रविवार को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने से पहले गोरखपुर में उनके जनता दरबार में काम रोज की तरह चल रहा था। योगी भले ही लखनऊ में थे, लेकिन उनके अॉफिस में तीन टेलीफोन लगातार बज रहे थे और दो टाइपराइटर्स लोगों की चिट्ठियां पढ़ रहे थे, जिसमें लोगों की सिफारिशें शामिल थीं। महाराज की चिट्ठी के लिए इंतजार करने वालों में शमशेर आलम भी थे, जो योगी के अॉफिस से एक पत्र की मांग कर रहे थे, ताकि रेलवे में उनकी टिकट कन्फर्म हो जाए। उन्हें कुछ घंटों में अपनी कुंवारी बहन के कान की सर्जरी के लिए दिल्ली निकलना था, लेकिन उनकी सीट कन्फर्म नहीं थी।
आलम से आगे बैठीं 65 वर्षीय शनिचरी कहती हैं कि उन्हें एक चिट्ठी चाहिए ताकि वह मुफ्त में अपने सिरदर्द का इलाज करा सकें। वह कहती हैं कि पिछले कुछ महीनों से उनके सिर में बहुत दर्द रहता है, लेकिन उनके पास इलाज कराने के पैसे नहीं हैं। योगी के जनता दरबार में आए लोग कहते हैं कि महाराज की चिट्ठी वह जादुई पत्र है, जिससे गोरखपुर में सारे काम हो जाते हैं। आलम कहते हैं कि मुख्यमंत्री कोई भी हो, जो यहां आता है। इस चिट्ठी से उसका काम हो जाता है। यहां कल, परसों, नरसों नहीं बुलाया जाता और अधिकारी महाराज की बात नहीं टालते। जैसे ही आलम को चिट्ठी मिलती है, वह तुरंत योगी की हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं की भीड़ से निकलकर रेलवे स्टेशन भागने की कोशिश करते हैं, जो योगी की कुर्सी के साथ सेल्फी लेने में व्यस्त है, जो आज खाली है।
इस कुर्सी पर एक भगवा कपड़ा पड़ा है और मेज पर कुछ कागज और किताबें रखी हुई हैं, जिसमें सबसे ऊपर रामायण और आरएसएस के ऊपर प्रोफेसर त्रिलोकी नाथ मिश्रा द्वारा लिखी गई किताब शामिल है। यही योगी का दफ्तर है, यहां हर सुबह 9 से 11 बजे तक जनता दरबार लगाया जाता है, जब वह गोरखपुर में होते हैं। उनकी गैरहाजिरी में पत्रों पर उनके प्रतिनिधि द्वारका तिवारी साइन करते हैं।
वहीं चौधरी कैफुल वरक अपना नाम सरकार के हज कोटा की सूची में शामिल कराने की सिफारिश लेकर आए हैं। वह कहते हैं कि यहां जो आता है, उसका काम हो जाता है। वह कहते हैं कि कुछ समय पहले हम यहां एक मस्जिद से संबंधित जमीन पर विवाद का समाधान करने के लिए यहां आए थे, जिस पर अतिक्रमण किया गया था। इसका समाधान महाराज ने ही किया था। योगी के दफ्तर में जमीन का रिकॉर्ड संभालने वाले 51 वर्षीय जाकिर अली वारसी कहते हैं कि बाहर जिस तरह योगी के कार्यालय की मजबूत हिंदुत्व छवि बताई जाती है, हकीकत उसके उलट है। युवा मोहम्मद मौन परिसर के अंदर गाय आश्रय में देखभाल करने वालों में से एक हैं। वहीं 70 वर्षीय मोहम्मद यासीन मठ और उसके बाहर सभी निर्माण कार्यों के प्रभारी हैं।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से