मैं बहू मंजिल परिसर से लगी झोपड़ी हूं
कालांतर से इसी हालत में खड़ी हूं
यह परिसर की धरा धनु के पुरखों का जर था
किंतु जमीदार का पुरखो पर आंशिक कर था
चक्रवृद्धि ब्याज में धरा बिक गई थी सारी
बची विरासत में यही एक झोपड़ी बेचारी
यह बहू मंजिल परिसर शहर की शान है
इस रचना में एक झोपड़ी की आवाज़ को कथात्मक काव्य शैली में लिखा गया है। बहू मंजिली इमारतों के बीच खड़ी झोपड़ी पीढ़ी दर पीढ़ी धनु की निशानी के रूप में अपनी कहानी कहती है। झोपड़ी को लेकर संवेदनशीलता के साथ सृजित रचना में कई मानवीय पहलु एक साथ उजागर होना रचनाकार के काव्य शिल्प कौशल का ही कमाल है। “झोपड़ी की अस्मिता” कविता को आगे बढ़ाती हुई लिखती हैं…
यहां प्रवेश पाता वही जो महा धनवान है
अमीरी गरीबी की संयुक्त यह कहानी है
महलों से सटके खड़ी झोपड़ी पुरानी है
मखमल में टाटा के पेबंद सी यह दिखती है
यह राहगीरों की दृष्टि मैं बड़ी खलती है
इसे हटाने के मंसूबे रोज बनते हैं
गरीब धनु के सीने को रोज छलते हैं
मंत्री नेता सभी धनु को समझाते हैं
पांच पांच प्लॉट के नक्शे इसे थमाते हैं
गरीब रो रो के सबसे बया यह करता है
यह तो अस्मिता है इसे कौन बचा करता है
सामाजिक सरोकार के साथ-साथ जीवन के हर रंग में लिखने वाली डॉ. रौनक राशिद खान एक ऐसी कवियित्री हैं जिनकी रचनाओं में मानव जीवन से जुड़े कई प्रसंगों की सहज, सरल परंतु प्रभावी अभिव्यक्ति दिखाई देती है।इनकी रचनाएं कोई कहानी भी कहती है, आनंदित भी करती हैं और संदेश भी देती हैं। रचनाएं किसी रस विशेष के बंधन में न बंध कर समरस भाव लिए है।
इन्होंने गद्य और पद्य विधाओं स्वतंत्र हो कर मुक्त भाव से लेखन किया है। लेखन ऐसा की पढ़ने और सुनने वाले के दिल सीधा छू लेता है और आनंदित करने के साथ – साथ उद्वेलित भी करता है। दशा भी है और दिशा भी । कविताएं राज,समाज और शिक्षा से जुड़ी हुई है तो गजलें जीवन के हर पहलू को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं। ये अरबी-फारसी के नामचीन साहित्यकार शेख सादी से प्रभावित हैं। उनकी दुर्लभ पुस्तकें हैदराबाद से खरीद कर लाई। इनमें एक नसीहत, एक सामाजिक और राज दरबारों के बीच होने वाली गुफ्तगू के बारे में तफसील से जानकारी मिलती है । नसीहत और उनका अनुवाद ये अभी भी कर रही हैं। आप ग़ज़ल में रासमुल खत लिखने में सिद्धहस्त हैं। प्रभावी और भावपूर्ण लेखन की बानगी इश्क मोहब्बत में कुछ इस तरह झलकती है….
हमारी तरफ जब वह कम देखते हैं
तब आईने में खुद को हम देखते हैं ।
हिंदी में कुछ इस तरह……..
ओ मन में तेरी प्रीत जब से मन में समाई है
खुशियों से मन झूम रहा है जब से तेरी याद आई है
तेरे दरस के प्यासे नैना नींद इन्हें कब आई है
सपने लिए खड़ी रैना है पर आंखें पथराई है
कंचन कंचन काया मेरी श्याम दे है तूने पाई है
मैं बन राधा डोल रही जैसे तू किशन कन्हाई है।
राज और सियासत पर इनका कटाक्ष
सियासत पर कटाक्ष का यह शेर देखिए……….
यह जो फुटपाथ पर सोए हैं ओढ़ कर बैनर
चुनावी दौर में इनका भी जमाना होगा ।
उम्र के पड़ाव को इनकी दृष्टि और कल्पना में देखिए , क्या खूब लिखती हैं…
उम्र की दहलीज पर लुढ़कने लगती है आशाएं
बढ़ने लगता है अवमाननाओं का भंडार
हृदय से निकलती है एक चिंघाड़
शायद मैं निगोड़ा हो गया हूं
यकीनन अब मैं बूढ़ा हो गया हूं ।
हिंदी की इस छोटी सी अभिव्यक्ति को ये गजल में कुछ इस तरह बयां करती हैं………
सूने घर के यही रखवाले हैं
कहीं मिट्टी कहीं पर जाले हैं
खुदा भी मेहरबान है उन पर
जिसने घर में बुजुर्ग पाले हैं।
हिंदी, उर्दू के साथ राजस्थानी भाषा में भी कलम चलाई है। देवर के नेह को लेकर लिखती हैं……………
म्हारा देवरिया की करे मसू लाड़
मू काई करूं सांवरिया
छोटे-छोटे दिन और बड़ी-बड़ी रतिया बीत न जाए री
सखी री मारा मन घबराए री।
दिल के सवाल पर लिखी इनकी एक ग़ज़ल की ह्रदय स्पर्शी बानगी देखिए….
दिल ने ऐसा सवाल रखा है
उनको उलझन में डाल रखा है
इस जमाने में यह तो बतलाओ
किसने किसका ख्याल रखा है
उलझनो के नए मसाइल ने
वक्त ने सबको डाल रखा है
दिल है जख्मी मगर खुशी की नकाब
सबने चेहरों पर डाल रखा है
भूल कर दर्द अपने माजी के
हाल अपना खुशहाल रखा है
यह अमानत है आपकी रौनक
इसलिए दिल संभाल रखा है
तुम मिलोगे दुआ एक ही रौनक
हमने सिक्का उछाल रखा है.
दिल की बात के साथ अनेक सवाल लिए एक और ग़ज़ल का अंदाजे बयां दृष्टवय है….
हकीकत है झूठी कहानी नहीं है
समंदर में पीने का पानी नहीं है
हसीनों की दुनिया में लाखों हंसी है
मगर उसका अब तक तो सानी नहीं है
हवाओं का रुख तो पलट देंगे हम तो
अभी काम करने की ठानी नहीं है
बैठे हैं शाखों पर गुमसुम परिंदे
गर्मी में पीने का पानी नहीं है
उसे ढूंढ कर कोई लाएं भी कैसे
की जिसकी भी कोई निशानी नहीं है
मोहब्बत में बेताबियों का है आलम
कभी रात भर नींद आनी नहीं है
तेरी साफ गोई है पहचान रौनक
तभी तो तू महफिल की रानी नहीं है.
रंगों में प्यार के रंग, मिलने की अकुलाहट, मिलने का वादा पूरा करने का इजहार, रंगों से नफरत को दूर कर, उल्फत के फूल खिलाने, हजारों रंग की जगह दुनिया में मोहब्बत का एक रंग हो के गहरे भावों को पिरोया है ” होली मिलन के रंग” कविता में कुछ इस तरह……….
करो वादा कोई पूरा किया जो यार होली में
जहां भी हो चले आओ सनम इस बार होली में
मिलन के रंग में रंग जाए दुनिया दूर हो नफरत
खिला दो फूल उल्फत के बस अबकी बार होली में
जमाने में बहुत कुछ अदला बदली होती रहती है
बदल दो अपना तुम व्यवहार अबकी बार होली में
मोहब्बत ही मोहब्बत हो शिकायत दूर हो सब की
सभी रंग जाए एक रंग में ना हो तकरार होली
हजारों रंग का एक रंग हो दुनिया में अब रौनक
करें हम हम प्यार की बौछार मिलकर यार होली में।
कवियित्री के वृहत सृजन संसार के ये कतिपय रंगबिरंगे सुगंधित पुष्प तो बानगी मात्र हैं।
नि:संदेह इनकी रचनाएं मनभावन हैं, अर्थपूर्ण है और संदेश परक हैं। यात्रा विवरण पर प्रकाशित पुस्तक “खाब अपने-अपने”, “क्या कहूं अपनी ड्रेस कर लूं प्रेस” बाल कविता संग्रह, “चकमक चांदनी” बाल कविता संग्रह, “देखा जो कनखियों से” इनकी यादगार कृतियां हैं। बाल कहानी बुकलेट में “कुएं का मेंढक” राजस्थान साहित्य अकादमी में चयनित है। इनके लिखे राजस्थानी भाषा के गीतों का चित्रांकन भी किया गया है।
परिचय
डॉक्टर रौनक राशिद खान vs गद्य-पद्य में कविता, गज़ल और नाटकों में अपनी पहचान बनाई है। देश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का नियमित प्रकाशन होता है। आकाशवाणी केंद्र से कहानी एवं गजलों कविताओं का प्रसारण किया जाता है। दूरदर्शन और रेडियो प्रोग्राम साहित्यिक प्रोग्राम कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला, मुशायरा का संचालन, साहित्यिक वार्ताएं, काव्य गोष्ठियों में संचालन और नाटकों में लेखन तथा निर्देशन किया है। इनके सृजन और शैक्षिक उत्कृष्ट सेवाओं के लिए प्रशासन, शिक्षा विभाग और कई संस्थाओं द्वारा समय-समय पर पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है।
चलते – चलते……………
शहर ही से नहीं दुनिया से चले जाएंगे
आप अगर हमसे न मिलने की कसम खाएंगे
तुम जो आहिस्ता चल गर्द में खो जाओगे
काफिले वाले बहुत दूर निकल जाएंगे
यह सियासत का जमाना है जरा बचके चलो
तुमको अपने यहां बेगाने नजर आएंगे
उनकी महफिल से चले आए मगर सोचते हैं
दिले बेताब आपको अब किस तरह समझाएंगे
संपर्क :
18,वैभव नगर,कोयल बाग,
पुलिस लाइन रोड, बजरंग नगर,
कोटा (राजस्थान)