आपने कभी ध्यान दिया है कि फ़िल्मों मे 90 के बाद से गायकों का करियर ग्राफ़ कैसा रहा है??
याद है कुमार शानू जो करियर मे पीक पर चढ़कर अचानक ही, धुँध में खो गये। फिर आये अभिजीत, जिन्हें टाप पर पहुँचकर अचानक ही काम मिलना बंद हो गया। उदित नारायण भी उदय होकर समय से पहले अस्त हो गये। उसके बाद सुखविंदर अपनी धमाकेदार आवाज से फलक पर छा गये और फिर अचानक ही ग्रहण लग गया। उसके बाद आये शान, और शान से बुलंदियों को छूने के अचानक ही कब नीचे आये पता ही नही लगा।
फिर सोनू निगम कब काम मिलना बंद हुआ, लोग समझ ही नही पाये। उसके बाद अरिजीत सिंह, जिनकी मखमली आवाज ने दिलों में जगह बनानी शुरू ही की कि सलमान खान ने उनहे पब्लिकली माफ़ी माँगने के बाद भी ‘जग घूमया’ जैसा गाना नही गवाया और धीरे धीरे उसका करियर खतम करने की साज़िश चलने लगी। सारे ही गायकों को असमय बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इसके उल्टा इसके पहले चीख़ कर गाने वाले, क़व्वाल नुसरत फ़तेह अली खान को क़व्वाली गाने के लिये बुलाया जाता है, और पाकिस्तानी गायकों के लिये दरवाज़े खोल दिये गए। उसके बाद राहत फ़तेह अली खान आते हैं और बॉलीवुड में उन्हे लगातार काम मिलने लगता है और बॉलीवुड की वजह से सुपरहिट हो जाते है। फिर नये स्टाईल के नाम पर आतिफ़ असलम आते हैं जिसकी आवाज को ट्यूनर मे डाले बग़ैर कोइ गाना नही निकलता है, उन्हे एक के बाद एक अच्छे गाने मिलने लगते हैं। अली जाफ़र जैसे औसत गायक को भी काम मिलने में कोई दिक़्क़त नही आती।
धीरे धीरे पाकिस्तानी हीरो हीरोइन को भी बॉलीवुड मे लाकर स्थापित किया जाने लगा और भारतियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा। पर उरी हमले के बाद, बैक डोर से चुपके से उन्हे लाने की यह चाल, कुछ भारतीयों की नज़र में उनकी यह चाल समझ में आ गयी और उन्होंने निंदा करने की माँग करने की, हिमाक़त कर डाली जो उन्हे नागवार गुज़री और वो पाकिस्तान वापस चले गये।
क्या आपको लगता है कि यह केवल संयोग है तो आप से बड़ा भोला कोई नहीं।
पूरा बॉलीवुड डी कंपनी या पी कंपनी (पाकिस्तान) के इशारों पर चलता है,
गुलशन कुमार जी को इन्होंने सरेराह मरवा दिया और उनके बाद बॉलीवुड से तो जैसे भजन और हिन्दू धार्मिक संगीत अदृश्य हो गया, और संगीत के नाम पर अश्लीलता और धर्म के विरूद्ध एक षड्यन्त्र काम करने लगा और नई युवा पीढ़ी को पथभ्रमित करने का कार्य विशेष रूप से किया गया।
गुलशन कुमार को हटाकर भजन कीर्तन का बॉलिवुड से खात्मा किया गया। अब केवल अली अली मौला बचा है।
खान गैंग ने ये सब पूरी प्लानिंग से किया और कम्युनिस्टों के इशारे पर किया।