्चुअल कक्षाओं के पूरी करने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। परन्तु, डॉ. जैन ने कहा शहर और गांवों के सारे परिवारों की पहुंच उस तकनीक तक नहीं है, जो उनके बच्चों को घर पर रहकर शिक्षा पाने में मदद कर सके। इस कमी को दूर करना होगा।
डॉ. जैन ने कहा कि कोरोना के मनोवैज्ञानिक परिणामों से भी जन-मन को बचाना बड़ी चुनौती है। वैज्ञानिकों ने यह दर्ज किया है कि ऐतिहासिक रूप से संक्रमणकारी महामारियां आम लोगों में चिंता और घबराहट को बड़े पैमाने पर बढ़ाती हैं। डॉ. जैन ने कहा कि बेशक बहुत अँधेरा और सन्नाटा है किन्तु मनुष्य के मनोबल के उजाले से वह हर हाल में हारेगा। डॉ. जैन ने कहा कि वर्तमान में कोविड-19 से प्रभावित लोगों के अनुभवों को समझने और सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा की कारगर नीति बनाने तथा मानसिक स्वास्थ्य की चिंताओं पर भी ध्यान देने की सख्त ज़रुरत है। व्यावहारिक बदलाव को अपनाना ही होगा।
डॉ. जैन ने लॉकडाउन के बाद अनलॉक के सिलसिले मैं कुछ सरल और प्रायोगिक सुझाव देते हुए कहा कि अतिउत्साह में सामूहिक संक्रमण न हो। फ़िलहाल मेहमाननवाज़ी से बाज़ आएं। नियम शिथिल हुए हैं पर अनुशासन और संयम की अपनी नीति ढुलमुल ना हो। स्वयं अपनी सुरक्षा का योद्धा बनने का यह समय है। सलामती के लिए सावधानी ज़रूरी है। महामारी से बचाव के लिए सुरक्षा को आदत बनाना होगा। डरने से नहीं डटकर मुकाबला करने से सफलता मिलेगी। प्रकृति के संगीत को सुनना होगा। आबोहवा की ताज़गी के लिए अपने भीतर के पर्यावरण और जीवन को भी स्वच्छ रखना होगा।