Sunday, November 24, 2024
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अठारह की उम्र तक मुफ्त शिक्षा से 2030 तक हो सकता है बाल विवाह का खात्मा

गैरसरकारी संगठनों की राजनीतिक दलों से इसे चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने की अपील

अठारह वर्ष की उम्र तक सभी बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा 2030 तक देश से बाल विवाह के खात्मे में निर्णायक भूमिका निभा सकती है क्योंकि 18 वर्ष से पहले पढ़ाई छोड़ने और बाल विवाह में एक सीधा और स्पष्ट अंतरसंबंध है। उदाहरण के तौर पर 96 प्रतिशत महिला साक्षरता वाले केरल में बाल विवाह की दर सिर्फ छह प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत है। इसके उलट बिहार में जहां महिला साक्षरता की दर सिर्फ 61 प्रतिशत है, बाल विवाह की दर 41 प्रतिशत है।

देश में बाल विवाह के खिलाफ जारी लड़ाई में परिवर्तनकारी साबित हो सकने वाला यह अहम निष्कर्ष देश में 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए अभियान चला रहे 160 गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन बाल विवाह मुक्त भारत अभियान (सीएमएफआई) द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जारी एक शोधपत्र “एजुकेट टू इंड चाइल्ड मैरिज : एक्सप्लोरिंग लिंकेजेज एंड रोल ऑफ एजुकेशन इन एलिवेटिंग चाइल्ड मैरिजेज” में उजागर हुआ है। शोधपत्र के अनुसार, भारत बाल विवाह की बुराई के 2030 तक खात्मे की राह में टिपिंग प्वाइंट की तरफ बढ़ रहा है। टिपिंग प्वाइंट वह बिंदु है जहां से बाल विवाह अपने आप खत्म हो जाएगा। ऐसे में यदि 18 वर्ष की उम्र तक मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा एक वास्तविकता बन जाए तो बाल विवाह के अपराध को जड़मूल से समाप्त करने की इस लड़ाई को एक नई धार और दिशा मिल जाएगी।

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की नीति एवं शोध निदेशक ज्योति माथुर ने कहा, “यद्यपि केंद्र व राज्य सरकारें, दोनों ही बाल विवाह के खात्मे के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और गंभीरता से काम कर रही हैं, फिर भी यदि मौजूदा शिक्षा का अधिकार कानून में बदलाव कर 18 वर्ष तक शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क कर दी जाए तो यह बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में प्रयासों को नई गति दे सकता है।” बताते चलें कि दुनिया के तमाम देश संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों यानी एसडीजी के तहत 2030 तक बाल विवाह और जबरन विवाह के खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने की प्रतिबद्धता जता चुके हैं।

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान 2030 तक इस सामाजिक बुराई के खात्मे के लिए बाल विवाह की ऊंची दर वाले 300 से ज्यादा जिलों में इसके खिलाफ जमीनी अभियान चला रहे 160 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है। इस गठबंधन ने पिछले छह महीनों के दौरान ही देश में 50,000 से ज्यादा बाल विवाह रोके हैं जबकि 10,000 से ज्यादा मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है। अपने विशाल नेटवर्क और जमीनी स्तर पर सूचना तंत्र के माध्यम से इसने पूरे देश में कुल बाल विवाहों के पांच प्रतिशत बाल विवाह रुकवाने में कामयाबी हासिल की है।

शोधपत्र के निष्कर्षों को जारी करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान ने कहा कि यद्यपि केंद्र व राज्य सरकार ने इस सामाजिक अपराध के खात्मे में प्रशंसनीय इच्छाशक्ति व गंभीरता दिखाई है, फिर भी बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई को धार देने के लिए कुछ और अहम कदम उठाने की दरकार है। शोधपत्र के निष्कर्षों से यह स्पष्ट है कि बाल विवाह के खात्मे के लिए 18 वर्ष तक अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का कदम परिवर्तनकारी साबित हो सकता है और इसलिए सभी राजनीतिक दलों से अपील है कि वे हमारी इस मांग को आगामी लोकसभा के अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करें।

शोधपत्र में भारत के विभिन्न हिस्सों से लिए गए आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर महिला साक्षरता दर और बाल विवाह की दर के अंतरसंबंधों को रेखांकित किया गया है। उदाहरण के तौर पर 93 प्रतिशत महिला साक्षरता वाले राज्य मिजोरम में बाल विवाह की दर सिर्फ आठ प्रतिशत है। मध्य प्रदेश जहां कि महिला साक्षरता दर 67.5 प्रतिशत है, वहां बाल विवाह की दर 23.1 प्रतिशत है जबकि 73.8 प्रतिशत महिला साक्षरता वाले हरियाणा में बाल विवाह की दर काफी कम 12.5 प्रतिशत है।

शोधपत्र के अनुसार, “अध्ययन से यह स्पष्ट है कि शिक्षा तक पहुंच के विस्तार से लड़कियों के विवाह की उम्र आगे खिसकती है जिसके सकारात्मक नतीजे बेहतर आर्थिक-सामाजिक स्थिति और लैंगिक समानता के रूप में सामने आते हैं।”

यद्यपि, शोधपत्र में एकाध ऐसे दृष्टांतों का भी जिक्र है जहां महिला साक्षरता और बाल विवाह की दर के बीच जो अंतरसंबंध पूरे देश में दिखाई देते हैं, उससे उलट स्थिति है। मसलन पश्चिम बंगाल में महिला साक्षरता की दर 77 प्रतिशत है लेकिन इसके बावजूद वहां बाल विवाह की दर अत्यधिक रूप से ऊंची 42 प्रतिशत है। इसी तरह त्रिपुरा में महिला साक्षरता दर 82 फीसद होने के बावजूद बाल विवाह की दर 40 प्रतिशत है। असम में साक्षरता दर 78.2 प्रतिशत है जबकि बाल विवाह की दर 31.8 प्रतिशत है।

शोधपत्र के अनुसार,”ये अपवाद इस बात का संकेत हैं कि महिला साक्षरता दर की भूमिका भले ही महत्वपूर्ण हो लेकिन कुछ क्षेत्रों में आर्थिक-सामाजिक कारक और सांस्कृतिक परंपराएं बाल विवाह के चलन को प्रभावित करती हैं।”

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएचएफएस 019-21) के अनुसार देश में 20 से 24 आयुवर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो जाता है। जबकि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हर तीन में से दो लड़कियों का विवाह 15 से 17 की उम्र के बीच हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुल 52 लाख में से 33 लाख लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया।

एक निवेदन

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