आठ नवंबर, 2016 से हुई नोटबंदी का एक बड़ा सार्थक बदलाव अपनी चमक खोने लगा है। यह बदलाव नकद रहित (कैशलेस) व्यवस्था का था। इसे डिजिटलाइजेशन के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के तमाम नेताओं ने ज्यादातर देशवासियों को जोड़कर एक नई व्यवस्था शुरू करने का सपना दिखाया था। नतीजन देश में डिजिटल लेन-देन कारोबार एकाएक कई गुना बढ़ गया। नोटबंदी के शुरुआती चरण में भले ही एटीएम बूथों के बाहर लंबी कतारें लगी होने का खामियाजा कार्ड के जरिए नकदी निकालने वालों को झेलना पड़ा था लेकिन डेबिट या एटीएम कार्ड वालों को अमूमन आम जरूरत का सामान खरीदने में कमोबेश कम दिक्कतें झेलनी पड़ी थीं। कारण नोटबंदी के दौरान और उसके बाद एटीएम कार्ड बनवाने और इस्तेमाल करने वालों की तादात में कई गुना इजाफा हुआ। खास तौर पर युवा वर्ग आज भी नकद के बजाए कार्ड के जरिए भुगतान को ज्यादा सुलभ तो मान रहा है, लेकिन कार्ड के जरिए भुगतान करने पर वसूला जाने वाला अतिरिक्त शुल्क डिजिटल क्रांति की पहल को हतोत्साहित कर रहा है। कुछ जगहों पर क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने वालों से 1-2 फीसद तक अतिरिक्त रकम वसूली जा रही है। जिन जगहों पर दुकानदार अतिरिक्त रकम को ग्राहकों से नहीं ले रहे हैं, उन्होंने या तो पहले ही बिक्री मूल्य में उतना इजाफा कर दिया है या फिर कार्ड मशीन का इस्तेमाल करने से परहेज कर खरीदार को नकद भुगतान के लिए प्रेरित करने लगे हैं।
विदेशी कार्ड कंपनियों को कई गुना फायदा नोटबंदी के बाद शुरुआती छह महीने में दुपहिया और चौपहिया वाहनों की डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए खरीदने में तकरीबन 8-10 गुना बढ़ोतरी दर्ज हुई थी।
इसमें पिछले कुछ महीनों से खासी गिरावट आनी शुरू हो गई है। इसकी वजह क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर लगने वाले अतिरिक्त शुल्क को बताया जा रहा है। नोएडा के सेक्टर-10 में टीवीएस डीलर के संचालक ने बताया कि अगर बाइक खरीदार 60 हजार रुपए का क्रेडिट कार्ड से भुगतान करता है, तो 1.25 फीसद कमीशन के रूप में बैंक लेगा। इसके अलावा कमीशन की रकम पर 18 फीसद जीएसटी भी वसूला जाएगा। यानी 60 हजार रुपए के भुगतान पर 1.25 फीसद 750 रुपए और 18 फीसद जीएसटी 135 रुपए वसूलने पर 925 रुपए का अतिरिक्त भार खरीदार पर पड़ रहा है। इसकी भरपाई के लिए ज्यादातर विक्रेताओं ने इस रकम, जो करीब 1.4 फीसद बैठती है, उसे कार्ड से खरीदने वालों के बिक्री मूल्य में जोड़ दिया है।
नोएडा आॅटोमोबाइल डीलर्स वेलफेयर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष अरविंद शोरेवाला ने बताया कि कार्ड खरीदारी में कमीशन के रूप में ली जाने वाली ज्यादातर रकम क्रेडिट या डेबिट कार्ड जारी करने वाली कंपनियों मास्टर या वीजा के पास जा रही है। शेष हिस्सा कार्ड जारी करने वाले बैंक को मिल रहा है।जानकारों का तर्क है कि यदि रोजाना करीब एक लाख करोड़ रुपए का कार्ड से भुगतान हो, तो 1 फीसद रकम ही करीब 1 हजार करोड़ रुपए हो जाती है। यदि इतनी बड़ी रकम देश के बाहर जा रही है, तो चिंताजनक है। यदि स्वाइप चार्ज आवश्यक है, तो कमीशन का हिस्सा सरकार को वहन करना चाहिए ताकि नकदीरहित अर्थव्यवस्था का सपना साकार हो सके।