दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के पहले दिन रोनाल्ड स्टुअर्ट मेक्ग्रेगर सभागार में ‘गिरमिटिया देशों में हिन्दी” विषय पर समान्तर सत्र में इन देशों में हिन्दी के विकास और इससे जुड़े विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। सत्र की अध्यक्षता गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला िसन्हा ने की। सत्र का संचालन श्री मनोहर पुरी ने किया।
श्री मनोहर पुरी ने विषय का परिचय करवाते हुए गिरमिटिया देशों में भारत से मजदूर के रूप में गए लोगों के इतिहास, उनके द्वारा संस्कृति, धर्म, परम्पराओं और हिन्दी के संरक्षण और विकास पर किये गये कार्यों पर प्रकाश डाला।
डॉ. रामनरेश मिश्र ने बताया कि गिरमिटिया देशों में भारतीयों ने किस तरह भारत की संस्कृति को जीवित रखा और लगातार समृद्व किया। इस कार्य में रामचरित मानस सहित भारत के धार्मिक ग्रंथों पर उनके योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गिरमिटिया किस तरह अपने दुख-दर्द और अन्याय को भूलकर भारतीय त्यौहारों को पूरे उत्साह से मनाते है।
श्रीमती सरिता बुद्धु ने बताया कि मॉरिशस में गिरमिटिया मजदूर के रूप में गये लोगों ने वहाँ भारत की संस्कृति पर आधारित गाँव बसाए। उन्होंने बताया कि किस तरह वे लोग दादा, नाना, चाचा, मामा, मौसी-मौसा आदि भारतीय संबोधनों को आज भी जीवित रखे हैं। उनकी नई पीढ़ियाँ भी इन्हीं संबोधनों का उपयोग करती हैं। उन्होंने भारत सरकार से भोजपुरी भाषा के विकास के लिए और अधिक प्रयास की अपेक्षा की।
श्री आर. के. सिन्हा ने बताया कि हिन्दी आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा बनी है तो उसमे गिरमिटिया देशों में रहने वाले भारतीय लोगों का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने बताया कि मॉरिशस में हिन्दी साहित्य का लेखन 1910 में शुरू हो गया था। मॉरिशस में पहला हिन्दी ग्रंथ ‘मॉरिशस का इतिहास’ आशाराम विश्वनाथ ने लिखा। उन्होंने बताया कि गिरमिटिया लेखन मौलिक है और इसमें भाषा की मौलिकता को बरकरार रखा गया है। मॉरिशस की आजादी में हिन्दी का बहुत बड़ा योगदान है।
श्री सिन्हा ने कहा कि हिन्दी के लिए अनुकूल सरकार है। उन्होंने अपेक्षा की कि दूतावास हिन्दी के क्षेत्र में ज्यादा बेहतर कार्य करें। दूतावास में हिन्दी जुड़े कम से कम एक अधिकारी को पदस्थ किया जाना चाहिए। साथ ही हिन्दी की पुस्तकें भी उपलब्ध करवायी जाना चाहिए।
मारिशस की मानव संसाधन एवं विज्ञान मंत्री श्रीमती लीला दुखन लछुमन ने कहा कि सभी गिरमिटिया देशों में हिन्दी की स्थिति समान है। गिरमिटिया देशों ने धर्म और सम्प्रदाय से उठकर हिन्दुस्तानी समाज का विकास किया। श्रीमती लछुमन ने हिन्दी के विकास के लिए कार्य किये जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मारिशस में हिन्दी को जोड़ने के लिए नई प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है। साहित्य के अलावा आधुनिक विषयों के साथ उन्हें हिन्दी के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिन्दी से जोड़ना भी एक बड़ी चुनौती है कि क्योंकि वैश्वीकरण के दौर में नयी पीढ़ी भाषा और संस्कृति से दूर होती जा रही है।
श्रीमती लछुमन ने कहा कि हिन्दी के प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। भारत इस कमी को दूर करने में सहयोग कर सकता है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रिय भाषा का मानक विकसित करने पर भी जोर दिया। गिरमिटिया देशों में हिन्दी की बोलियों के संरक्षण की आवश्यकता भी उन्होंने बतायी।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा गिरमिटिया देशों में हिन्दी के अध्ययन के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्ति का कोटा बढ़ाया जाए। बच्चों को केवल हिन्दी साहित्य नहीं बल्कि बिजनेस-हिन्दी, कम्युनिकेशन, हिन्दी एण्ड टेक्नालॉजी तथा तुलनात्मक अध्ययन के लिये छात्रवृत्तियाँ दी जायें। दूरदर्शन के माध्यम से एक ऐसा चेनल स्थापित किया जाये, जिसमें हिन्दी और भारतीय भाषाओं की शिक्षा के लिये बच्चों के रोचक कार्यक्रम हों। यह कार्यक्रम टेलीविजन और स्मार्ट फोन के माध्यम से पूरी दुनिया में मुफ्त प्रसारित किये जायें। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान में हिन्दी को विशेष महत्व दिया जाए। भारत में प्रवासी हिन्दी साहित्य के अध्ययन को अनिवार्य किया जाए और इसके शोध के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाए। उन्होंने हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा बनाये जाने पर भी जोर दिया।