इजरायल की शराब बनाने वाली एक कंपनी ने शराब की बोतल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर छापकर आदर्शहीनता, मूल्यहीनता एवं तथाकथित लाभ की विकृत मानसिकता का प्रदर्शन किया है। शराब के प्रचार के लिये एवं उसकी बिक्री बढ़ाने के लिये जिस तरह से गांधी की तस्वीर को शराब की बोतल पर दिखाया गया है, उससे न केवल भारत बल्कि दुनिया के असंख्य लोगों की भावना आहत हुई है। लेकिन प्रश्न है कि क्या सोच कर शराब-कम्पनी ने विश्वनायक एवं अहिंसा के पुरोधा गांधी का गलत, विकृत एवं घिनौना उपयोग करने का दुस्साहस किया गया? क्यों भारत की कोटि-कोटि जनता की भावनाओं को जानबूझकर आहत किया गया है? क्यों शराब जैसी वर्जित चीज के लिये गांधी को प्रचार-प्रसार का माध्यम बनाया गया, जिन्होंने जीवनभर शराब-विरोध वातावरण निर्मित किया? वस्तुतः ऐसी कुचेष्टा एवं धृणित प्रयास न सिर्फ भारत के अपितु दुनियाभर के करोडों-करोडों शराब-विरोधी समुदाय के लोगों एवं मानव की आदर्श नशामुक्त जीवन-शैली पर सीधा हमला है।
इस विरोधाभासी एवं दुर्भाग्यपूर्ण मामले को जब आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान उठाया तो राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडु ने तत्काल विदेश मंत्री एस. जयशंकर को निर्देश दिया कि इजरायल की शराब बनाने वाली उस कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए क्योंकि यह बहुत आपत्तिजनक है। इस कुचेष्टा एवं हरकत को इजरायल सरकार के समक्ष भी उठाये जाने का निर्देश भी उन्होंने दिया।
शराब को प्रोत्साहित करने एवं उसके प्रचार करने के लिए शराब लाॅबी तरह-तरह के हथकण्डे अपनाता रहा है। भारत में भी इस तरह की कुचेष्टाएं होती रही हैं। व्यावसायिक लोगों के द्वारा अपने लाभ के लिये एवं सरकारें भी शराब के प्रचार एवं प्रयोग के लिये इस तरह के तथाकथित क्रूर एवं जन आस्थाओं को कुचलने वाले उपक्रम करती रही है। विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने भी सदन में इस विडम्बनापूर्ण हरकत पर कहा कि सरकार महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने जा रही है। उनका चेहरा पूरे विश्व में अहिंसा के लिए पहचाना जाता है। शराब की बोतल पर गांधी की तस्वीर छापना उनका अपमान है। संभवतः इजरायल की शराब बनाने वाली कंपनी गांधी की तस्वीर शराब की बोतल से हटा दे, लेकिन भविष्य में ऐसी घटना की किसी भी देश में पुनरावृत्ति न हो, भारत सरकार को इस पर भी कठोर कदम उठाते हुए सख्त संदेश देने का उपक्रम करना चाहिए।
गांधी भारत ही दुनिया के लिये आदर एवं प्रेरणा के प्रतीक महापुरुष है। उनकी अहिंसा ने भारत को गौरवान्वित किया है, क्योंकि समूची दुनिया में अब उनकी जयन्ती को बड़े पैमाने पर अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। गांधी के अनुयायियों एवं उनमें आस्था रखने वाले उन तमाम लोगों को इसरायल की घटना ने आहत किया है, जो बापू के सिद्वान्तों से गहरे रूप में प्रभावित हंै, अहिंसा के प्रचार-प्रसार में निरन्तर प्रयत्नशील हंै। यह बापू की अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता का बड़ा प्रमाण भी है। शायद यही कारण है कि शराब कम्पनी ने अपने लाभ के लिये व्यावसायिक जाल फैलाने की कुटिल कोशिश की है। इसके अलावा, अपने क्रूर धंधे के विस्तार के लिए शराब-कम्पनी पावन सांस्कृतिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिमानों के साथ भी खिलवाड कर बैठी है। शराब की बोतल में गांधी जैसी पवित्र आत्मा को दिखाना सर्वथा गलत ही नहीं है बल्कि असंख्य लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। यह एक तरह की विकृत सोच है, अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं का अनादर है।
बात इजरायल की ही नहीं है बल्कि भारत में भी इस तरह के जानबूझकर जन-विशेष की भावनाओं को कुचलने के षडयंत्र होते रहे हैं। भगवान महावीर एवं महात्मा गांधी के देश में शराब को बल देने एवं उसकी बिक्री को बढ़ाने लिये बहुसंख्य समाज की आस्था को नजरअंदाज किया जाता है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सिद्धांत और व्यवसाय के बीच भेदरेखा होते हुए भी सिद्धांतहीन व्यवसाय भौतिक स्तर पर चाहे समृद्धि ले आए पर सैद्धांतिक दरिद्रता अवश्य ही लाएगा। क्योंकि गरीब वह नहीं, जिसके पास धन नहीं अपितु वह है जो अधिक धन रखना चाहता है। भूखा वह नहीं, जिसे भोजन नहीं मिला अपितु वह है जो भोजन में स्वाद चाहता है। सफल व्यवसायी वह नहीं है जो अपने लाभ के लिये विश्वसमुदाय के प्रतीकों एवं विभूतियों की छवियों को कुचले।
महात्मा गांधी ने विश्व शांति, अहिंसा एवं आपसी सौहार्द की स्थापना के लिए देश-विदेश के शीर्ष नेताओं से मुलाकातें कीं, अहिंसक प्रयोग किये, भारत को अहिंसा के द्वारा आजादी दिलाई। उन्होंने आदर्श, शांतिपूर्ण एवं अहिंसक समाज के निर्माण के लिये वातावरण बनाया। गांधी ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से शराबबंदी का सशक्त वातावरण बनाया। शराबबंदी के साथ महात्मा गांधी का नाम ऐसा जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। उसी महापुरुष की छवि को धूमिल करने की कुचेष्टा को कैसे क्षम्य माना जा सकता है? हमारे लिये यह सन्तोष का विषय है कि गांधी ने अहिंसा का जो प्रयोग भारत की भूमि से शुरू किया, उसे संसार की सर्वोच्च संस्था ने जीवन के एक मूलभूत सूत्र के रूप में मान्यता दी है। हम देशवासियों के लिये अपूर्व प्रसन्नता की बात है कि गांधी की प्रासंगिकता चमत्कारिक ढंग से बढ़ रही है। दुनिया उन्हें नए सिरे से खोज रही है। उनको खोजने का अर्थ है अपनी समस्याओं के समाधान खोजना, हिंसा एवं आतंकवाद की बढ़ती समस्या का समाधान खोजना, नशा एवं असंतुलित जीवनशैली का समाधान खोजना। शायद इसीलिये कई विश्वविद्यालयों में उनके विचारों को पढ़ाया जा रहा है, उन पर शोध हो रहे हैं। आज भी भारत ही नहीं, दुनिया के लोग गांधी के पदचिन्हों पर चलते हुए अहिंसा का समर्थन करते हैं। वे सम्पूर्ण मानवता की अमर धरोहर हैं। इस अमर धरोहर को कुचलने एवं धुंधलाने की घटना पर विश्व समुदाय को भी विरोध दर्ज कराना चाहिए।
जिस तरह गांधी की तस्वीर का घिनौना एवं विडम्बनापूर्ण उपयोग शराब के लिये हुआ है वैसा ही हिन्दू देवी-देवताओं का उपयोग न केवल मांसाहार के प्रचार के रूप में बल्कि कभी चप्पलों तक में उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। कभी टी-शर्ट तो कभी महिलाओं के वस्त्रों में उनका उपयोग घटिया एवं सिद्धान्तहीन लाभ की भावना से होता रहा है। आखिर इतनी असंवेदनशीलता क्यों हैं? क्यों इतनी विकृत व्यावसायिकता है? बात इजराययल की है, वहां जो भी हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है, इसके विरुद्ध एकजुट होकर अपना विरोध दर्ज कराना ही चाहिए। महात्मा गांधी भारत के अकेले ऐसे महापुरुष हैं जिन्हंे कोई गोली या गाली नहीं मार सकती, कोई विकृत सोच उनकी महानता को दबा नहीं सकती। देखना यह है कि हमारी सरकारें एवं ताकत देश की महान् विभूति की छवि को धुंधलाने का जो दुस्साहस किया गया है, उसका हम कितना करारा जबाव देते हैं। आज जैसे बुद्धिमानी एक ”वैल्यू“ है, वैसे बेवकूफी भी एक ”वैल्यू“ है और मूल्यहीनता के दौर में यह मूल्य काफी प्रचलित है। आज के माहौल में यह ”वैल्यू“ ज्यादा फायदेमंद है लेकिन इसका नुकसान भी बड़ा है, यही बात दुनिया को समझाने की जरूरत है, शराब कम्पनी के गले उतारने की जरूरत है।
(ललित गर्ग)
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