Friday, November 22, 2024
spot_img
Homeश्रद्धांजलिहस्ती जी की हस्ती को याद किया कई हस्तियों ने

हस्ती जी की हस्ती को याद किया कई हस्तियों ने

14 जुलाई की चौपाल लोकप्रिय शायर हस्तीमल हस्ती जी की स्मृति में आयोजित की गई। तीन दिनों से बरसात की झड़ी लगी थी, फिर भी बड़ी संख्या में श्रोता आए। उन्हें आना ही था क्योंकि चौपाल की अनेक गोष्ठियों में हस्ती जी अपने अल्फाजों का जादू जगा चुके थे बल्कि एक पूरी चौपाल ही हस्ती जी तथा कुंवर बेचैन पर हुई थी उसे श्रोता भूले नहीं थे। अल्फ़ाज़ तो उस शाम भी उनके ही थे किंतु ‘वे’ नहीं थे।

कार्यक्रम के संचालन की बागडोर हस्ती जी के बेहद अज़ीज़ हूबनाथ जी ने संभाली जो स्वयं बड़ी उम्दा कविताएं लिखते हैं, किताबें लिखते हैं, मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहें हैं और अपने कार्यकाल के दौरान पर्यावरण के प्रति सचेत गुरुवर ने ‘कथनी और करनी एक सी’ का जबरदस्त उदाहरण पेश किया। यूनिवर्सिटी के कैंपास में 5000 वृक्षों को लगाकर हरा भरा जंगल उगा दिया।

अतुल तिवारी जी ने हस्ती जी के सुदर्शन व्यक्तित्व, ग्रेसफुल आवाज और उनके लेखन की गहनता का जिक्र करते हुए कहा- कि उन्हें बहुत करीब से जानने के बावजूद भी उनके अड्डे पर नहीं जा सका इसका मलाल हमेशा रहेगा ,यदि गया होता तो मैं थोड़ा और समृद्ध हो सकता था।

हूबनाथ जी संचालन करने के दौरान अपनी यादें साझा कर रहे थे । ‘बरकत विरानी’ की ग़ज़लों की किताब पढ़ने के उपरांत उन्होंने एकलव्य और अर्जुन की तरह सिर्फ ग़ज़लें लिखने का ध्येय बना लिया और उसमें सिद्धि हासिल करके छोड़ी। ललाट पर लगे चंदन के टीके को देखकर बोले कि -यह सब क्या है…चंदन मन पर लगाओ तन रंगने से क्या फायदा।

वे कोई धार्मिक चिन्ह अपने शरीर पर धारण नहीं करते थे, सूफिजम की तरफ उनका झुकाव ज्यादा था।

सुभाष काबरा ने कहा कि– सोने चांदी का यह व्यापारी कमबख्त सोने जैसा दिल लेकर कैसे पैदा हो गया। अट्ठाईस वर्षों तक काव्या का प्रकाशन करके और प्रतिष्ठित लेखकों के साथ नये अंकुरो को भी स्थान देकर साहित्य के संसार में उन्होंने अपनी विशेष जगह बना ली थी। सुभाष जी ने यह भी बताया कि मंच पर कविता का निमंत्रण आता तो सबसे पहले वह यह पूछते कि श्रोता कैसे होंगे। चुनींदा जगह ही जाया करते।
काबरा जी ने अपनी आकर्षक शैली में हस्ती जी के कुछ दोहे सुनाएं जैसे–
मजहब की इस मुल्क में इतनी बटी अफीम
आम्र कुंज भी हो रहे हैं धीरे-धीरे नीम

हमने तो हर काल में देखा यही विधान
राजा की रंगरेलियां प्रजा का भुगतान

रात दिवस बढ़ते रहे उन सबके खलिहान
जिन जिन की गहरी रही मुखिया से पहचान

अदालत में बाज है थानों में सैयाद
राहत पाए किस जगह पंछी की फरियाद

असकरण अटल हस्ती जी के बड़े पुराने व गहरे साथी रहे। उनका कहना था कि— हस्ती जी ऊपर से सख्त दिखते थे लेकिन उनका मन बड़ा संवेदनशील था। हमेशा चुपचाप अनेक लोगों की मदद करते रहे लेकिन कभी भूलकर भी उसका जिक्र नहीं किया। हम तो रोज अड्डे पर जाने वालों में से थे तो सब अपनी आंखों से देखते ही थे, तभी तो उन्होंने कहा—

दोस्ती में करम करना और हिसाब भी रखना
कारोबार होता है दोस्ती नहीं
अटल जी जब अमेरिका पहुंचे तो वहां ‘प्यार का पहला खत’ ग़ज़ल सुनकर तुरंत हस्ती जी को फोन करके बोले कि -आपकी ग़ज़ल तो हमसे भी पहले अमेरिका पहुंच चुकी है।
हस्तीमल जी के दोनों बेटे प्रमोद तथा कमलेश और पोती सुरभि भी आए थे। सुरभि ने सुमधुर कंठ से अपने दादा की प्रसिद्ध गज़ल ‘प्यार का पहला खत’ सुनाई।

पंडित विष्णु शर्मा ने हस्ती जी के मानवीय पक्ष का जिक्र करते हुए कहा कि वह व्यक्ति कभी किसी की निंदा नहीं करता था और कभी किसी से खुद संबंध नहीं तोड़ता था।

हूबनाथ जी ने एक शुभ सूचना दी की हस्तीमल जी की अट्ठाईस वर्षों से प्रकाशित होने वाली पत्रिका काव्या का रुका हुआ सिलसिला अगले ही महीने से फिर शुरू होने जा रहा है।
मंजुला जगतरामका, दीप्ति मिश्रा, रवि यादव, रास बिहारी पांडे, लता हया ने अपने संस्मरण सुनाए उसके बाद मंच पर कुलदीप जी आए। शर्मिष्ठा बसु, तेजस्विनी इंगले और अभिजीत घोषाल ने कविराज की लिखी ग़ज़लों के करिश्मे से प्रेक्षकों को अपनी हद में ले लिया।

जसविंदर सिंह ने वही बहुचर्चित ग़ज़ल ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है’ डूब कर गाई । बाद में कुछ दोहे भी सुनाएं। हैरत अंग्रेज यह था कि सिर्फ फोन तथा दो-तीन दिन की तैयारी से ही ये नई कंपोजिशन तैयार की गई थी और ऐसा सिर्फ कुलदीप सिंह जी और उनकी शिष्य मंडली ही कर सकते हैं इसे चौपाली बखूबी जानते हैं क्योंकि नई रचनाओं को छूकर पारस बनाने का उनका हुनर वे अक्सर चौपाल में देखते रहते हैं। साजिंदों की संगत भी खूब रही। शमशेर भाई तथा सुप्रीत गायकवाड़ ने गायकों का भरपूर साथ निभाया।

अतुल जी ने सही कहा कि हस्ती जी के जाने का शोक मनाने का नहीं उत्सव मनाने का समय है। वे अपनी लिखी बेशुमार रचनाओं में अमर हो गए हैं। अंत में हस्ती जी के पुत्र प्रमोद जी ने आभार व्यापित किया।

(लेखिका चौपाल से जुड़ी हैं और स्वांतः सुखाय लेखन करती हैं। आपकी लोक साहित्य पर तीन पुस्तकें, एक काव्य संग्रह, एक कथा संग्रह तथा साक्षात्कारों पर दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।)

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार