हिंदी और हिंदुस्तान की सेवा करने वाले हरिभाऊ उपाध्याय जी का जन्म 24 मार्च 1892 ई को मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले के भँवरासा नामक ग्राम में हुआ था।
विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जागृत हो गई थी संस्कृत के नाटक को तथा अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद यह स्वयं उपन्यास लेखन में अग्रसर हो गए। पत्रकारिता जगत में पदार्पण कर हरि भाव उपाध्याय जी ने हिंदी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरंभ किया। इन्होंने सर्वप्रथम “औदुम्बर” नमक हिंदी मासिक पत्र के प्रशासन द्वारा हिंदी पत्रकारिता जगत में पदार्पण किया। इन्होंने सन 1911 ई.में अपनी पढ़ाई करते हुए “औदुम्बर “पत्र का संपादन किया। अनेक विद्वानों के विविध विषयों से संबंध पहली बार यह लेखमाला निकली थी जिससे हिंदी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका संपूर्ण श्री हरि भाव के उत्साह और लगन को ही है । सन 1915 ईस्वी में हरिभाऊ जी महावीर प्रसाद द्विवेदी के सानिध्य में आए। इसके बारे में उन्होंने स्वयं ही लिखा है-“औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया। ”
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के साथ “सरस्वती”में काम करने के बाद इन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी की साप्ताहिक पत्रिका “प्रताप “,गांधी जी की पत्रिका “हिंदी नवजीवन “(1921) तथा कालूराम( खंडवा )के “प्रभा” नामक पत्रिकाओं के संपादन में योगदान किया। सन 1922 में स्वयं “मानव मयूर “नामक पत्र निकालने की योजना बनाई किंतु यह पत्र अधिक समय तक नहीं चल सका।
पंडित उपाध्याय जी की हिंदी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा मौलिक रचनाओं तथा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। इनकी मौलिक साहित्य- सर्जना” बापू के आश्रम में”, ” सर्वोदय की बुनियाद”, ” साधना के पथ पर”, ” स्वतंत्रता की ओर”, “भागवत धर्म “,”मनन”, “विश्व की विभूतियां”,”पुण्य स्मरण”, “हमारा कर्तव्य और युग धर्म”, “प्रियदर्शी अशोक”,”त्याग भूमि सरस्वती”, “दुर्वादल”( कविता संग्रह )के रूप में हिंदी संसार के सामने है। मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने जवाहरलाल नेहरू की “मेरी कहानी” तथा “पट्टाभिसीतारमैया”द्वारा लिखित “कांग्रेस का इतिहास”का हिंदी में अनुवाद किया।
पंडित हरिभाऊ जी का प्रयास हमें भारतेंदु काल की याद दिलाता है,जब प्राय: सभी हिंदी लेखक बंगला से हिंदी में अनुवाद करके साहित्य की अभिवृद्धि कर रहे थे। अनुवाद करते समय भी इन्होंने सदा यह ध्यान रखा कि पुस्तक की भाषा लेखक की भाषा और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। अनुवाद पढ़ने से यह नहीं पता चला कि अनुवाद पढ़ रहे हैं बल्कि यही अनुभव होता है कि स्वयं मूल लेखक की ही वाणी और विचारधारा अविरल रूप से उसी मूल स्रोत से बह रही है। इस प्रकार हरिभाऊ जी ने अपने साथी जन नायकों के ग्रंथों का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को व्यापकता प्रदान की।
राजनेता के रूप में भी श्री हरिभाऊ जी का अविस्मरणीय योगदान रहा है। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ जी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। हृदय से अत्यंत कोमल तथा परदु:खकातर व्यक्ति थे किंतु सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं करते थे ।राजस्थान की सभी रियासतों को मिलाकर जब राजस्थान राज्य बना और इसके कई वर्षों बाद श्री मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने अत्यंत आग्रह पर हरि भाऊ जी को पहले वित्त मंत्री और फिर बाद में शिक्षा मंत्री बनाया।बहुत दिनों तक इन्होंने मंत्रित्व का पद संभाला परंतु स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण अंतत: इन्होंने त्यागपत्र दे दिया। हरिभाऊ उपाध्याय जी कई वर्षों तक राजस्थान की “शासकीय साहित्य अकादमी”के अध्यक्षभी रहे।इन्होंने “महिला शिक्षा सदन” हटुंडी (अजमेर)तथा “सस्ता साहित्य मंडल”की स्थापना की थी। और 25 अगस्त 1972 को इस साहित्य और राष्ट्र सेवक का निधन हो गया परंतु भारत के साहित्य एवं इतिहास में अपने साहित्यिक साधना और राष्ट्र सेवा के कारण अमरता को प्राप्त हुए।
डॉ सुनीता त्रिपाठी”जागृति” नई दिल्ली,