नई दिल्लीः गूगल ने आज (26 दिसंबर) देश के प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आम्टे को अपना डूडल समर्पित किया है. समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिए अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना करने वाले बाबा आम्टे का आज जन्मदिन है. गूगल ने आज के अपने डूडल में बाबा आम्टे की तस्वीरों की स्लाइड बनाई है, जिसमें बाबा आम्टे द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों की झांकी दिख रही है. जैसे-जैसे आप स्लाइड को आगे बढ़ाएंगे तस्वीरों में बाबा आम्टे कुष्ट रोगियों की सेवा करते और कई आंदोलनों की अगुवाई करते दिखाई देते हैं.
बाबा आम्टे का असली नाम डॉ.मुरलीधर देवीदास आम्टे है. उनका जन्म 26 दिसंबर1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था. बाबा आम्टे ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. 9 फ़रवरी 2008 को बाबा का 94 साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया. बाबा आम्टे द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों में कुष्ट रोगियों की सेवा के अलावा वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन रहे हैं.
शाही रहा था बाबा आम्टे का बचपन
बाबा आम्टे के पिता देवीदास हरबाजी आम्टे सरकारी नौकरी में लेखपाल पद पर थे. बरोड़ा से पांच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी.उनकी चार बहनें और एक भाई था. जिन युवाओं ने बाबा को कुटिया में सदा लेटे हुए ही देखा- शायद ही कभी अंदाज लगा पाए होंगे कि यह शख्स जब खड़ा रहा करता था तब क्या कहर ढाता था. अपनी युवावस्था में धनी जमींदार का यह बेटा तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था. अंग्रेजी फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएं इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी.बाबा आम्टे ने एमए और एलएलबी तक की पढ़ाई की. उनकी पढ़ाई क्रिश्चियन मिशन स्कूल नागपुर में हुई और फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई की और कई दिनों तक वकालत भी की.
कैसे मिली प्रेरणा
एक दिन बाबा आम्टे ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भींगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था. उन्होंने सोचा कि अगर अगर इसकी जगह मैं होता तो क्या होता? उन्होंने तत्क्षण बाबा उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए. इसके बाद बाबा आम्टे ने कुष्ठ रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया. वरोडा (जि. चंद्रपूर, महाराष्ट्र) पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ आनंदवन की स्थापना की. यही आनंदवन आज बाबा आम्टे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है.
मिट्टी की सौंधी महक से आत्मीय रिश्ता रखने वाले बाबा आम्टे ने चंद्रपुर जिले, महाराष्ट्र के वरोडा के निकट आनंदवन नामक अपने इस आश्रम को आधी सदी से अधिक समय तक विकास के विलक्षण प्रयोगों की कर्मभूमि बनाए रखा. जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की.
दुनियाभर में मिला सम्मान
समाज के लिए जिस तरह से बाबा आम्टे ने अथक प्रयास किए उसे देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साला 1971 में नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ दिया गया. साल 1986 में उन्हें पद्मभूषण भी दिया गया लेकिन इसे उन्होंने साल 1991 में वापस कर दिया था. पर्यावरण के लिए किए गए योगदान के लिए 1991 में ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान से नवाजा गया. इसके अलावा ह्यूमन राइट्स के लिए काम करने के लिए उन्हें ‘युनाइटेड नेसंश अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था. 1999 में उन्हें गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.