कभी चौराहे पर लगने वाली मजदूरों की मंडी का हिस्सा रहे एक मजदूर ने एमसीएच जैसी प्रतिष्ठित डिग्री का गोल्ड मेडल अपने गले में डलवाकर अपना सिक्का मनवा लिया। सर्जरी की सर्वोच्च उपाधि एमसीएच ‘प्लॉस्टिक सर्जरी’ में उन्हें रविवार को लखनऊ में आयोजित समारोह में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया है।
मजदूरों के अड्डों से आलीशान इमारतों के लिए रोजाना ईंट-गारा, मौरंग-गिट्टी ढोने वाले हाथ, अब कटे हुए अंगों को जोड़कर लोगों को नई जिंदगी देते हैं। इंसान के बहते लहू को रोकने में उनकी उंगलियों ने सुपर कम्प्यूटर को पीछे कर दिया। तो एसिड अटैक पीड़ितों के नैन नक्श सुंदर करने में उनसे दुनिया पीछे है।
डॉ. प्रेम शंकर लखनऊ के मोहनलालगंज तहसील के गांव कल्ली पश्चिम निवासी हैं। गरीबी से पढ़ाई प्रभावित हुई तो ननिहाल चले गए। हाईस्कूल प्रथम श्रेणी में पास हुए। उसके बाद पढ़ाई रुक गई। मां-बाप की भुखमरी बर्दाश्त नहीं हुई। स्कूल छूट गया। वह अपने पिता के साथ लखनऊ के तेलीबाग चौराहे पर मजदूरों के अड्डे पर पहुंच गए।
रोजाना मजदूरी से घर का खर्च चलाने लगे। रात में पढ़ते। तीन साल तक बराबर मजदूरी करते रहे। प्राइवेट इंटरमीडिएट फार्म भरा। पहले साल फेल हो गए। दोबारा मेहनत की तो पास हुए। वह भी बायोलॉजी में 100 में 76 नम्बर मिले। लखनऊ के केकेवी में बीएससी में एडमिशन लिया। इस दौरान सीपीएमटी में अच्छी रैंक आई। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन ले लिया। प्रथम श्रेणी में एमबीबीएस पास हुए। आल इंडिया पीजी टेस्ट में उन्होंने बेहतर प्रर्दशन किया।
इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज से एमएस की डिग्री हासिल कर ली। उसके बाद डॉ. प्रेमशंकर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जीएसवीएम में ही सर्जरी विभाग में उन्हें लोकसेवा आयोग से असिस्टेंट प्रोफेसर चुन लिया गया। एमसीएच की ऑल इंडिया परीक्षा में उन्होंने टॉप किया। केजीएमयू में एडमिशन लिया। एमसीएच की उपाधि में गोल्ड मेडल मिला है। उनकी प्रतिभा को देखते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें डिनर पर घर पर आमंत्रित किया है।
मां ने मामा से दी सीखने की प्रेरणा
डॉ. प्रेमशंकर कहते हैं कि मेरे ननिहाल में भी गरीबी थी। उसी गरीबी में मामा ने भी एमबीबीएस किया। उस समय इलाहाबाद में नेत्र सर्जरी में एमएस कर रहे थे। मुझे वहीं भेज दिया। मामा ने हौसला बढ़ाया। उन्होंने ही इंटर प्राइवेट करने और सीपीएमटी में बैठने की सलाह दी।
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