अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब इस्लामी कानूनों के अनुरूप मुद्दों को हल करने के लिए देश के सभी जिलों में दारुल-कजा यानी शरीयत अदालत खोलने की योजना बना रहा है। इस प्रस्ताव को चर्चा के लिए 15 जुलाई को दिल्ली में होने वाली मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में पेश किया जाएगा। बोर्ड के इस फैसले पर भाजपा सांसद और वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आपत्ति जताई है उनका कहना है कि यहां केवल एक कानून और एक अदालत है। किसी और को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
स्वामी ने कहा, ‘यह वास्तव में देश को बांटने और अलगाव पैदा करने का जरिया है। यहां केवल एक अदालत और एक कानून है। संविधान हमारा मार्गदर्शक रहा है और उसके बाहर कुछ भी स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस तरह के किसी भी प्रयास के खिलाफ सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और इन लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।’
वहीं कर्नाटक के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमीर अहमद खान ने मुस्लिम बोर्ड के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा, ‘यह अच्छा प्रपोजल है। इससे हमारी परेशानियों का समाधान मिलेगा। भारत में केवल एक कानून है लेकिन इसका मकसद केवल मुस्लिमों के बीच जागरुकता लाना है।’ बोर्ड द्वारा हर जिले में शरीयत अदालत खोलने के प्रस्ताव को चर्चा के लिए 15 जुलाई को दिल्ली में होने वाली बैठक में पेश किया जाएगा।
बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी जफरयाब जिलानी ने बताया कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में 40 ऐसी अदालतें चल रही हैं। हम देश के सभी जिलों में कम से कम एक ऐसी अदालत खोलने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि दारुल-कजा का उद्देश्य अन्य अदालतों के बजाय शरीयत कानूनों के हिसाब से मामलों को हल करना है।
भाजपा सांसद ने जम्मू-कश्मीर मसले पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, ‘जम्मू और कश्मीर में एक हिंदू को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। यदि पीडीपी के पास हिंदू या सिख विधायक है तो हम उसे मुख्यमंत्री बना सकते हैं। नेहरु द्वारा जम्मू-कश्मीर में किसी मुस्लिम को ही मुख्यमंत्री बनाने के रिवाज को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’