Friday, November 22, 2024
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साहित्य का लोक और लोक का साहित्य: हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर संगोष्ठी 15 फरवरी को

सृजनलोक त्रैमासिक पत्रिका, आरा(“सेवा शिवंजलि” पंजीकृत संस्था, का सांस्कृतिक एकांश) एवं सृजनलोक प्रकाशन एस आर एम विश्वाविद्यालय, कत्तनकुलाथुर चेन्नई, तमिलनाडु के संयुक्त तत्वावधान में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी 17-18 मार्च 2017 को सृजनलोक अंतर्राष्ट्रीय सहित्योत्सव आयोजित किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत तृतीय सृजनलोक सम्मान, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, परिचर्चा कविता एवं कहानी पाठ एवं पुस्तक लोकार्पण का आयोजन किया जाना है।

साहित्य एक लोकधर्मी विधा है और समाज में समरसता, सहिष्णुता, सहस्तित्व और सौहार्द्र बनाये रखने में इसकी भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। हमारे लोक साहित्य से वर्तमान साहित्य तक इसी भावना से प्रेरित रहे हैं। आज भी जन-जन में साहित्य की वो धारा चाहे कथा के रूप में हो, गीत के रूप में हो, धार्मिक या लोकोक्तियों के रूप में हो, बहुतायत में आज भी लोगों की जुबान पर विद्यमान है। साहित्य के इसी महत्व को देखते हुए हजारों साल पूर्व से ही हमारे देश में बच्चों को दादी नानी द्वारा कहानी सुनाने की परम्परा रही थी जिसके माध्यम से उनके अन्दर नैतिक मूल्य, उच्च जीवन आदर्श, प्रकृति और पर्यावरण, के साथ क्षमा, दया, करुणा, शील, शिष्टाचार, जैसे अच्छे संस्कार विकसित संरक्षित और स्थापित किये जाते रहे जिससे समाज में प्रेम और सौहार्द्र की भावना बनी रही। पर वर्तमान में इस लोक शिक्षण की लुप्त होती प्रवृत्ति ने इस भावना को बहुत चोट पहुचायी है परिणाम स्वरुप आज समाज में विद्वेष और विखंडनवादी शक्तियां प्रबल हो गयी हैं और सामाजिक समरसता और सौहार्द्र चरमरा गया है।

लोकहित की इस भावना को आधुनिक हिंदी साहित्य ने भी आत्मसात किया तथा अनेक जन आन्दोलनों और समाज सुधार का वायस बनी है।

इसी को केंद्र में रखकर हम इस सेमिनार का आयोजन कर रहे हैं जिसमे लोक साहित्य और वर्तमान साहित्य की लोकधर्मिता पर बातचीत करेंगें। इसके अंतर्गत हम निम्न उपविषयों के अंतर्गत परिचर्चा का आयोजन करेंगें।

1. लोक साहित्य का महत्व और उसकी प्रासंगिकता
2. लोक साहित्य में सामाजिक – सांस्कृतिक चेतना।
3. लोकोक्तियों की दुनिया और उनमें जीवन दर्शन।
4. लोक साहित्य में प्रतिरोध और प्रगतिशीलता।
5. लोक साहित्य में राष्ट्रीय चेतना
6. लोक साहित्य में नैतिक मूल्य और जीवन आदर्श।
7. लोक साहित्य में भक्ति और प्रेम की अवधारणा
8. लोक कथाओं में बाल साहित्य
9. बाल साहित्य का महत्व
10. वर्तमान में बाल साहित्य लेखन : दशा एवं दिशा
11.वर्तमान में साहित्य और समाज के अंर्तसंबंध
12. आधुनिक साहित्य में जन जीवन, जनजागरण और सामाजिक सरोकार।
13. नगरीय जीवन, भौतिकता पारिवारिक विखंडन और मनोविकार
14. नयी सदी का साहित्य – ग्राम्य जीवन, स्त्री, दलित और आदिवासी के विशेष सन्दर्भ में।

आलेख srijanlokseminar2017@gmail.com पर 15 फरवरी 2017 तक ईमेल द्वारा यूनिकोड, मंगल, कृतिदेव, वॉकमैन चाणक्य 901-905 में वर्ड फ़ाइल में भेज सकते हैं। आलेख ISBN नंबर अंकित पुस्तक में प्रकाशित होगा। प्रपत्र का एब्सट्रैक्ट अवश्य तैयार कर लें।
शब्द सीमा – 1000 से 1500।

पंजीयन शुल्क : ₹1000।
भोजन और आवास शुल्क (20 जनवरी तक शुल्क जमा करने पर):
शिक्षक : ₹1500; शोधार्थी : ₹1000

नोट: वैसे लोग जो आने में असमर्थ हैं अपना शोध प्रपत्र पंजीयन शुल्क के साथ प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं। सृजनलोक की ओर से सर्वश्रेष्ठ शोध प्रपत्र को सम्मान भी दिया जायेगा.

आवास हेतु पंजीकरण : 20 जनवरी तक।
आलेख भेजने की अंतिम तिथि : 15 फ़रवरी
कार्यक्रम में शामिल होने के इच्छुक प्रतिभागी पंजीकरण शुल्क निम्न खाता में भेज सकते हैं।
SRIJANLOK PRAKASHAN, INDIAN OVERSEAS BANK
BRANCH : M.P NAGAR, ARA (BIHAR) – 802301
ACCOUNT NO : 238202000000091, IFSC – IOBA0002382
VASHISHTH NAGAR, ARA (BIHAR) – 802301, MOB – 7654926060

संयोजक
संतोष श्रेयांस
आरा, बिहार – 802301
? 7654926960
सह संयोजक : डॉ. उषा रानी
अध्यक्ष : डॉ. प्रीति, सचिव : डॉ. रज़िया, समन्यवक : डॉ. इस्लाम

संपर्क
डॉ. रज़िया
सहायक प्रोफेसर
हिंदी विभाग, विज्ञान एवं मानविकी संकाय
एस. आर. एम विश्वविद्यालय – 603203

एक निवेदन

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