ज़ी एवँ एस्सेल समूह के अध्यक्ष व राज्य सभा सांसद श्री सुभाष चन्द्रा ने पिछले दिनों लेडिज़ स्टडी ग्रुप कोलकाता द्वारा आयोजित एक संवाद में उपस्थित महिला श्रोताओं से परोपकार, शिक्षा, सफलता और कारोबार से जुड़े विभिन्न विषयों पर संवाद किया।
इस अवसर पर अपनी सफलता के मंत्र पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “यह एक सच्चाई है जिसे हम सब जानते तो हैं मगर स्वीकार नहीं कर पाते हैं, वह है वर्तमान में जीना।
भूतकाल व्याकुल करे, या भविष्य भरमाए, वर्तमान में जो जिये तो जीना आ जाए। ”
प्रश्नोत्तर सत्र में सुभाषजी से जब पूछा गया कि सुभाष चन्द्रा शो शुरु करने की प्रेरणा उन्हें कहाँ से मिली, तो उन्होंने अपने पूज्य पिताजी से कुछ साल पहले हुई बातचीत को याद करते हुए कहा, कि यह एक परंपरा है कि हम जो भी कमाएँ उसका दस प्रतिशत परोपकार के लिए खर्च करें और इसका पालन उनके साथ ही कई लोग करते आ रहे हैं। मेरे पिताजी ने मुझसे पूछा कि परोपकार के लिए कमाई का हिस्सा देना तो ठीक है लेकिन पिछले पचास सालों में तुमने जो अनुभव और समझ विकसित की है, उसका लाभ समाज को कैसे मिले। बस इसी बात पर मुझे ये शो शुरु करने की प्रेरणा मिली कि मैने अपने कैरियर के इतने सालों में जो भी कुछ सीखा है उसको मैं दूसरे लोगों के साथ साझा करुँ।
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और सीखने की स्थिति पर उन्होंने कहा, हमें शिक्षा को समझने के लिए अतीत में जाना पड़ेगा। हममें से हर कोई एक विशिष्ट प्रतिभा के साथ पैदा हुआ है। भारत की हमारी परंपरागत शिक्षा में शिक्षा व्यक्ति की प्रतिभा के अनुसार दी जाती थी। हमारे गुरूकुलों में ऐसी ही व्यवस्था थी, लेकिन अंग्रेजों ने ये व्यवस्था नष्ट कर दी और शिक्षा को एक जैसा बना दिया। लेकिन किसी एक जैसी शिक्षा सबके लिए उपयोगी नहीं हो सकती, प्रतिभा और शिक्षा में कोई सामंजस्यता नहीं है।
उन्होंने कहा, “अनुभव तो प्राप्त किया जा सकता है, ज्ञान भी हासिल किया जा सकता है, लेकिन प्रतिभा का स्थानांतरण नहीं किया जा सकता। हर व्यक्ति की अपनी प्रतिभा होती है, ज़रुरत उसे पहचानने की है।” उन्होंने कहा, “इन दिनों बच्चों को बहुत कम उम्र में ही स्कूल भेज दिया जाता है, जिसकी वजह से वे अपने घर में बड़े-बुज़ुर्गों से कुछ सीख ही नहीं पाते हैं।”
उन्होंने आस्था की शक्ति पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सत्तर के दशक में बिरला समूह की किसी भी फैक्ट्री में यूनियनों की हड़ताल क्यों नहीं हुई। उन्होंने कहा कि बिरला समूह ने हर फैक्ट्री परिसर में मंदिर बनाए और श्रमिकों को कहा कि उनकी मेहनत और प्रयास के लिए उन्हें वेतन दिया जाता है लेकिन इसके साथ ही कुछ हिस्सा मंदिर के लिए भी दिया जाता है। इसके माध्यम से सुभाष जी ने बताया कि आस्था की शक्ति से क्या कुछ हो सकता है और और ये विश्वास होना कि आगे भी सब ठीक होगा, इससे किसी भी व्यक्ति में जीवन में आगे आने वाली अज्ञात समस्याओं के समाधान का गुण भी अपने आप विकसित हो जाता है।
जब उनसे पूछा गया कि एक प्रबंधक और एक उद्यमी में क्या अंतर है और कोई कैसे एक प्रबंधक उद्यमी से आगे जा सकता है, उन्होंने कहा, एक प्रबंधक भी एक उद्यमी हो सकता है। मैं उन्हें एंट्रा-प्रेन्योर कहता हूँ। ऐसे कई प्रबंधक हैं जो उद्यमी भी हैं। अंतर बस इतना है कि एक असली उद्यमी अपनी ही पूँजी, अपने ही धन और अपनी ही संपत्ति के साथ जोखिम लेता है। जबकि एक प्रबंधक संस्थान के संसाधनों काउपयोग करके जोखिम लेता है, इस तरह वह भी एक उद्यमी का ही काम करता है। एक सामान्य प्रबंधक तो हमेशा अपने बॉस का कहना मानेगा, वह उसके आगे कुछ सोचेगा भी नहीं।
परोपकार क्या है-इस पर चर्चा करते हुए सुभाष जी ने कहा, यहाँ कई ऐसे लोग होंगे जो देने का आनंद जानते हैं, लेकिन दुनिया में ऐसे भी कई लोग हैं जो केवल लेना ही जानते हैं, और वे देने के आनंद से वंचित रह जाते हैं। परोपकार का सोच हर आदमी के लिए अलग होता है। कुछ लोग धार्मिक स्थानों के लिए दान करते हैं, कुछ शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सामाजिक कार्यों आदि के लिए दान करते हैं। देने के जिस भाव से भी आपको आनंद मिलता है , यही आपके लिए परोपकार की भावना है। आप किसी देने वाले को ये निर्देश नहीं दे सकते कि उसे कहाँ और किस तरह से दान देना है।
फाउंडेशन और इसके कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, “सुभाष चन्द्रा फाउंडेशन में हमारी सोच यह है कि समाज को कैसे सक्षम बनाएँ और दुनिया में जो चुनौतियाँ हैं उनका सामना कैसे करें। उदाहरण के लिए जब हम किसी को छात्रवृत्ति देते हैं तो उससे कहते हैं कि जब वे अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और कमाने लगें तो उनको चाहिए कि वे तीन ज़रुरतमंद विद्यार्थियों की मदद कर उनका सहारा बनें, ये सिलसिला ऐसे ही आगे बढ़ता रहेगा। हम सबको साथ मिलकर लोगों की क्षमता विकसित कर उन्हें योग्य बनाना चाहिए बजाय इसके कि हम पैसे देकर उन्हें किसी के आश्रित बना दें।“
प्रतिभा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, अपने बच्चों की प्रतिभा को पहचानिये। उस पर गौर करें। बच्चे जो भी बार बार करना चाहें उन्हें करने दें क्योंकि इसीमें उनकी प्रतिभा छुपी होती है। पैदा होने वाले हजारों बच्चों में से दो या तीन बच्चे विलक्षण होते हैं। उनके माता-पिता तो उनकी ये विलक्षणता समझ नहीं पाते हैं, उनके शिक्षक और हमारी शिक्षा व्यवस्था भी उनकी प्रतिभा की पहचान नहीं कर पाती है। इसकी वजह से वह बच्चा समाज के लिए उपयोगी होने की बजाय एक समस्या बन जाता है। उसका आचरण सबसे अलग होने लगता है और हम भी इसे अलग तरह से लेने लगते हैं। हम ये समझ पाने में असफल रहते हैं कि ऐसे बच्चों के अंदर कुछ विलक्षणता है। उन्होंने अनुरोध किया कि हम अपने अंदर मौजूद क्षमता को पहचानें और अपनी प्रतिभा को विकसित करें।
इस सीधे संवाद कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे। लेडिज़ स्टडी ग्रुप कोलकाता विगत पाँच दशकों से महिलाओँ के सशक्तीकरण, महिला उद्यमियों और कुछ करने की इच्छथुक महिलाओँ को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है।