अब सोशल मीडिया में एक नई कहानी चल रही है। ऐसी कहानी, जो आपने मुगलों का गुणगान करने वाले लेखकों ऑड्रे ट्रस्की और इरफ़ान हबीब की किताबों में भी नहीं पढ़ी होगी। इस कहानी में संवेदनशीलता, न्यायप्रियता, सस्पेंस और थ्रिल – सब कुछ डालने का प्रयास किया गया है। इसे कुछ ऐसे पेश किया गया है, जैसे ये सच्चा इतिहास हो। साथ ही इसके जरिए एक बड़े अपराध को ढँकने की कोशिश भी बड़ी चालाकी से की गई है।
आइए, अब एक नए तरह के दावे से आपका सामना कराते हैं। PhD कर रही पत्रकार सदफ आफरीन ने ट्विटर पर एक कहानी सुनाई। उनके शब्दों में मानें तो ये कहानी है औरंगजेब द्वारा किए गए एक ऐसे इंसाफ की, जिसे छिपाया गया। बड़ी अजीब बात है न कि किसी मुस्लिम शासक की अच्छी बात छिपाई गई? अब तक तो माहौल ऐसा रहा है कि पुस्तकों से लेकर फिल्मों तक में मुग़ल आक्रांताओं के अत्याचारों को भी जायज ठहरा कर उनका महिमामंडन किया जाता रहा है।
उनकी इस कहानी का मुख्य पात्र है औरंगजेब और एक ब्राह्मण की बेटी शकुंतला। साथ ही वाराणसी में स्थित धनेडा का मस्जिद। सदफ आफरीन की कहानी की मानें तो एक मुस्लिम सेनापति ने शकुंतला के पिता को आदेश दिया कि अपनी बेटी को सज़ा-धजा कर 1 सप्ताह बाद उसके यहाँ भेज दे। पिता जाकर कहा कि उसके पास सजाने-धजाने के लिए रुपए नहीं हैं, और एक महीने का वक्त माँग लिया। लड़की फरियाद लेकर औरंगजेब के पास पहुँच गई।
वो अपनी कहानी में आगे बताती हैं कि जुमे की नमाज के बाद औरंगजेब आम लोगों की समस्याएँ सुनता था। शहजादे की लिबास में जब लड़की ने औरंगजेब को चिट्ठी दी, तब उसने हाथ पर कपड़ा डाल कर उसे लिया क्योंकि वो पहचान गया था कि वो एक लड़की है। औरंगजेब ने उसे बेटी कह कर कई बार पुकारा। औरंगजेब ने कहा कि चीजें पूर्ववत ही रहेंगी, लड़की को डोली में बैठ कर मुस्लिम सेनापति के पास जाना ही होगा।
कहानी में सस्पेंस जोड़ते हुए सदफ आफरीन आगे लिखती हैं कि लड़की सोच रही थी कि औरंगजेब ने उसे 15 बार बेटी कह कर बुलाया, फिर भी डोली उठने वाली बात ही कही। कहानी कुछ यूँ समाप्त होती है कि डोली पहुँचते ही मुस्लिम सेनापति फकीरों पर पैसे लुटाने लगा लेकिन फकीरों में से एक औरंगजेब निकला। 4 हाथियों को मँगा कर उनसे उस मुस्लिम सेनापति का हाथ पाँव बाँध दिया गया और उसे चीर डाला गया।
कहानी के अंत में कुछ और इमोशंस डालती हुई सदफ आफरीन लिखती हैं कि पंडित के घर के बाहर औरंगजेब ने चबूतरे पर नमाज पढ़ी और खुदा का शुक्र अदा किया कि उसे गैर-इस्लामी लड़की के साथ इंसाफ करने के लिए चुना गया। फिर उसने पानी मँगाई और पी, क्योंकि उसने फरियाद सुनते ही कसम खा रखी थी कि न्याय किए बिना पानी नहीं पिएगा। नमाज वाले उक्त चबूतरे का नाम ‘धनेडा की मस्जिद’ रखा गया।
सच्चाई: मंदिर ध्वस्त कर के औरंगजेब ने उसके ऊपर बना दी मस्जिद
कहानी के ऐतिहासिक पक्ष की बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले आपको बताते हैं कि इसमें कौन-कौन सी ऐसी चीजें हैं जो इसके झूठ होने की गवाही देती है। अगर किसी लड़की का बलात्कार करना हो तो कोई भी मुस्लिम सेनापति सजा-धजा कर लाने के लिए एक सप्ताह और फिर एक महीने की मोहलत दे, ये बात जँचती नहीं। विजयनगर साम्राज्य तबाह हुआ तब कई महिलाओं का रेप हुआ, कितनों को सजा-धजा कर उनका रेप किया गया?
इसीलिए, इन आक्रांताओं का जैसा इतिहास रहा है ये यकीन के लायक नहीं है कि एक महीने का समय दे दिया गया। दूसरी बात, उक्त मुस्लिम सेनापति डोली पहुँचने के बाद अशर्फियाँ लुटाता है फकीरों में, लेकिन लड़की के पिता के इस तर्क से उसे एक महीने का समय दे देता है कि सजाने-धजाने के लिए पैसे नहीं हैं। ये संभव है क्या? किसी इस्लामी आक्रांता के भीतर हवस की आग लगी हो और वो इतना शक्तिशाली व संपन्न हो तो पैसे तो वो भी दे सकता था इस कार्य के लिए?
अब आते हैं ऐतिहासिक तथ्य पर। जिस ‘धनेडा की मस्जिद’ को इसमें पंडित का चबूतरा बताया जा रहा है, वो किसी जमाने में बिंदु माधव मंदिर हुआ करता था। बिंदु महाराज नामक एक संत यहाँ वास करते थे। जिस तरह औरंगजेब ने मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़वाया, उसी तरह उसने इस मंदिर को भी ध्वस्त करवाया। ये काफी दूर तक फैला हुआ था, इसी को तोड़ कर जो मस्जिद बनाई गई उसे ‘धरहरा’, ‘आलमगीर’ या ‘धनेडा’ के नाम से जाना गया।
औरंगजेब का असली नाम ‘आलमगीर’ ही था, इसीलिए ये मस्जिद भी ‘आलमगीर मस्जिद’ कहलाया। सन् 1669 के आसपास औरंगजेब ने भगवान विष्णु के बिंदु माधव मंदिर को ध्वस्त करवाया था। मूर्ति को किसी तरह हिन्दुओं ने अन्यत्र स्थानांतरण कर के स्थापित किया। ओंकारेश्वर और ललाट भैरव मंदिर के अलावा औरंगजेब में काशी में कई मंदिरों को ध्वस्त करवाया। धरहरा मस्जिद में अब भी मंदिर के अवशेष स्पष्ट दिखते हैं।
खुद BHU के इतिहास के प्रोफेसर्स बता चुके हैं कि धरहरा मस्जिद के नीचे हिन्दू देवी-देवताओं की कई मूर्तियाँ हैं जो खुदाई में मिल सकती हैं। कुबेरनाथ शुक्ल ने अपनी पुस्तक में इस प्राचीन मंदिर का जिक्र किया है। औंध नरेश ने मूर्तियों को कहीं और स्थापित करवाया। जिस मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ा, उसे 1580 में रघुनाथ टंडन ने बनवाया था। ये सदियों से हिन्दू श्रद्धा का प्रतीक रहा है, क्योंकि मत्स्य पुराण में भी इस मंदिर का जिक्र है।