मेहसाना । मागपारा के आंगनवाड़ी स्कूल में बच्चों की आंखों में उम्मीद की अलग सी चमक थी। खिमजीभाई प्रजापति अपनी बैसाखी के सहारे स्कूल में दाखिल हुए। स्कूल में पढ़ने वाली 10 बच्चियों के माता-पिता ने सोचा कि आदत के मुताबिक, प्रजापति उनकी बेटियों में किताबें या स्कूल के कपड़े बांटेंगे। ये सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं।
जब प्रजापति ने अपने पास से 10 छोटे डब्बों में बंद सोने की बालियां निकालीं, तो सब हैरान रह गए। उन्होंने दसों बच्चियों को एक-एक बाली दी। 68 साल के प्रजापति एक भिखारी हैं। वह मेहसाना में मंदिर के बाहर भीख मांगते हैं। भीख में मिले पैसे जमाकर वह गरीब परिवार के बच्चों को किताबें, कपड़े देते हैं।
मंगलावर को जिन 10 बच्चियों को प्रजापति ने सोने की बाली दी, उनमें 3 साल की भूमि भी शामिल है। भूमि की मां कुमुद लुहारिया चहकते हुए बताती हैं, ‘हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमें सोना मिलेगा।’
प्रजापति ने हमसे बात करते हुए बताया, ‘बच्चियों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। उन्हें आत्मनर्भर बनकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। मेहसाना की हालत इस मामले में अच्छी नहीं है। लड़कों की तुलना में लड़कियां बहुत कम हैं। यही कारण है कि मैं इस तरह के तोहफे देकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करता हूं।’
इस आंगनबाड़ी केंद्र को चलाने वालीं शीतल सथवारा कहती हैं, ‘भिखारी को तो छोड़िए, मैंने अपनी पूरी जिंदगी में किसी गरीब आदमी को औरों की बच्चियों को इसतरह सोने की चीजें देते हुए नहीं देखा है।’
प्रजापति ने ये सोने की बालियां दीपक शाह नाम के सुनार से खरीदीं। शाह ने उन्हें सस्ती दर पर बालियां दीं। वह बताते हैं, ‘ये बालियां बहुत छोटी थीं। नाक के बूंदों से कुछ ही बड़ी थीं। पूरा खर्च 13,000 आया। जब मुझे पता चला कि प्रजापति ये सब गरीब बच्चियों को देना चाहते हैं, तो मैंने उन्हें 3,000 रुपये की छूट दी।’
अपने पास जमा पूरे पैसे इस काम में खत्म कर देने के बाद, प्रजापति एक बार फिर भीख मांगकर पैसे जमा करने के लिए तैयार हैं। मंगलवार को हालांकि प्रजापति को बिना भीख मांगे ही पैसे मिल गए। सरकारी स्कूल में शिक्षक के तौर पर पर नियुक्त एक महिला का तबादला हो गया था। उन्होंने मेहसाना से जाते-जाते प्रजापति को 500 रुपये दिए। परोपकार करने वालों को अक्सर अच्छे लोग मिल ही जाते हैं।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से