डॉ. सुभाष चंद्रा बोलते जा रहे थे और खचाखच भरे मुंबई के सबसे बड़े ऑडिटोरियम षण्मुखानंद सभागृह में बैठे लोग निस्तब्ध सुनते जा रहे थे। उनका एक-एक शब्द मानो उस सभागृह में बैठे लोगों की मन की अभिव्यक्ति थी। तालियों की गड़गड़ाहट इस निस्तब्धता को तोड़ देती थी, मगर शब्दों का प्रवाह जादू सा असर कर रहा था। देश के मीडिया की दुनिया के दिग्गज और 171 देशों में ज़ी नेटवर्क के माध्यम से भारत की गौरव पताका फहराने वाले डॉ. सुभाष चंद्रा को मंच पर देखकर सभी को लग रहा था वे किसी कारोबारी की तरह व्यापार व्यवसाय में सफलता के नुस्खों पर बात करेंगे, लेकिन जब डॉ. चंद्रा ने रामायण से लेकर राम, सीता, लक्ष्मण और दशरथ शब्दों को एक नए अर्थ में प्रस्तुत किया तो श्रोताओँ के लिए ये एक विलक्षण अनुभव था। कार्यक्रम का आयोजन किया था, श्री हरि सत्संग समिति ने, जो देश के वनवासियों को देश की मुख्य धारा में लाने और वनवासियों में सांस्कृतिक जागरण की दिशा में कार्य कर रही है। इस कार्यक्रम में डॉ. सुभाष चंद्रा के साथ ही कमल मुरारका, श्री रमाकांत टिबड़ेवाल और श्री सुरेश खंडेलिया को भी सम्मानित किया गया।
सबसे पहले तो डॉ. चंद्रा ने अपने मन की व्यथा कही कि मैने श्री हरि सत्संग समिति के श्री स्वरूपचंद्र जी गोयल को स्पष्ट मना कर दिया था कि मेरे सम्मान आदि का कोई कार्यक्रम नहीं रखें, लेकिन यह भी एक हकीकत है कि पितृतुल्य श्री स्वरूपचंद्र जी गोयल (पूरे मुंबई में बाबूजी के नाम से प्रसिध्द) का कहा सुभाष जी टाल ही नहीं सकते थे और आखिरकार वे अपनी तमाम व्यस्तताओँ के बावजूद इस आयोजन में आए और अपने अध्यात्मिक वक्तव्य से पूरे आयोजन को एक नई ऊँचाई प्रदान की।
डॉ. चंद्रा ने कहा, रामायण कोई साधारण ग्रंथ नहीं है, इसके अंदर हमारे जीवन और हमारे व्यक्तित्व के कई राज़ छुपे हैं। राम शब्द की व्याख्या करते हुए डॉ. चंद्रा ने कहा, ‘रा’ शब्द रोशनी का प्रतीक है और ‘म’ यानि हमारे अंदर, दशरथ शब्द की व्याख्या करते हुए डॉ. चंद्रा ने कहा, ‘दशरथ’ का अर्थ है हमारी दस इंद्रियाँ, जिसमें पाँच हमारी कर्मेंद्रियाँ और पाँच हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं, ‘कौशल्या’ का अर्थ है- कुशलता, चतुराई, ‘अयोध्या’ का अर्थ है वह स्थान जो युध्द से परे हो। इस तरह अगर हम इन सभी शब्दों की व्याख्या को अपने आप पर लागू करें तो इसका निहितार्थ होता है, कुशलता से अपनी दस इंद्रियों पर नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति, जो वैचारिक युध्द से अपने आपको दूर रखे, वही राम को जन्म दे सकता है –राम यानी अपने अंतरतम का प्रकाश।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच डॉ. चंद्रा ने कहा, जब हमारे मन में द्वंद चलता है तो हम तनाव में रहते हैं, लेकिन जब मन द्वंद रहित होता है तो हम प्रफुल्लित रहते हैं। उन्होंने कहा कि राम आस्था के प्रतीक हैं, सीता दीपक की, श्वास हनुमान की और लक्ष्मण हमारी चेतना के प्रतीक हैं। रावण हमारे अभिमान का प्रतीक है। अगर हम रामायण को इस यथार्थ के साथ समझने की कोशिश करेंगे तो हमारे जीवन के कई जटिल सवालों के जवाब हमें अपने आप से ही मिल जाएंगे।
उन्होंने कहा, जब आत्मा अहंकार में आ जाती है तो हम दिमागी संतुलन खो बैठते हैं। राम सीता को अकेले वापस नहीं ला सकते थे, उसमें उनके साथ लक्ष्मण रूपी सजगता और हनुमान रुपी श्वास की सहायता आवश्यक थी। सीता प्राप्त होते ही हमारे अंदर का रावण नष्ट हो जाता है। इस तरह रामायण हर पल हमारे साथ घटित हो रही है। मैने विपश्यना के माध्यम से अपने आपके अंदर यही संतुलन साधने की कोशिश की है।
वनवासियों के साथ अपने अनुभवों का उल्लेख करते हुए डॉ. चंद्रा ने कहा कि 1990-91 में 30-40 लोगों के साथ वनयात्रा पर गए थे और उस वनयात्रा में हमारे भारत की असली तस्वीर के साथ ही भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्यों और आदर्शों को जीवंत रूप में अनुभव किया। उन्होंने समाज के सभी लोगों आव्हान किया कि वे अपने कमाई का कुछ हिस्सा अपने से वंचित वर्ग के लिए भी दें। आज हम एकल विद्यालय के माध्यम से 50 लाख बच्चों को शिक्षा दे पा रहे हैं, ये सब समाज के सहयोग से ही संभव हुआ है।
उन्होंने कहा कि मैं संसद में इसलिए गया हूँ कि वहाँ बैठकर देश हित में कुछ काम कर सकूँ। मैं वहाँ मूकदर्शक बनकर नहीं बैठूँगा मुझे परमात्मा ने हर क्षेत्र में सफलता प्रदान की , अब मुझे अपने लिए किसी चीज की कोई चाह नहीं। आज ज़ी टीवी दुनिया के 171 देशों में पहुँच चुका है। हम भारतीय कार्यक्रमों को दुनिया के अलग-अलग देशों में उनकी भाषाओं में टेवीविज़न पर दिखा रहे हैं। अब हमारे कार्यक्रम अरबी, अंग्रेजी, रुसी, जर्मनी और इंडोनेशिया में बहासा भाषा में प्रसारित कर रहे हैं। ज़ी के माध्यम से हमारी कल्पना है कि हम 2030 तक दुनिया के हर देश में हमारे संस्कारों, जीवन मूल्यों और कला व संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का प्रसारण करने में सफलता प्राप्त कर लेंगे। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ ही हमारे हिंदुत्व की भावना है।
इस अवसर पर डॉ. सुभाष चंद्रा का परिचय देते हुए श्री भागवत परिवार मुंबई के प्रेरणास्त्रोत श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कहा, डॉ. सुभाष चंद्रा 20 वर्ष की आयु में मात्र 17 रु. लेकर हिसार से दिल्ली गए थे और आज उन्होंने अपने पुरुषार्थ, कर्मयोग व दूरदृष्टि से भारत को निजी सैटेलाईट चैनलों को नया आकाश प्रदान किया है। डॉ. सुभाष चंद्रा की सफलता हमें आश्वस्त करती है कि उनके माध्यम से हमारी भारतीय जीवन दृष्टि पूरे विश्व का मार्ग प्रशस्त करेगी। उन्होंने कहा, डॉ सुभाष चंद्रा के रूप में देश को एक ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व मिला है जिसने भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में अपनी पहचान एक ऐसे सफल उद्यमी के रूप में बनाई है जिससे हर भारतीय अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है।
इस अवसर पर श्री सुरेंद्र विकल ने बताया कि श्री हरि सत्संग समिति द्वारा वनवासी क्षेत्र में चलाए जा रहे संस्कार रथों की वजह से वनासी शराब और माँसाहार जैसी बुराईयों से दूर रहने लगे हैं। एक रथ 80 से 100 गाँवों में जाकर 4 हजार वनवासियों को संस्कारित करता है। जब किसी वनवासी क्षेत्र में रथ जाता है तो पूरे गाँव में उत्सव का माहौल बन जाता है। लोग पूरी रात जागरण कर भजन कीर्तन करते हैं। वनवासी क्षेत्रों में अभी 24 रथ चल रहे हैं जो एक माह में 1 लाख वनवासियों से संपर्क करते हैं। इनमें से 12 रथ मुंबई के लोगों ने प्रदान किए हैं, 12 रथ अन्य शहरों ने प्रदान किए हैं और एक रथ कोलकोता और एक रथ सूरत के लोगों ने प्रदान किया है। इस अवसर पर उद्योगपति श्री रमाकांत टिबड़ेवाल ने एक और रथ प्रदान करने की घोषणा की।
इस अवसर पर जाने माने उद्योगपति श्री सुरेश खंडेलिया ने कहा कि पहले तो श्री हरि सत्सग समिति के नाम से मुझे लगा कि ये कोई भजन मंडली है, लेकिन जब मैने इसके कामों को देखा तो मुझे आश्चर्य हुआ कि ये लोग किस समर्पित भाव से वनवासियों को संस्कारित करने का काम कर रहे हैं।