अफगानिस्तान-पाकिस्तान के क़बाइली इलाकों विशेषकर पाक-अफगान सीमांत क्षेत्र के उत्तरी वज़ीरिस्तान में आए दिन होने वाले ड्रोन हमले पाकिस्तान में चर्चा का विषय बने हुए हैं। ड्रोन हमलों की मुखालिफत करने वाला वर्ग इन हमलों को पाकिस्तान की संप्रभुता पर अमेरिकी हमला बता रहा है। जबकि पाकिस्तान का एक बड़ा अमनपसंद वर्ग इन हमलों को लेकर भीतर ही भीतर काफी खुश भी है। ऐसे लोगों की खुशी का सीधा सा कारण यह है कि स्वचालित ड्रोन विमान प्रणाली से छोड़ी जाने वाली मिसाईल प्राय: ऐसे शीर्ष आतंकवादियों विशेषकर तालिबान व तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान तथा हक्कानी गुट से जुड़े सरगनाओं को निशाना बना रही है जिनके पास पाकिस्तानी सेना का हाथ पहुंच पाना आसान नहीं है।
यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि ड्रोन हमलों को अमल में लाने के लिए अमेरिका को स्थानीय लोगों की ही सहायता लेनी पड़ती है। और प्राय: यह लोग पश्तो भाषी स्थानीय निवासी ही होते हैं जो सीआईए के एजेंट के रूप में काम करते हैं। इन्हें अमेरिका द्वारा ड्रोन हमले की सफलता तथा मारे गए आतंकवादी की खबर की पुष्टि के पश्चात भारी भरकम रकम से तो नवाज़ा ही जाता है साथ-साथ यदि सूचना देने वाला चाहे तो उसकी सुरक्षा के दृष्टिगत उसे अमेरिकी राष्ट्रीयता भी प्रदान की जाती है। इन हमलों में सूचना देने वालो द्वारा सिम कार्ड,जीएसएम तथा जीपीआरएस प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय मुखबिर द्वारा जैसे ही किसी सटीक निशाने की सूचना निर्धारित यूएस अधिकारियों को गुप्त स्थान से दी जाती है शीघ्र ही अमेरिकी सेना ड्रोन कंट्रोल रूम नेवादा (अमेरिका) को इसकी सूचना स्थानांतरित कर देता है। और पलक झपकते ही नेवादा से ड्रोन विमान को उड़ान भरने का आदेश कंप्यूटरीकृत प्रणाली द्वारा दे दिया जाता है। इसके पश्चात अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस में भारी अमेरिका बंदोबस्त में मिसाईल से लैस होकर रखे गए चालक रहित ड्रोन विमान आसमान में उड़ान भरने लगते हैं और कुछ ही क्षणों में अपने अचूक निशाने से अपने लक्ष्य को भेद डालते हैं।
गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना व पाक सरकार अफगान तालिबान तथा स्थानीय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने के बाद पस्त होकर अब इस नतीजे पर पहुंच चुकी है कि तालिबानों को लड़कर परास्त नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह हरगिज़ नहीं है कि पाकिस्तानी सेना तालिबानों से कमज़ोर है बल्कि इसका मु य कारण यह है कि तालिबानी विचारधारा ने पाक सरकार से लेकर पाक सेना तथा आईएसआई जैसे संस्थानों तक में अपनी पैठ मज़बूत कर ली है। यही वजह है कि तालिबान कई बार पाक सैनिक ठिकानों पर बड़े हमले कर चुके हैं।
इसी कारण पाक सरकार ने अब तालिबानों के साथ बातचीत करने की पेशकश की है। उधर अफगानिस्तान में भी अमेरिकी सेना अफगान सरकार के माध्यम से अच्छे व बुरे तालिबानों के मध्य अंतर करने एवं तथाकथित अच्छे तालिबानों को विश्वास में लेने जैसी मुहिम को प्रोत्साहन दे रही है। परंतु तालिबानों से वार्ता के प्रस्ताव के दौरान ही बीच में जब अमेरिकी ड्रोन हमले में किसी बड़े आतंकवादी की मौत हो जाती है तो पाक सरकार व तालिबानों के मध्य होने वाली बातचीत को गहरा झटका लगता है। उदाहरण के तौर पर गत् एक नवंबर को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का प्रमुख तथा बेनज़ीर भुट्टो की हत्या का मु य अभियुक्त हकीमुल्ला महसूद उत्तरी वज़ीरीस्तान में एक सफल ड्रोन हमले में मारा गया। जिस दिन हकीमुल्ला की मौत हुई उसी दिन पाकिस्तान सरकार का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल इस आतंकी से वार्ता के लिए उत्तरी वज़ीरीस्तान भी जाने वाला था। परंतु इस प्रस्तावित वार्ता से मात्र चंद घंटे पूर्व हकीमुल्ला महसूद की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए।
एक ओर तो तालिबान ने महसूद की मौत के बाद पाकिस्तान सरकार से किसी भी प्रकार की वार्ता भविष्य में न करने का एलान किया है। दूसरे यह कि पाक तालिबान की ओर से हकीमुल्ला महसूद की मौत का ऐतिहासिक बदला लिए जाने की धमकी दी गई। उधर पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खां ने भी यह बयान दिया कि जब तक अमेरिका ड्रोन हमलों को नहीं रोकता तब तक तालिबान के साथ बातचीत का सिलसिला आगे नहीं बढ़ सकता। पिछले दिनों खैबर प तून वाह के शहरी क्षेत्र में भी हक्कानी नेटवर्क द्वारा संचालित आतंकवादियों के एक तथाकथित मदरसे के बाहर हक्कानी नेटवर्क के तीन आतंकवादियों को ड्रोन हमले में निशाना बनाया गया। इस हमले पर भी पाकिस्तान के गृहमंत्री ने यही बयान दिया कि यह हमला किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं बल्कि पाक तालिबान वार्ता को धक्का पहुंचाने के मकसद से किया गया हमला है। हालांकि इसी के साथ-साथ चौधरी निसार को यह सफाई भी देनी पड़ी कि इन ड्रोन हमलों में पाक हुकूमत व पाकिस्तानी सेना का कोई हाथ नहीं है।
पाकिस्तान हुकूमत के किसी न किसी ज़िम्मेदार मंत्री को समय-समय पर ड्रोन हमलों में पाक सरकार अथवा पाक सेना की संलिप्तता को लेकर ऐसी सफाई देनी पड़ती है। इस का कारण यही है कि तालिबानों को इस बात को लेकर संदेह है कि पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में अमेरिकी ड्रोन विमान बिना पाकिस्तानी सेना व सरकार की सहमति के कैसे उड़ान भर सकते हैं? पाकिस्तानी वायु सीमा क्षेत्र का अमेरिकी ड्रोन द्वारा उल्लंघन किए जाने के पीछे केवल दो ही कारण हो सकते हैं।
एक तो यह कि पाकिस्तानी सेना व सरकार गुप्त रूप से अमेरिका के साथ मिलीभगत रखती है। और दूसरा यह कि अमेरिका अपने लक्ष्यों को साधने के आगे पाकिस्तानी वायु सीमा व संप्रभुता जैसी बातों की कोई परवाह नहीं करता। इसका जीता-जागता उदाहरण एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो द्वारा ओसामा बिन लाडेन को मार गिराया जाना तथा उसके मृत शरीर को अपने साथ उठा ले जाना शामिल है। ड्रोन हमलों के परिपेक्ष्य में यहां एक बात और याद दिलाना ज़रूरी है कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी युद्ध में अमेरिका का विशेष सहयोगी भी है। इसलिए इस बात पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता कि पाक सेना व सरकार की अमेरिकी ड्रोन हमलों के लिए रज़ामंदी नहीं है।
बहरहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के कार्यालय में विदेशी मामलों के प्रमुख सरताज अज़ीज़ ने पिछले दिनों खैबर प तून वाह प्रांत में हुए ड्रोन हमले के बाद यह कहा है कि पाकिस्तान व तालिबानों के मध्य होने वाली वार्ता के दौरान अमेरिका अब कोई ड्रोन हमला नहीं करेगा। परंतु अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो सका है कि सरताज अज़ीज़ से किस अमेरिकी अधिकारी ने कब और किस स्थान पर इस प्रकार का कोई वादा किया है। अज़ीज़ ने यह भी स्वीकार किया है कि तहरीक-ए-तालिबान प्रमुख हकीमुल्ला महसूद की ड्रोन हमलों में हुई मौत के बाद तालिबानों से होने वाली बातचीत प्रभावित हुई है। वैसे भी ड्रोन हमलों में जब कभी कोई निर्दोष नागरिक, स्कूल के बच्चे,औरतें अथवा बुज़ुर्ग निशाना बनते हैं तो निश्चित रूप से अमेरिका के विरुद्ध एक जनाक्रोश पैदा हो जाता है और इस जनाक्रोश को यही आतंकी तालिबान और अधिक हवा देते हैं।
नतीजतन ड्रोन हमलों के विरोध में पाकिस्तान में कई बार बड़े से बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित होते रहे हैं। परंतु अमेरिका इन विरोध प्रदर्शनों तथा तालिबानों की घुड़कियों के बावजूद यहां तक कि पाकिस्तान सरकार व तालिबान के मध्य प्रस्तावित शांति वार्ता की परवाह किए बिना अपने आतंकी लक्ष्यों को भेदने से नहीं चूकता।
उपरोक्त परिस्थितियों में यह सोचने का विषय है कि अमेरिका द्वारा किए जा रहे ड्रोन हमले पाकिस्तान के लिए ज़हमत अथवा परेशानियों का कारण है या इसे रहमत समझा जाना चाहिए। क्योंकि आिखरकार अमेरिकी ड्रोन बड़ी ही खामोशी से किसी बड़े आतंकी सरगना को मार कर उस काम को अंजाम दे डालते हैं जो काम पाकिस्तानी सेना आसानी से नहीं कर पाती। पाकिस्तानी सेना में तथा आईएसआई में घुसपैठ कर चुका तालिबानी तंत्र आतंकवादियों को पाक सेना की प्रस्तावित कार्रवाई व इरादों से पहले से ही अवगत करा देता है।
परिणामस्वरूप या तो आतंकवादी अपने ठिकाने छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं या फिर सेना की टुकड़ी से बड़ी तादाद में इक_ा होकर मोर्चा संभालते हैं तथा पाकिस्तानी सेना को जान व माल की भारी क्षति पहुंचाते हैं। ऐसे में यदि यह कहा जाए कि अमेरिकी ड्रोन हमले आतंकियों को निशाना बनाकर पाकिस्तानी सेना का ही हाथ बंटा रहे हैं तो यह कहना भी कतई गलत नहीं होगा। ऐसे में भले ही तालिबान समर्थकों व कट्टरपंथियों को तथा इन हमलों में मारे जाने वाले कुछ बेगुनाह नागरिकों को यह हमले ज़हमत अथवा दु:खदायी प्रतीत होते हों परंतु पाकिस्तान व दुनिया के शांति पसंद लोगों को यहां तक पाकिस्तान सेना के ईमानदार अधिकारियों व आतंकवाद का विरोध करने वाले मानवताप्रिय लोगों के लिए यह हमले खुदा की रहमत से कम नहीं हैं।
तनवीर ज़ाफरी
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