नई दिल्ली। हिंदी साहित्य के महान कथाकार, उपन्यास सम्राट और पिछड़े, दलित, शोषित, वंचित और खासतौर पर किसानों के संघर्ष को अपनी रचनाओं में जगह देने वाले लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर देश भर में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। यह प्रतियोगिता मुंबई स्थित संस्था ‘खोज’ भारत की विविधता संजोती शिक्षा, आयोजित की गई है। गौरतलब है कि हिंदी साहित्य के मैक्सम गोर्की कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद की इसी माह की 31 जुलाई को 135वीं जयंती है।
इस प्रतियोगिता में निबंध का विषय ‘प्रेमचंद की दृष्टि में राष्ट्रीयता’ रखा गया है। निबंध की शब्द सीमा तकरीबन 1500 शब्द होगी, जबकि भाषा हिंदी और लिपी देवनागरी होगी। निबंध स्वरचित और स्वलिखित होना चाहिए। इस निबंध प्रतियोगिता में कक्षा 7 से लेकर 9 तक के छात्र ही हिस्सा ले सकेंगे। हालांकि प्रेमचंद में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति प्रेमचंद की दृष्टि में राष्ट्रीयता विषय पर निबंध भेज सकता है। इनमें से चुने हुए निबंध भी प्रतियोगिता से बाहर वाले वर्ग में खोज द्वारा प्रकाशित किए जाएंगे।
छात्र-छात्राएं निबंध लिखने के लिए प्रेमचंद की कफ़न, ममता, ईदगाह, पूस की रात, दो बैलों की कथाएं सद्गति मन्त्र, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, मंदिर और मस्जिद बूढ़ी काकी, ठाकुर का कुआ बड़े घर की बेटी इत्यादि कहानियों को पढ़ सकता है, जिससे उसे निबंध लिखने में आसानी होगी।
प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए निबंध के पहले पृष्ठ पर अपना नाम एवं पता, कक्षा, स्कूल का नाम एवं पता;और हो सके तो फ़ोन नंबर ई-मेल इत्यादि लिखें। (जो प्रतियोगिता में भाग नहीं ले रहे, लेकिन स्वेच्छा से निबंध भेजना चाहते हैं, वे भी निबंध के प्रथम पृष्ठ पर अपना नाम, पता और ई-मेल और फ़ोन नंबर लिखना ना भूलें।
भेजे गए सभी निबंधों का चयन प्रख्यात् शिक्षाविदों और हिन्दी साहित्य के लेखकों द्वारा किया जाएगा। अपने हिन्दी निबंध बन्द लिफाफे में दस्ती, डाक या कुरियर द्वारा 31 जुलाई 2015 तक ‘खोज’ पोस्ट बॉक्स न० 28253ए जुहू पोस्ट ऑफिस जुहू मुंबई 400049 पर भेजें। निबंध ई-मेल द्वारा भी भेजे जा सकते हैं। निबंध को स्कैन करके उसकी जेपीजी या पीडीएफ फ़ाइल khojedu@gmail.com भेज सकते हैं।
गौरतलब है कि आज भी हिंदी साहित्य के सबसे बड़े और पढ़े जाने वाले लेखक मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं, खासकर कहानियों व उपन्यासों में भारत के वंचित, शोषित, दलित, पिछड़े और विशेष रूप से देश के गरीब किसानों के जीवन संघर्ष और त्रासदियों को सामने लाया है। उनका उपन्यास 'गोदान' देश के किसानी जीवन और उसके संघर्ष का सबसे मार्मिक और संवेदनशील महाआख्यान है। यह विडंबना ही है कि आजादी के पहले से ही प्रेमचंद जहां, देश के किसानों की व्यथा कथा, उनके जीवन संघर्ष को अपनी रचनाओं में जगह दे रहे थे, वहीं आज किसानों के हालात में सुधार की स्थिति यह है कि वह आत्महत्या को मजबूर है। निश्चित ही आज प्रेमचंद होते तो किसानों की स्थिति देखकर बेहद दुखी होते।