Monday, November 25, 2024
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Homeश्रद्धांजलिहर दिल अज़ीज थे कवि सनन

हर दिल अज़ीज थे कवि सनन

 

*मैंने प्यार पाया है महफिलों में लोगों से ।
वरना मेरी जिंदगी तो जिंदगी नहीं होती।।

इस पंक्तियों के लेखक उज्जैन शहर में पिछले तीन दशक से साहित्यिक गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में अपनी एक अलग पहचान वाले पं. अरविंद त्रिवेदी सनन 7सितम्बर, रविवार को अचानक हृदयाघात के कारण अनंत की यात्रा पर निकल गये। कविता,गीत,गजल,दोहे,छंद सब कुछ उन्होंने लिखें और सबसे महत्पूर्ण बात सामयिक रचना कर्म में उनका कोई तोड़ नहीं था, देश में कोई भी घटना हो या कोई विशेष अवसर हो वे त्वरित रचना लिख देते थे। जहॉ मंचों पर वे बहुत ही मनोरंजक और हॉस्य प्रधान प्रस्तुति दे कर श्रोताओं को खूब हंसाते थे वहीं गोष्ठियों और पारिवारिक मंचों पर दर्शन और अध्यात्म से भरपूर रचना का पाठ करते थे । इसीलिए वे अक्सर अपनी गजल में कहते थे-

मैं जैसा हूं ,जहां भी हूं ,बड़ा महफूज़ हूं यारों।
मुझे अच्छा नहीं लगता किसी पहचान में रहना।।
सफर दो नाव का करना इसी को लोग कहते हैं ।
जिगर में दर्द को पाले स्वयं मुस्कान में रहना ।।

उनका लेखन तो कसावट और छंद के मापदंड पर सही था ही मंच पर उनकी प्रस्तुति अदम्य आत्मविश्वास से भरी होती थी और आवाज में इतनी बुलंदी की बिना माईक के पूरा सदन उनकी आवाज सुन सकता था । सनन जी ने अपने जीवन में कई रंगमंचीय नाटकों में भी काम किया और नाटक के गीत लिखे भी लिखे इस बात को बहुत कम लोग जानते है गुणवंती नाटक के एक शीर्षक गीत में वे लिखते है-

ओ गुणवन्ती मेरी प्यारी मेरी, महल न मुझको सुहायें।
कहा हैं वो मेरी फटी सी गुदड़िया बिना उसके नींद न आये।।

सननजी की विशेषता थी की वे सभी के मित्र थे अदावत नाम की कोई चीज उनके जीवन में थी ही नहीं एक बार जिसने उनको सुन लिया वह उनका कायल हो गया । कृष्ण सुदामा की मित्रता को ले कर उनका एक गीत बहुत प्रसिद्ध है जो उज्जयिनी की महिमा के साथ वे प्रस्तुत करते हुए कहते थे-

कभी सुदामा कृष्ण सरिखें, इस धरती पर विद्या सीखे।
नये दौर में हमने सीखे,जीने के कुछ नये तरीके ।
तो आज भी ढूंढा करता हूँ,वो दिलदार कहॉ।
कहने को बस रही मित्रता, वैसा प्यार कहॉ।

पिछले 8 सालों से वे एक महत्वपूर्ण रचना मधुराधर के लिए सृजनरत्त थे श्रीकृष्ण के चरित्र और वर्तमान में श्रीकृष्ण की महिमा को ले कर सनन जी ने एक गीतिकाव्य कृति मधुराधर की थी जो की कुछ महिनों पहले ही 111 छंदों मे निबद्ध हो कर पूर्ण हो गई इस रचना में उन्होने एक पद में कहा है-

क्या हिन्दू और क्या मुस्लिम सबको मधुराधर भाये ।
कुछ कलाकार एेसे भी फिल्मी दुनिया में आये ।
जब युसूफ ने ओंठ हिलाये वे भजन रफ़ी ने गाये ।
तो संगत नौशाद की सूचि में क्या खय्याम नहीं।।
ये अधर व्यर्थ है तेरे,इनका कोई काम नहीं।
जब तक इन अधरों पर है मधुराधर नाम नहीं।

उज्जैन के कवि सम्मेलनों में शहीद बलराम जोशी को समर्पित उनके गीत का पाठ होने के बाद उस ऊंचाई की कविता कोई नहीं पढ़ पाता था यह उनके रचनाकर्म की श्रेष्ठतम् रचना है । रचना पाठ के पहले वे सीमा पर चौकस जवानों के सम्मान में एक मुक्त कहते थे-

हम जीते हर जंग यहॉ, नहीं गिराई साख को ।
कभी शहीद हूआ कोई तो , शीश चढ़ाई राख को।।
हम अर्जुन हैं वृक्ष न देखा ,न देखा उस चिड़िया को ।
हमने सदा लक्ष्य पर रक्खा उस चिड़िया की आंँख को।।

अपने काव्यपाठ की शुरुआत सननजी हमेशा एक गजल के दो शेरो से करते थे जो की मॉ को समर्पित है-

मॉ अनपढ़ है पर बच्चों का मन पढ़ लेती है।
किस्से रोज नये जाने कैसे गढ़ लेती है।
उम्र,तगारी का दोहरा बोझा ले कर।
नये मकानों की सीढ़ी कैसे चढ़ लेती है।।

पेशे से तीर्थपुरोहित रहे सनन जी हरदिल अजीज थे। 29 जुलाई1959 को जन्में सननजी अपने पैत्रिक कार्य को जीवन भर आगे बढ़ाते रहे। साहित्य जगत के कई प्रतिष्ठा सम्मान भी उन्हें मिले,दूरदर्शन और सब टीवी पर भी वे काव्य पाठ कर चूके थे।उनकी एक गजल कृति हर घर में उजाला जाए प्रकाशित हुई है। और अगली कृति मधुराधर को प्रकाशित करवाने की तैयारी में लगे थे। सननजी का यूं एकदम चले जाना मित्रों के लिए तो दुखद है ही,साहित्य जगत के लिए भी अपूर्णीय क्षति है। क्योंकि सननजी ऑलराउंडर कवि थे। विनम्र श्रद्धांजलि सननजी को…।

-संदीप सृजन
उज्जैन
मो. 9406649733

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