सड़कों पर होने वाले गढ्ढों को अब सरकार ने बेहद गंभीरता से लिया है और एक विशेषज्ञ समिति बनाई है जो इन गढ्ढों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि गढ्ढों पर दिन रात टीवी और अखबारों में आ रही खबरों पर सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए देश के इंजीनियरों, पुरातत्वविदों, पर्यटन विशेषज्ञों और पर्यटन कंपनियाँ चलाने वाली कंपनियों के लोगों को लेकर एक कमेटी का गठन करने जा रही है। ये कमेटी देश भर में सड़कों पर होने वाले गढ्ढों के संरक्षण का कार्य करेगी और जिन इंजीनियरों की कार्यकुशलता की वजह से सड़कों पर गढ्ढे बने हैं उनको पुरस्कृत करने की सिफारिश भी सरकार से करेगी।
सरकारी प्रवक्ता का कहना था कि इससे देश में पर्यटन को बढ़ावा भी मिलेगा और मॉडर्न आर्ट का प्रचार भी होगा। प्रवक्ता का कहना था कि सड़कों पर पड़ने वाले गढ्ढे मॉडर्न आर्ट के ऐसे बेयाब नमूने होते हैं कि कोई धुरंधर कलाकार या पेंटर भी चाहे तो ऐसी डिज़ाईन नहीं बना सकता। कमेटी ने अपने सर्वे में पाया है कि कई गढ्ढे तो किसी देश के नक्षे जैसे होते हैं और देखा ये गया है कि कोई विदेशी जब अपने देश के नक्षे जैसा गढ्ढा देखता है तो वो पागल हो जाता है और उसके साथ सेल्फी लेकर अपने फेसबुक और ट्वीटर पर पोस्ट करके गर्व से लिखता है कि इंडिया में मैंने अपने देश का इतना खूबसूरत नक्षा देखा। इससे होता ये है कि उसके देश के दूसरे लोग भी इस गढ्ढे के साथ सेल्फी लेने आते हैं। लेकिन मूर्ख मीडिया वालों, सामाजिक कार्यकर्ताओँ और विरोधियों की सक्रियता से उन गढ्ढों को भर देना पड़ता है। इससे विदेशी पर्यटक हताश और नाराज़ हो जाते हैं।
प्रवक्ता का कहना था कि ये गढ्ढे विदेशी मुद्रा की कमाई एक अच्छे स्त्रोत बन रहे हैं। भारतीय इंजीनयिरों की सड़क निर्माण कला में गढ्ढे पैदा होने की इस विशेष योग्यता के तो विदेशी इंजीनियर भी कायल हो गए हैँ। अब सरकार के पास पूरी दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों के इंजिनीयर ये गढ्ढा कला सीखने आने के लिए आवेदन दे रह हैं। उनका कहना है कि हमारे देश मे हम सड़क बनाते हैं तो गढ्ढे पड़ते ही नहीं और हमारे देश का जो भी व्यक्ति भारत जाकर गढ्ढे देखता है और अपनी सेल्फी खिंचवाकर बताता है कि उसने फलाँ शहर में अपने देश का बीच सड़क पर इतनी शानदार कलाकारी से बना हुआ देखा तो हैरत में पड़ गया। इसकी सेल्फी और फेसबुक पेज देखकर हमारे लोग हमको कोस रहे हैं कि हमको सड़क बनाने की तमीज तक नहीं है। हमारी बनाई सड़कों पर गढ्ढा ही नहीं पड़ता है। इस वजह से हमारा लोगों को मुँह दिखाना हराम हो रहा है। जो भी भारत से आता है गढ्ढे का फोटो लेकर आता है। वहाँ की सामाजिक संस्थाएँ और क्लब उसका सम्मान समारोह आयोजित कर उससे जानना चाहते हैं कि जिस देश में हमारे देश का नक्षा बीच सड़क पर इतनी खूबसूरती से बनाया गया है, उस देश के बारे में, वहाँ की सरकार के बारे में और ऐसे विलक्षण इंजीनियरों के बारे में हमे भी कुछ बताओ। सम्मान समारोह में लोग गढ्ढे को लेकर तरह-तरह के सवाल पूछते हैं।
सरकारी प्रवक्ता का कहना था कि विदेशी पर्यटकों के इस उत्साह को देखते हुए सरकार ने फैसला लिया है कि जिन इंजीनियरों की नायाब इंजीनियरिंग की वजह से सड़कों पर गढ्ढे बन रहे हैं उन्हें सार्वजनिक रूप से पुरस्कृत किया जाएगा। लोगों में गढ्ढों को लेकर जागरुकता फैलाई जाएगी कि वे बहकावे में आकर गढ्ढों का विरोध न करें बल्कि उनके साथ सेल्फी लेकर अपने फेसबुक पेज पर और सरकार के सभी विभागों के फेसबुक व ट्वीटर पेज से लेकर इंस्टाग्राम पर पोस्ट करें। अब सरकार भी गढ्ढों की खूबसूरती और बेहतरीन डिज़ाईऩ के आधार पर उनको दुनिया भर में प्रचारित प्रसारित करेगी।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इससे स्थानीय प्रतिभाओं को भी मौका मिलेगा, और गढ्ढों को लेकर नकारात्मक खबरों की जगह सकारात्मक खबरें आएगी। गाँव के बच्चों से लेकर शहरों के लोग गढ्ढों के साथ सेल्फी खिंचवाते नज़र आने लगेंगे। गाँवों में उत्साह और रोमांच का वातावरण बनेगा। शहरों में लोगो में भाईचारा बढ़ेगा। टीवी पर गढ्ढों को लेकर बहस चलेगी। हर टीवी बकवासकर्ता या यूँ कहें प्रवक्ता दूसरे प्रवक्ता के गढ्ढे को नकली करार देगा। टीवी चैनल का एंकर अपने कैमरामैन और रिपोर्टर को गढ्ढा स्थल पर भेजेगा। रिपोर्टर गढ्ढे के आसपास के लोगों से, सड़क बनाने वाले इंजीनियर से बात करेगा। इंजीनियर बताएगा कि किस तकनीक से उसने रोड बनाई जिसकी वजह से ये गढ्ढा बन सका। मौके पर मौजूद गढ्ढे के बारे में अपनी अपनी राय देंगे। हर कोई ये बताने को उतावला रहेगा कि इस गढ्ढे को सबसे पहले उसने देखा था। उसने ही इसके साथ सेल्फी ली थी।
एक अन्य अधिकारी का कहना था कि इस देश में हजारों सालों से कई कलाएँ पैदा होती रही, भित्ती चित्र, पट्ट कला, मूर्ति कला, लेकिन इस सरकार की ये उपलब्धि है कि इसने गढ्ढा कला को राष्ट्रीय सम्मान के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन के आकर्षण का केंद्र बना दिया। अधिकारी का कहना था कि हर गढ्ढा कला, संस्कृति और सौंदर्यबोध का एक संदेशवाहक बनेगा।
जब अधिकारी से पूछा गया कि जो लोग गढ्ढों की वजह से मौत के शिकार हो जाते हैं और अपने हाथ पैर तुड़वा बैठते हैं उसको लेकर उनके पास क्या योजना है। तो उसने कहा कि अब तो अगर कोई गढ्ढे के पास जाकर मर गया या हाथ पैर तुड़वा बैठेगा तो उसके घर वाले खुद खुशी से पागल हो जाएंगे, क्योंकि हो सकता है जिस गढ्ढे की वजह से उनके घर में मौत हुई हो वो गढ्ढा किसी देश के नक्षे से मेल खाता हो और सबसे ज्यादा पर्यटक से ही देखने आए हों। जो व्यक्ति किसी गढ्ढे की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा उसकी तो बल्ले बल्ले हे जाएगी, दिन भर टीवी वाले उस गढ्ढे पर खड़े होकर उस व्यक्ति का फुटेज दिखाएंगे, जिसको अपने मोहल्ले में कोई नहीं पूछता होगा वो गढ्ढे की वजह से रातोंरात सेलिब्रटी हो जाएगा। टीवी चैनलों पर उसे बहस के लिए बुलाया जाएगा और वो इस बात पर गर्व महसूस करेगा कि अगर वो गढ्ढे की वजह से अपने हाथ पैर न तुड़वाता तो उसकी जिंदगी में कितना खालीपन रहता।
प्रवक्ता का कहना था कि सरकार इस बात पर भी विचार कर रही है कि स्कूलों और कॉलेजों में गढ्ढों पर निबंध, भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिताओँ का आयोजन किया जाए। इसका फायदा ये होगा कि हर छात्र-छात्रा अपने क्षेत्र के गढ्ढे कों गंभीरता से लेगा और उसके बारे में विस्तार से जानकारी लेगा, गढ्ढा किस साईज का है, कैसे बना है, बनने के बाद इसकी डिजाईन में क्या बदलाव आया है, इससे उनकी पढ़ाई भी नीरस की बजाय रोचक हो जाएगी। बच्चों के लिए गढ्ढों की पेंटिंग प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाएगा। जो बच्चा सबसे खूबसूरत गढ्ढे की तस्वीर बनाएगा उसे उसी गढ्ढे के पास लेजाकर पुरस्कृत किया जाएगा। पहले तो बच्चे घर की छतों पर जाकर आसमान में बादल देखकर तरह तरह की पेंटिंग बनाकर पेंटिंग का गुर सीखते थे लेकिन अब न तो घर की छतें रही न बच्चे फालतू आसमान में ताकते हैं। ऐसे में गढ्ढों से ही उनकी पेंटिग कला का सही विकास हो सकेगा।
तो आईये हम सब मिलकर सरकार की इस गढ्ढा पर्यटन और प्रोत्साहन योजना को सफल बनाएँ। अगर आपके आसपास कोई सड़क बगैर गढ्ढे की है तो आप उस पर कोई शानदार गढ्ढा त्तकाल बना दें कहीं ऐसा न हो कि लोग आपके मोहल्ले वालों को और आपके पिछड़ा, गँवार और बेवकूफ समझ ले कि लो इनकी सड़क पर तो एक गढ्ढा भी नहीं हैं, कैसे पिछड़े हुए लोग हैं।