पूरे विश्व में बावजूद इसके कि लगभग 250 विभिन्न धर्मों,आस्थाओं तथा विश्वासों के मानने वाले लोग रहते हैं। सभी की अपनी-अपनी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं, सबके अपने-अपने रीति-रिवाज हैं। इनमें कुछ धर्म तथा विश्वास तो ऐसे हैं जो रीति-रिवाज व मान्यताओं के अनुसार एक-दूसरे के काफी करीब दिखाई देते हैं जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिनके रीति-रिवाज एक-दूसरे धर्मों के रीति-रिवाजों के विपरीत नज़र आते हैं। मिसाल के तौर पर कोई एकेश्वरवाद को मानता है तो कोई मूर्ति पूजक कहलाता है। कोई भगवान को साकार समझता है तो कोई उसे निराकार रूप में मान्यता देता है। परंतु इन तमाम अलग-अलग आस्थाओं व विश्वासों के बावजूद यह बात तो पूरी तरह से अकाट्य सत्य है कि इस ब्रह्मांड तथा पृथ्वी अर्थात् समूची सृष्टि का रचयिता केवल एक ही है। चाहे कोई उसे अल्लाह कहकर पुकारे,कोई ईश्वर का नाम दे या गॉड अथवा किसी अन्य नाम से क्यों न संबोधित करे। लिहाज़ा इन शब्दों को केवल उसी सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता निराकार ईश्वर या अल्लाह के नाम का पर्यायवाची ही कहा जा सकता है।
यदि सभी धर्मों का अध्ययन किया जाए तो उनसे भी यही साबित होगा कि ईश्वर और अल्लाह दो अलग-अलग चीज़ें नहीं बल्कि दोनों एक ही नाम हैं। परंतु इसके बावजूद हमारे वैश्विक समाज की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि उपरोक्त हकीकत जानने के बावजूद प्रत्येक धर्म तथा विश्वास का अनुयायी आमतौर पर अपने ही समुदाय से जुड़े धर्मग्रंथों तथा उससे संबंधित अवतारों,देवताओं,संदेशवाहकों या पैगंबरों को ही सबसे बड़ा,सबसे पवित्र, शक्तिशाली तथा सबसे सच्चा साबित करने की कोशिश में लगा रहता है। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि एक धर्म का अनुयायी दूसरे धर्म के धर्मग्रंथों या उनके महापुरुषों में कमियां निकालने की कोशिश करता है। अपने आराध्यों से उनकी तुलना कर उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करता है। इसका नतीजा यह होता है कि जहां धर्म को लेकर एक-दूसरे समुदायों के बीच प्रेम,सद्भाव तथा आपसी सूझबूझ का वातावरण कायम होना चाहिए वहीं एक-दूसरे धर्म के लोग एक-दूसरे के दुश्मन बने दिखाई देने लगते हैं। और कभी-कभी सांप्रदायिकता की यह तल्खी इस हद तक बढ़ जाती है कि कोई किसी दूसरे धर्म से संबंधित धर्मस्थलों को गिराने या उसमें तोड़-फोड़ करने तक पर उतारू हो जाता है तो कहीं एक-दूसरे संप्रदाय के धर्मग्रंथों को आग के हवाले कर उसे अपमानित करने का प्रयास किया जाता है। ज़ाहिर है संपूर्ण मानवजाति की उत्पति करने वाला वह सर्वशक्तिमान पृथ्वी पर मानवजाति के मध्य उसके नाम पर होने वाले ऐसे खून-खराबों को देखकर अफसोस ही करता होगा।
इसी संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ईश्वर-अल्लाह के मध्य कोई भेद नहीं रखते। उनकी नज़रों में क्या कुरान तो क्या गीता सभी एक समान मरतबा रखते हैं। जहां मुसलमान गीता पढकर स्वयं को धन्य महसूस करता है वहीं एक हिंदू द्वारा कुरान का अध्ययन कर यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि ईश्वर-अल्लाह तथा कुरान व गीता में कोई भेद नहीं है। पिछले दिनों हमारे देश में मुंबई की रहने वाली मुसिलम परिवार की एक लडक़ी मरियम आसिफ सद्दिकी ने उस समय पूरे देश मे एक मिसाल कायम की जबकि उसने भगवत् गीता पर आयोजित एक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। देश के मीडिया ने उसे एक आदर्श कन्या के रूप में प्रचारित व प्रसारित किया। बड़े-बड़े टीवी कार्यक्रमों में उसे बुलाकर उसके साक्षात्कार लिए जाने लगे। यहां तक कि एक टी वी कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन जैसे महान िफल्म अभिनेता भी उससे रूबरू हुए। देश ने मरियम आसिफ सिद्दीकी की खुले दिल से प्रशंसा की।
आखिर मरियम सिद्दीकी ने ऐसा क्या खास कर दिखाया था कि वह प्रसिद्धि के इस शिखर तक पहुंच गई? ज़ाहिर है उसकी विशेषता केवल यही थी कि धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वाले उसके माता-पिता ने उसे ऐसे संस्कार दिए थे जिनपर चलते हुए उसने जहां अपने धर्म से जुड़े सर्वप्रमुख धर्मग्रंथ कुरान शरीफ का अध्ययन किया वहीं उसने भगवत् गीता का अध्ययन करने में भी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की। यहां तक कि उसने भगवत् गीता का इतना ज्ञान हासिल कर लिया कि उसने इससे संबंधित प्रतियोगिता में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। यदि मरियम सिद्दीकी की जगह कोई हिंदू लडक़ी भगवत् गीता प्रतियोगिता में प्रथम आती तो शायद कोई समाचार पत्र भी उसकी सफलता की खबर प्रकाशित न करता। परंतु चूंकि मरियम ने मुसलमान होने के बावजूद भगवत् गीता का गहन अध्ययन कर प्रतियोगिता जीती थी इसलिए राष्ट्रीय मीडिया ने उसकी ओर पूरा ध्यान दिया।
मरियम सिद्दिकी को मीडिया तथा समाज के विभिन्न वर्गों से मिलने वाला अपार समर्थन तथा उसके व उसके परिवार के बेहद लोकप्रिय होने का निहितार्थ भी यही कि हमारे देश का वह समाज जो भले ही स्वयं रूढ़ीवादी हो या धार्मिक विषयों को लेकर अपनी संकुचित सोच क्यों न रखता हो परंतु आिखरकार वह भी इस बात का कायल है कि सभी धर्मों के लोगों को सभी धर्मों के धर्मग्रंथों व उनके महापुरुषों यहां तक कि उनके संस्कारों व रीति-रिवाजों का सम्मान करना चाहिए। और कितना अच्छा हो यदि सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के धर्मग्रंथों तथा उनके महापुरुषों का सम्मान करने लगें तथा उनके विषय में अध्ययन भी करने लगें। मरियम सिद्दीकी के बाद अब एक दूसरी मिसाल कर्नाट्क राज्य के हुबली जि़ले के पंजारगली क्षेत्र से सुनने को मिल रही है। यहां अन्नपूर्णा नाम की एक हिंदू लडक़ी ने कुरान शरीफ का गहन अध्ययन करने के बाद पूरा कुरान शरीफ पढ़ लिया है। इतना ही नहीं बल्कि यह हिंदू लडक़ी अब दूसरे मुस्लिम तथा गैर मुस्लिम धर्मों के बच्चों को कुरान शरीफ की शिक्षा देने का काम भी कर रही है। मज़े की बात तो यह है कि अन्नपूर्णा की मां राजेश्वरी की यह हार्दिक इच्छा थी कि उसकी बेटी कुरान शरीफ का अध्ययन करे। आज जबकि अन्नपूर्णा कुरान शरीफ पढ़ चुकी है तथा दूसरों को भी पढ़ाने लगी है ऐसे में उसके परिवार के लोग उसपर काफी गर्व महसूस कर रहे हैं। उसके परिजनों का कहना है कि सभी लोगों को हर धर्म का सम्मान करना चाहिए तथा उससे संबंधित शिक्षाओं को भी हासिल करना चाहिए। यही नहीं बल्कि अन्नपूर्णा का पूरा समुदाय भी इसकी इस उपलिब्ध पर गर्व महसूस कर रहा है।
इसके पहले पश्चिम बंगाल से भी ऐसी खबरें आती रही हैं कि वहां के अनेक मदरसों में हिंदू शिक्षक हैं जो बच्चों को इस्लामी शिक्षाएं दे रहे हैं। यही नहीं बल्कि इन मदरसों में बड़ी संख्या में हिंदू परिवारों के बच्चे भी दीनी तालीम हासिल कर रहे हैं। यदि वास्तव में वैश्विक स्तर पर ऐसी सोच सामान्य रूप से समस्त मानवजाति में पैदा हो जाए तो संसार में सांप्रदायिक तनाव, दुर्भावना तथा वैमनस्य का वातावरण जड़ से समाप्त हो जाएगा। आज जो संसार केवल सांप्रदायिक दुर्भावनाओं के चलते बारूद के ढेर पर बैठा दिखाई दे रहा है वही दुनिया स्वर्ग के रूप में नज़र आने लगेगी। परंतु अफसोस की बात तो यह है कि इस प्रकार की धारणा आमतौर पर सामान्य रूप से परवान नहीं चढ़ पाती। हमारे समाज के विभिन्न धर्मों के ऐसे कट्टरपंथी लोग जो देश और दुनिया के विकास में अपना कोई योगदान नहीं रखते। ऐसे निठल्ले लोग अपने जीविकोपार्जन के रूप में सांप्रदायिकता और कट्टरवाद का खेल खेलते रहते हैं। समाज में जितनी नफरत फैलती है, धर्म के नाम पर जितना अधिक दुर्भावना बढ़ती है उतनी ही अधिक इन निठल्लों की दुकानदारी परवान चढ़ती है। चाहे वह दुकानदारी धर्म के नाम पर चलाई जा रही हो,जाति के नाम पर की जा रही हो या धर्म व राजनीति का कॉकटेल कर चलाई जा रही हो।
परंतु निश्चित रूप से जहां कहीं भी एक-दूसरे धर्मों के साथ परस्पर सहयोग या एक-दूसरे के धार्मिक आयोजनों में शरीक होने जैसा वातावरण है वहां सद्भाव और खुशहाली के सिवा और कुछ नज़र नहीं आएगा। मुंबई की िफल्म नगरी इस बात का जीता-जागता सुबूत है कि यहां विभिन्न धर्मों से संबंध रखने वाले कई अभिनेता व अभिनेत्रियां ऐसे हैं जिन्होंने अलग-अलग धर्म के लोगों से शादियों की हैं, एक-दूसरे धर्म से जुड़े आयोजनों में पूरी श्रद्धा व उल्लास के साथ शामिल होते हैं तथा एक-दूसरे के धार्मिक रीति-रिवाजों का पूरा सम्मान करते हैं। पूरे भारतवर्ष के लोगों को मरियम सिद्दीकी तथा अन्नपूर्णा जैसी होनहार लड़कियों से सबक लेना चाहिए। देश के अभिभावकों को भी यही चाहिए कि वे अपने बच्चों को सभी धर्मों व संप्रदायों के धर्मग्रंथों,उनके आराध्य महापुरुषों,अवतारों तथा देवी-देवताओं के बारे में शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा दें। एक-दूसरे का सम्मान करने की सीख दें। हमारे देश के सबसे महान आदर्शपुरुष महात्मा गांधी ने अपनी प्रिय रामधुन में इसीलिए इस श£ोक को प्रथम स्थान दिया था-‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान’।। ताकि भारतीय समाज इन विचारों को आत्मसात कर देश में सद्भाव एवं खुशहाली लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके।
Nirmal Rani (Writer)
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