डॉक्टर का प्रोफेशन समाज में सबसे नोबल प्रोफेशन माना जाता है। जब कोई बीमार व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है और ठीक होकर लौटता है, तो वह डॉक्टर उसके लिए भगवान के समान होता है। लेकिन कहा जाता है आज के समय में अच्छे डॉक्टर किस्मत वालों को ही मिलते हैं।
इस पर भी अस्पताल और दवाई का खर्च इतना अधिक होता है कि गरीब तो कई बार अपना इलाज करवा ही नहीं पाते। …लेकिन शहर में कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जिनके लिए डॉक्टरी सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा है। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं डॉ. ऊषा श्रीवास्तव, जो पिछले 40 वर्षों से न केवल गरीब महिलाओं की मुफ्त में डिलेवरी कर रही हैं बल्कि जरूरत होने पर उन्हें पैसा भी देती हैं।
डॉ. ऊषा ने बताया कि बचपन से ही मेरे मन में लोगों को तकलीफ में देखकर एक अजीब सी उलझन पैदा हो जाती थी। हमेशा सोचती थी कि लोगों की बीमारी और तकलीफों को दूर करने के लिए कुछ करना चाहिए। इसीलिए एमबीबीएस किया। पढ़ाई के दौरान ही नियमित रूप से ब्लड डोनेट करने जाती थी।
डॉक्टर बनने के बाद लगा कि अब राह आसान हो जाएगी, लेकिन अंतरजातीय विवाह होने की वजह से दोनों परिवारों ने नहीं अपनाया। फिर भी हिम्मत नहीं हारी और ईएसआईसी हॉस्पिटल में नौकरी मिली। पूरे महीने सैलेरी का इंतजार किया, लेकिन जिस दिन सैलेरी मिली उसी दिन देखा एक महिला का डायलिसिस होने वाला है, लेकिन उसके पास पैसा नहीं है। मैंने वो पहली सैलेरी उसके इलाज के लिए दे दी। घर जाकर पति को कहा कि अगले महीने एक साथ दो महीने की सैलेरी मिलेगी।
धीरे-धीरे स्थिति ठीक होती गई। दोनों ही अपने आपको स्थापित कर चुके थे। फिर मैंने एमएस किया और जरूरतमंद महिलाओं के फ्री में सिजेरियन ऑपरेशन करने शुरू किए। बाद में पति के सहयोग से जगह-जगह कैंप लगातार लोगों को इलाज के साथ दवाइयां वितरित करनी शुरू कीं। डॉ. ऊषा ने बताया कि एक बार सेंट्रल जेल गई तो देखा कि वहां जीवन व्यतीत कर रही महिलाओं की स्थिति बहुत बदतर है, तो उनका चेकअप करना शुरू किया और फिर डिस्ट्रिक्ट जेल में रह रहीं महिलाओं को भी इलाज के साथ-साथ जरूरत का सामान देना शुरू किया।
डॉ. ऊषा फैमिली प्लानिंग के कैंपों में हजारों ऑपरेशन कर चुकी हैं, जिसके लिए उन्हें फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया से अवॉर्ड भी मिल चुका है। तीन साल पहले रिटायर होने के बाद डॉ. ऊषा ने इंदौर के पास नागदा, उज्जैन, खंडवा, खरगौन, भोपाल में भी कैंप लगाने शुरू किए और 63 साल की उम्र में भी ऐसा एक दिन भी नहीं जाता जिस दिन वो किसी गरीब मरीज का इलाज न करें।
डॉ. ऊषा का कहना है मैं हर मरीज को अपने परिवार का हिस्सा मानती हूं। जब मेरे पास आकर कोई मरीज स्वस्थ होकर मुस्कुराता हुआ वापस जाता है तो जो आत्मसंतुष्टि मिलती है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है। पैसा तो यहीं रह जाता है अगर किसी की जिंदगी बचा सकें तो इससे बड़ी कमाई कोई नहीं हो सकती।
साभार- http://naidunia.jagran.com/ से