आप सभी ने एनसीईआरटी या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सिलेबस की किताबों में इतिहास अवश्य पढा होगा , जिसमे एनशियन्ट , मिडिल , मोर्डन करके बांटा गया , उसमे भी Pre , Post क्लासिफाइड हिस्ट्री पढ़ी होगी । वैसे तो एनशियन्ट हिस्ट्री पक्षपातपूर्ण रूप से लिखी गई है , लेकिन उस पर अभी चर्चा नही करूँगा , मैं आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हु मध्यकालीन इतिहास की ओर ।
जब आप पढ़ते है तो उसमें पृथ्वीराज की हार से लेकर गुलाम वंश , तुगलक , खिलजी , सैय्यद , लोदी , मुगल आदि के साम्राज्य उनकी शासन पद्धति , स्थापत्य कला आदि का जमकर बखान लिखा हुआ , उनके कुकृत्य नहीं लिखे । ऐसा इसलिए क्योंकि शिक्षा मंत्री नुरुल हसन जी का मानना था कि अगर उस पक्ष को लिखा गया तो हिन्दू – मुस्लिम एकता में बाधा होगी । अतः 800 के इतिहास को तुर्की , अरबी इतिहास न कहकर इस्लामिक इतिहास कहा जायेगा । मैं इस विषय पर भी आगे आपको अवगत कराऊंगा की कैसे कम्युनिस्ट और इस्लामी शिक्षा संस्थानों और इतिहास संस्थानों में काबिज हुए आदि । अभी इन विषयों पर न आता हुआ सीधे मुद्दे पर आता हूं ।
हमें इतिहास में यही बताया जाता है कि हिन्दू राजा जमीन के भूखे थे जो आपस लड़ते थे और हिन्दू में जातीय शोषण , कुरीतिया थे जिससे बाहरी आक्रमणकारी और हमें परास्त करके भारत पर शासन किया आदि ।
लेकिन सच तो यह है कि भारत इतिहास यह है ही नहीं , भारत का इतिहास तो विद्वता और विजय की अमर गाथाओं से भरी है जो पूरी मानव सभ्यता के लिए एक दृष्टांत है ।
और आप सभी को इस लेख को पढ़ने के बाद यह एहसास भी होगा ।
आप मध्य कालीन इतिहास पढ़े , वह आपको पृथ्वीराज की हार और गुलाम वंश से ही शुरुआत करेंगे , बहुत कम किताबों में मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमणों का उल्लेख आपको मिलेगा ।
आइये आपको आज अवगत कराते है , अपने पूर्वजों की महान गाथा से जिसके कारण आज हजारों वर्षों से हमारा अस्तित्व है ।
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पश्चिमी इतिहासकारों का दुलारा अलेक्जेंडर द ग्रेट ! शराब , शबाब और क्रूरता में अव्वल होते हुए महान कहा गया , वह भी भारत के एक छोटे से राजा से युद्ध करने के उपरांत चन्द्रगुप्त की सेना देखकर इस कदर टूट गया कि यूनान वापस लौट गया , अंतिम दिन उसके बहुत ही बदतरीन गुजरे ।
मित्रों ! आज एक बार फिर उसी धरती पर लगभग 1000 वर्षो बाद वह इतिहास दुहराया गया ।
यह वो समय है , जब पैगम्बर मोहम्मद की 632 ई में मृत्यु के उपरांत अरबी सेना ने तत्कालीन समय मे सबसे ताकतवर मानी जाने वाली Byzantine एम्पायर के फिलिस्तीन और सीरिया को 6 माह के भीतर 636-637 A.D. तक फतह हासिल कर ली । उसके बाद पर्सिया के Sassanid Empire जिसकी ताकत के किस्से दुनिया भर मशहूर है , जहां यजदेगर्ड और डेरियस जैसे बेहद ताकतवर राजाओ का शासन हुआ करता था , परन्तु अरब की इस्लामिक सेना ने Sassanid Empire के इराक , ईरान और खुरासान को भी 637 ई में परास्त कर दिया था , जिसके कुछ ही वर्षो में पूरा पर्सियन एम्पायर नेस्तनाबूद हो गया । ततपश्चात 643 ई में दुनिया की सबसे ताकतवर माने जा रही अरब खलीफा के अंडर में अरबी सेना ने भारतीय उपमहाद्वीप को छुया । यहाँ एक तथ्य और जोड़ना चाहूंगा कि उस समय तुर्किश भाषा बोलने वाले मंगोलिया ,बुखारा , ताशकन्द और समरकन्द को भी अरबी सेना ने 650 ई में फतह कर लिया था । बाइजेंटाइन एम्पायर के पश्चिम में इजिप्ट भी 640 ई में परास्त हो चुका था । अरब की सेना उत्तरी अफ्रीका से होते हुए इंदुलुसिया (स्पेन) में 709 ई में उसे भी फतह कर लिया ।
यहाँ जिस बात को आपको ध्यान देना होगा वह ये कि एक इस्लामिक सेना की यह विजय कोई साधारण या आसान नही थी । एक बार पराजय के बाद ही विभिन्न पहचान , संस्कृति और भाषा वाली इन तुर्क , पारसी , सीरियन , बर्बर्स (अफ्रीकी जाती) कौम के लोग इस्लाम मे बहुत ही कम समय मे मतांतरित कर दिए गए और उनकी परम्परा , संस्कृति और भाषा का अरबीकरण कर दिया गया ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसी इस्लामिक सेना ने भारत पर 69 वर्षों तक हमला किया और वे सीमा पार करने में भी असफल रहे । उसके बाद लगभग 300 सालो तक उन्हें भारत के उत्तर और पश्चिम के विभिन्न क्षेत्रों से जोरदार प्रतिरोध सहना पड़ा ।
सर्वप्रथम खलीफा उमर बिन खत्ताब के समय मे अरबों की समुद्री सेना ने महाराष्ट्र के समुद्र तट थाने और गुजरात के तट भरूच पर 634 – 644 ई तक हमला किया जिसका भारतीय सेना ने जबरदस्त प्रतिकार किया गया , अरबों को सिंध के देवल में भी इसी प्रतिकार का सामना करना पड़ा । इस प्रकार अरब सेनापति Mughirah परास्त हुआ और मारा गया । इसके बाद खलीफा उमर बिन खत्ताब ने हिंदुस्तान के सिंध प्रांत के मकरान पर चढ़ाई करने के लिए दूसरी सेना भेजने का निर्णय लिया । लेकिन उसे इस विषय पर इराक के गवर्नर का सुझाव मिला कि , ‘उन्हें हिन्द पर चढ़ाई के विषय में अब नहीं सोचना चाहिए’ ।
इसके उपरांत अरब के अगले खलीफा उस्मान ने भी 646-656 ई तक इस सुझाव का पालन किया , और अपनी सेना को सिंध पर किसी भी तरह की जमीनी या समुद्री हमला करने की जहमत नहीं उठाई ।
इसके बाद अरबों के चौथे खलीफा और शियाओ के पहले इमाम अली ने भारत को फतह करने के लिए 660 ई में सेनाये भेजी परन्तु उनके सिंध पर भेजी गई सेना का भी भारतीय सेना ने किकान की जमीन पर वध किया , अंतत्वोगत्वा इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली भी हिन्द और सिंध की फतह की खबर सुने बिना ही मर गए ।
उसके बाद 661 – 680 ई तक अरब के अगले खलीफा माविया ने भी 6 बार सिंध पर जमीनी सेना भेजी । इन 6 युद्धों में भी अरबों को पराजय मिली , सिवाय 6 वे युद्ध के जिसमें भारत के सिंध प्रांत का मकरान का हिस्सा 680 ई में फतह कर लिया गया ।
इसके बाद 28 वर्ष तक अरबों ने भारत पर हमला करने की कोई भी जहमत न उठा पाई ।
ततपश्चात अरबों ने भारत पर अगला हमला 708 ई में देबल में किया । परन्तु इसमें भी अरब कमांडर इन चीफ उबैदुल्लाह और बुदैल मारे गए और अरब सेना भाग खड़ी हुई ।
अगली बार जब हज्जाज इराक का गवर्नर बना तो उसने खलीफा से हिंदुस्तान पर हमला करने की अनुमति मांगी , लेकिन खलीफा ने उसे लिखकर भेजा कि हमें हिन्द फतह करने की योजना छोड़ देनी चाहिए क्योंकि हमारी सेना कई बार उन पर चढ़ाई करती है , और प्रत्येक बार हमारी हार होती है जिसमें भारी संख्या में मुसलमान मारे जाते है , तो कृपया इस प्रकार के किसी भी योजना को अपने मन निकाल दो ।
लेकिन हज्जाज बड़ा ही अग्रेसिव साम्राज्यवादी मानसिकता का था । उसने 4 वर्षों तक एक मजबूत आर्मी को बनाने में लगाया , जो अब तक सिंध में भेजी गई सेनाओं से कहि ज्यादा ताकतवर हो।
उसके बाद उसने अपने दामाद एव भतीजे मुहम्मद बिन कासिम को 712 ई में सिंध को फतह करने के लिए भेजा ।
हज्जाज ने कासिम से कहा कि, ‘मैं अल्लाह की कसम खा कर कह रहा हु की मैं मेरे इराकी साम्राज्य का सम्पूर्ण धन इस आक्रमण में लगाने को तैयार हूं ।”
इस प्रकार मुहम्मद बिन कासिम ने हिंदुस्तानी सेना के जोरदार प्रतिरोध के बाद भी सिंध को फतह कर लिया उसके बाद 713 ई तक उसने सम्पूर्ण सिंध सहित मुलतान पर भी कब्जा कर लिया , लेकिन भारतीय सेना के प्रतिरोध के बाद 714 ई में वह भाग खड़ा हुआ , जिसके बाद खलीफा के पास देबल से साल्ट सी तक का ही हिस्सा हाथ आया , जो कि महज सँकरी समुद्री सीमा मात्र थी।
इसके बाद अरबों ने पुनः सिंध पर हमला किया और पूर्व में राजपूताने से उज्जैन और दक्षिण में भरूच की ओर बढ़े । लेकिन उनकी सफलता अल्प सामयिक ही रही । उनके आक्रमण पर दक्षिणी गुजरात (Lat) के चालुक्य राजकुमार पुलकेशिन अवनीश जनस्राय ने प्रतिरोध किया ।
738 ई नवसारी शिलालेख के अनुसार पुलकेशिन ने उस अरब सेना को पराजित किया जिसने सिंध , कच्छ , सौराष्ट्र , कावाटोका , मौर्य और गुर्जर राजवंश को परास्त किया था ।
इसके बाद राजकुमार पुलकेशिन अपने गृह नगर नवसारी वापस लौटे , जहाँ उनका भव्य तरीके से स्वागत किया गया और उन्हें दक्षिणापथ साधिता (Solid Piller Of Dakshinapath) और अनिवर्तका निवार्त्तयी (the Repeller of the
Unrepellable) की उपाधि से नवाजा गया ।
ग्वालियर शिलालेख गुर्जर-प्रतिहार राजा भोज प्रथम को अरब इतिहासकार किंग ऑफ जर्ग कहकर बुलाते है । अरब इतिहासकार लिखते है कि भारत के किसी भी राजा में कोई भी उतना बड़ा प्रतिद्वंदी नहीं था सिवाय उनके ।
इसके अतिरिक्त अरब सेना उत्तर पश्चिम में पंजाब और कश्मीर की ओर भी बढ़े , लेकिन उन्हें वहां भी ललितादित्य मुक्तपीड़ा (724-760 ई ) द्वारा परास्त होना पड़ा । इस युद्ध में ललितादित्य का गठबंधन मध्य भारत के शासक यशोवर्मन के साथ था ।
10वी शताब्दी के अरब इतिहासकार , लिखते है कि खलीफा के पास भारत में केवल दो स्थान है एक मुलतान और दूसरा उनकी राजधानी मनसुरा , जिसके कारण प्रतिहार राजाओं ने अरब के मुल्तानी राजकुमार पर जोरदार हमला किया । इस प्रकार मुलतान भी अरबो के हाथ से निकल गया सिवाय एक मंदिर के । अरब इतिहासकार अल इसतिखारी ने 951 ई में लिखा , कि मुलतान में एक मंदिर था जो हिन्दुओं के द्वारा अत्यंत सम्मानित और पूजित था जहां पर हर वर्ष भारत के विभिन्न हिस्सों से तीर्थ-यात्री पूजा उपासना के लिए आते थे । जब भारतीयों ने मुलतान में अरबों पर हमला कर मूर्ति को मुक्त करना चाहा तो अरब आक्रमण करियो ने मूर्ति को तोड़ने व जलाने की धमकी दी । जिसके बाद हिन्दुस्तानियो ने उन्हें छोड़ दिया नहीं तो वे मुलतान को तबाह कर देते ।
इस प्रकार 300 सालों के अनवरत आक्रमणों के बाद भी अरबों को केवल 2 स्थान ही प्राप्त हुए एक मुलतान दूसरा मनसेरा , वह भी अरबों के मजहबी बुतशिकन राजनीति के कारण न कि युद्ध के ।
यहाँ सभी को एक बात को अपने मन मे अवश्य रखना चाहिए कि यह वो समय था जब अरब एम्पायर दुनिया की सबसे ताकतवर और विशाल थी , जिसने दुनिया की कई बड़ी ताकतवर साम्राज्यों को धूल में मिलाकर विश्व भूगोल से समूल नेस्तनाबूद कर दिया था, मतलब उसके बाद दुबारा उन स्थानों पर रहने वाले लोग अपने पुराने मजहब एव संस्कृति को नहीं लौट पाए , आज की भाषा मे कहें तो वहां सदा के लिए Complete Arab Hagemenoy स्थापित हो गई ।
वही दूसरी ओर विशाल ताकतवर अरब खिलाफ़ती सेना भारत के जिन सिंध और कोस्टल (समुद्र तटीय) राजाओं से लड़ रहे थे वे तो अरबों की विशालता के सामने बेहद बौने थे ।
इस तरह सिंध , पंजाब जैसे छोटे राज्यों के जिन भारतीय हिन्दू राजाओं ने जिस अलेक्जेंडर को धूल में मिलाकर वापस यूनान भेजा था , वह कथा भी अब पुरानी हो गई ।
और यह गाथा आज एक बार फिर इस आर्यावर्त के इतिहास में अमर हो गई ।
Ref –
(1) Heroic Hindu Resistance
to Muslim Invaders
(636 AD to 1206 AD) by Sitaram Goel
(2) Ram Gopal Misra, Indian Resistance to Early Muslim Invaders up to 1206 A.D.
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