इस्लाम मजहब के अनुयायियों के लिए हलाल शब्द बहुत महत्वपूर्ण शब्द है। हलाल का आश्य यह बताया जाता है कि मुस्लिम मतावलंबियों के लिए जो वस्तु वैध है वह हलाल है और जो वैध नहीं है वह हराम है। ऐसा भी बताया जाता है कि प्रारम्भ में इस्लाम-कुरान में खाने की वस्तुओं, विशेष रूप से मांसाहार, के साथ हलाल शब्द को जोड़ा गया था अर्थात किन वस्तुओं (किस प्रकार के मांसाहार) का खाना हलाल है एवं किन वस्तुओं (किस प्रकार के मांसाहार) का खाना हराम है। परंतु, अब तो हलाल को दैनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के साथ जोड़ दिया गया है। जैसे हलाल मांस, हलाल फैशन एवं सौंदर्य के साधन, हलाल किराने का सामान, हलाल सब्जियां, हलाल वित्तीय सुविधाएं, हलाल ढाबे, आदि आदि।
कई इस्लामी देशों ने यह तय कर लिया है कि उनके नागरिक केवल हलाल प्रमाणित खाद्य पदार्थों एवं अन्य सुविधाओं का उपयोग करेंगे एवं इन देशों ने हलाल प्रमाणन को कानूनी रूप दे दिया है। कोई उत्पाद हलाल प्रमाणित है इसके लिए बाकायदा विशेष संस्थाओं का गठन किया गया है जो कि हलाल प्रमाणन का प्रमाण पत्र जारी करने में सक्षम है एवं उस प्रमाणन के आधार पर ही सम्बंधित उत्पाद बाजार में बेचा जा सकता है। इन मुस्लिम मजहब बहुल देशों में विदेशों से आयात किए जाने उत्पादों को भी हलाल प्रमाणन के लिए प्रमाण पत्र सबंधित संस्थानों से लेना आवश्यक होता है ताकि ये कम्पनियां अपने उत्पादों को इन इस्लामी देशों को निर्यात कर सकें। चूंकि पूरे विश्व में 50 से अधिक इस्लामी देश हैं, एवं मुस्लिम मजहब को मानने वाली बहुत बड़ी आबादी इन देशों में निवास करती है अतः गैर इस्लामी देशों की कम्पनियों को भी हलाल प्रमाणित उत्पाद ही इन देशों को भेजने होते हैं।
वैसे तो हलाल प्रमाणित वस्तुओं का चलन इस्लामी देशों में बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है। परंतु हाल ही के समय में इसका कार्य क्षेत्र बढ़ाकर इसे गैर इस्लामी देशों में भी तेजी से फैलाया गया है अर्थात मुस्लिम मजहब के मतावलंबियों को यह प्रेरणा दी जाती है कि वे केवल हलाल प्रमाणित वस्तुओं एवं सेवाओं का ही उपयोग करें। वर्ष 1945 में दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में मुस्लिम जुडीशियल कौंसिल हलाल ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। इसके बाद हलाल पंजीयन की शुरुआत थाईलैंड में वर्ष 1969 में हुई जो केवल कुवैत में मुर्गी पालन उद्योग से निर्मित पदार्थों के निर्यात तक सीमित था। एक सुनियोजित इस्लाम केंद्रित व्यापार की वास्तविक शुरुआत दक्षिण पूर्वी एशिया के एक देश मलेशिया से हुई थी।
वहां वर्ष 1974 में एक डिपार्टमेंट आफ इस्लामिक डेवलपमेंट मलेशिया की स्थापना की गई। यह विश्व का ऐसा पहला देश था, जिसने हलाल व्यापार को परिभाषित करने का एक कानून बना दिया। इस प्रक्रिया की गति इतनी तीव्र थी कि वर्ष 1980 तक मलेशिया को ग्लोबल हलाल हब बनाने के प्रयासों को आकार दिया जाने लगा था। वर्तमान में डिपार्टमेंट आफ इस्लामिक डेवलपमेंट मलेशिया का नेटवर्क लगभग 45 देशों में फैला हुआ है और कुल लगभग 78 हलाल पंजीयन संस्थाएं इससे जुड़ी हुई हैं। भारत की भी तीन प्रमुख संस्थाएं – हलाल इंडिया, जमियत उलेमा हलाल फाउंडेशन, जमियत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट इसके सदस्य रहे हैं। अब तो विश्व के लगभग सभी इस्लामी देशों एवं अन्य कई गैर इस्लामी देशों में भी हलाल प्रमाणन संस्थाओं का गठन किया जा चुका है।
हलाल प्रमाणन संस्थाएं हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के पूर्व एक मोटी रकम विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाली संस्थाओं से हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के एवज में लेती हैं। हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाली इन संस्थाओं की आय आज करोड़ों अमेरिकी डॉलर में हो गई है। दीनार स्टैंडर्ड, द कैपिटल आफ इस्लामिक इकॉनमी और सलाम गेटवे द्वारा प्रकाशित स्टेट आफ ग्लोबल इस्लामिक इकॉनमी रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, हलाल अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आय अब अरबों डॉलर में पहुंच गई है और अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों की आय इस प्रकार बताई गई है – हलाल ट्रैवल क्षेत्र – 17,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल फूड क्षेत्र – 130,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल वित्तीय क्षेत्र – 243,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल फैशन क्षेत्र – 27,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, हलाल फार्मा क्षेत्र – 8,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल कासमेटिक क्षेत्र – 6,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर। अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि हलाल प्रमाणित व्यापार यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा तो वर्ष 2023 तक हलाल अर्थव्यवस्था का अनुमानित व्यापार 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा, जो कि विश्व के कई विकसित देशों जैसे कनाडा, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, इटली, स्पेन, आदि के सकल घरेलू उत्पाद से भी कहीं अधिक होगा।
विश्व में चूंकि मुस्लिम मतावलंबियों की संख्या बहुत अधिक है अतः अब विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं को धर्म के आधार पर बेचे जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि मुस्लिम मतावलंबियों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं को मुस्लिम संस्थानों द्वारा ही निर्मित किया जा सके एवं अगर अन्य धर्मों को मानने वाले अनुयायियों द्वारा इन उत्पादों का निर्माण किया जाता है और यदि वे अपने उत्पादों को मुस्लिम मतावलंबियों के बीच बेचना चाहते हैं तो उनके लिए भी हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक हो जाए। इस प्रकार, विभिन्न उत्पाद निर्माण करने वाली कम्पनियों को अपने व्यापार का विस्तार करने के उद्देश्य से हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र लेना अब एक आवश्यकता बन चुका है।
भारत में तो कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा पतंजलि संस्थान द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक उत्पादों को मुस्लिम मजहब के अनुयायियों द्वारा उपयोग किए जाने को निरुत्साहित किया जाता है एवं केवल हलाल प्रमाणित वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग हेतु ही प्रेरणा दी जाती है। परंतु, वहीं चीन की कई कम्पनियां समस्त उत्पादों का हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्राप्त कर भारत में अपने उत्पाद बहुत ही आसानी बेचकर व्यापार कर रही है और चीन में मुस्लिम मतावलंबियों को समाप्त कर रही है अर्थात उनके चिन्ह जैसे मस्जिद, दाढ़ी, टोपी, आदि को समाप्त कर रही है। भारत में मुस्लिम मतावलंबी चीनी सामान को बढ़ावा दे रहे हैं और जो भारत मुस्लिमों को सबसे अधिक सुविधाएं देता है, उस सहिष्णु भारत के व्यापारियों का विरोध कर रहे हैं। आज पूरे विश्व में इस्लाम के सभी फिकरे केवल और केवल भारत में ही रहते हैं एवं ये सभी फिकरे भारत में एकदम सुरक्षित हैं वरना कई इस्लामी देशों में तो ये आपस में ही लढ़-भिढ़ रहे हैं।
विभिन आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्रों यथा, हलाल मांस, हलाल फैशन एवं सौंदर्य के अन्य साधन, हलाल किराने का सामान, हलाल सब्जियां, हलाल वित्तीय सुविधाएं, हलाल ढाबे, आदि में हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्रदान करने के पूर्व किस प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए इसे अब निर्धारित करने का समय आ गया है एवं इस सम्बंध में दिशा निर्देश जारी किये जाने चाहिए एवं यह दिशा निर्देश पूरे विश्व में हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाली संस्थाओं पर समान रूप से लागू किए जाने चाहिए। दरअसल, अब खाने पीने की वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए भी हलाल प्रमाणन संस्थाएं हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी कर रही है।
यदि खाने पीने की वस्तुओं के लिए हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र एक निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत जारी नहीं किए जाते हैं तो इन वस्तुओं का उपयोग करने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानी खड़ी हो सकती हैं एवं इनका जीवन ही खतरे में पड़ सकता है। दूसरे, हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाले संस्थानों की आय में बेतहाशा वृद्धि को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि विभिन्न देशों द्वारा स्थानीय स्तर एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आय का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है इस सम्बंध में भी नियम बनाए जाने चाहिए क्योंकि चीन में हलाल राशि इस्लाम को कुचलने के काम आती है, यूरोपीयन देशों में हलाल राशि वामपंथी-पूंजीपतियों के द्वारा वैश्विक षड्यंत्र के काम आती है और कुछ मुस्लिम देशों में हलाल की कुछ राशि
इस्लामिक जिहाद के लिए काम आती है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
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