Friday, November 22, 2024
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अच्छे संस्कार और अच्छी संस्कृति

अच्छे संस्कार और हमारी शाश्वत सनातनी अच्छी संस्कृति पर अवलंबित है हमारा प्यारा भारतवर्ष। अच्छे संस्कार और अच्छी संस्कृति के जन्मदाता हैं -राम,कृष्ण,गौतम और गांधी आदि जिन्होंने इस ऋषि-मुनियों के देश भारत में जन्म लेकर अपने अच्छे आचरण और अच्छे व्यवहार से भारतवर्ष को ही नहीं अपितु पूरे विश्व को शांति,एकता,मैत्री तथा भाईचारे का अमर पावन संदेश दिया।भारतवर्ष की शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल परम्परा से आरंभ होकर आज सूचना तकनीकी के क्षेत्र में श्रेष्टतम है।

औपचारिक,अनौपचारिक,तकनीकी तथा उच्च शिक्षा आदि  आज के समय की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी हैं।भारत सरकार की नई शिक्षा नीतिः2020 के अवलोकन से पता चलता है कि भारत की केन्द्र की लोककल्याणकारी सरकार पहली बार स्कूली शिक्षा,उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाई है,शैक्षिक क्रांति लाई है।आवश्यकता है उसके सही अनुपालन की।शिक्षक,छात्र और अभिभावक को उसे अच्छी तरह से समझने और अपनाने की। वैसे तो जिस प्रकार से एक नवजात शिशु को अपनी मां से रोने और हंसने की पहली शिक्षा प्राप्त होती है। उसे अपने पिताजी,दादा-दादीजी,चाचा-चाचीजी,भाई-बहन तथा संगी-साथी के सानिध्य में रहकर अच्छे संस्कार और संस्कृति की शिक्षा मिलती है।उनके सानिध्य में रहकर वह एक संस्कारी बालक बनता है और कुलगौरव कहलाता है।

सच है कि मनुष्य जीवन में आजीवन सीखने को महत्त्व को हमारे वेद,पुराण,उपनिषद,गीता,रामायण,महाभारत ,भागवत तथा गीता में आजीवन की सीखने का उल्लेख है।अच्छे संस्कार और सनातनी संस्कृति को जानने,समझने और अपनाने आदि की बात बताई गई है।आज शिक्षा के अनेक आयाम हैं। जैसेःअच्छे संस्कार और संस्कृति की शिक्षा।जीवनोपयोगी शिक्षा।प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा।नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा। शाश्वत जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा।स्वांतः सुखाय के साथ-साथ बहुजन हिताय की शिक्षा। इन सभी शिक्षाओं के मूल में संस्कार की शिक्षा आती है। हमारे ऋषि-मुनियों की सकारात्मक सोच है यह संस्कार की शिक्षा। भारतीय संस्कार परम्परा में कुल 16 प्रकार के संस्कार की बात कही गई है जिनमें सबसे पहला है-गर्भाधान संस्कार जो एक नवजात शिशु को अपनी मां के गर्भ से प्राप्त होती है।

दूसरा है-जातकर्म संस्कार जिसमें बालक को वेदमंत्रोच्चारण द्वारा दीर्घजीवी तथा मेधावी होने का संस्कार दिया जाता है।नामकरण संस्कार।इसमें बालक का वैदिक आधार पर नामकरण किया जाता है।अन्नप्रासन संस्कार जिसमें बच्चे को उसके जीवन में पहली बार सनातनी आधार पर भोजन कराया जाता है।चूडाकरण संस्कार जिसकी महत्ता हमारे ऋषि-मुनियों ने बताई है।अक्षरारंभ अथवा विद्यारंभ संस्कार जिसमें बच्चा लिखना सिखता है।

भाषा के चारों कौशलों-बोलना,सुनना,पढना और लिखना सिखता है।प्रणामनिवेदन संस्कार जिसमें बच्चा अपने माता-पिता,गुरु और ईश्वर आदि को प्रणाम करना सिखता है।जनेऊ संस्कार। यह संस्कार भारतीय वर्ण व्यवस्था तथा सनातन धर्म पर आधारित होता है।कर्णवेधन संस्कार।यह संस्कार पूर्ण पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व के लिए किया जाता है।वेदारंभ संस्कार जिसके प्राप्त करने से बालक वेदों का अध्ययन आरंभ करने का अधिकारी बन जाता है।विवाह संस्कार। यह संस्कार सभी संस्कारों में श्रेष्ठ माना गया है।इसे गृहस्थ आश्रम कहा जाता है जिसके माध्यम से चारों प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और अंतिम संस्कार है -अन्त्यकर्म संस्कार जो मरणोपरांत संपन्न होता है।

हमारी भारतीय संस्कृति के मूल हैं ये सभी प्रकार के संस्कार ही हैं जिसके बदौलत राजा दुष्यंत तथा शकुंतला के प्रतापी बालक भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पडा।इन्हीं संस्कारों पर अवलंबित है हमारी भारतीय संस्कृति।आज भारत को इण्डिया से भारतवर्ष बनाने की आवश्यकता है। आज देश के नौनिहालों,बालक-बालिकाओं,युवा-युवतियों और समस्त भारतवासियों को भारतवर्ष के अतीत को समझने की आवश्यकता है। आज की शिक्षा व्यवस्था में मात्र प्रमाणपत्र.डिग्री और डिप्लोमा पाने की आवश्यकता नहीं है अपितु उन्हें बहुत कुछ अच्छे संस्कार के रुप में अपनाने की आवश्यकता है।

जैसेःअगर एक बालक मैट्रिक परीक्षा पास करता है तो उसे अच्छे संस्कार के रुप में अपनी साफ-सफाई,अपने घर,आस-पडोस,कक्षा तथा अपने परिवेश की सफाई के साथ-साथ आत्मरक्षा के संस्कार में भी उत्तीर्ण होना पडेगा,समाज और देशसेवा के संस्कार में भी पास होना पडेगा।अपने घर में आवश्यकतानुसार अल्पाहार आदि बनाने का संस्कार उसे सिखना होगा।उच्च शिक्षा की डिग्री तथा तकनीकी डिग्री धारकों को अतिथिसेवा,विवाह आदि सामाजिक उत्सवों पर आगत मेहमानों की सेवा हेतु उसे संस्कारी बनना होगा।भारत के शाश्वत शक्तिबोध और सौंदर्यबोध जैसे संस्कारों को सिखने की आवश्यकता है।इसप्रकार संस्कार और संस्कृति की शिक्षा ही भारत को विकासशील से विकसित बना सकती है।

इसीलिए सच ही कहा गया है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।अगर संस्कार और संस्कृति की व्यावहारिकता की बात करें तो निश्चित रुप से भारत के समस्त बालक,युवा,पुरुष-स्त्री और वृद्ध को भारतीयता को समझना होगा जो अवलंबित है बहुआयामी संस्कार और संस्कृति पर।   आज भारतवर्ष अच्छे संस्कार को अच्छी संस्कृति के बदौलत ही विश्व का आध्यात्मिक गुरु और योगगुरु बना हुआ है। आज इन्हीं अच्छाइयों के बदौलत भारत जी20 का नेतृत्व कर रहा है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा की संस्कृति से लेकर विविध विषयों पर नियमित लेखन करते हैं) 

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