राजनांदगांव। भारत सरकार के विशेष मंत्रालय द्वारा भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में संस्कारधानी के ख्याति प्राप्त वक्ता और शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने सजग और सक्रिय प्रतिनिधित्व किया। डॉ.जैन ने तीन दिवसीय सम्मेलन के केन्द्रीय विषय हिन्दी जगत – विस्तार और संभावनाएं के उद्देश्य के अनुरूप संचालित सत्रों में अपने प्रभावशाली उद्गार व्यक्त कर उपयोगी सुझाव भी दिए, जिन्हें सम्मलेन के अंतिम प्रतिवेदन में स्थान भी दिया गया। उल्लेखनीय है कि यह अभूतपूर्व अवसर था कि राजनांदगांव जिले से विश्व हिन्दी सम्मेलन में ऎसी भागीदारी सुनिश्चित हुई। इस दृष्टि से डॉ.जैन ने दिग्विजय महाविद्यालय के गौरववर्धन के साथ-साथ राजनांदगांव जिले और छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया। स्मरण रहे कि भारत में पहला विश्व हिन्दीसम्मेलन 1975 में नागपुर में, 1983 में नई दिल्ली में और उसके बत्तीस साल बाद यह सम्मेलन भोपाल में संपन्न हुआ।
भोपाल के लाल परेड मैदान में हुए लगभग चालीस देशों की सहभागिता वाले इस अति भव्य,ऐतिहासिक व अविस्मरणीय हिन्दी विश्व महाकुम्भ का उदघाटन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि भारत के गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह थे। अनेक सम्मानित व्यक्तित्वों के साथ-साथ आयोजन के संरक्षक व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ थे।
हिन्दी को व्यावहारिक धरातल पर विश्वव्यापी बनाने व नए युग और तकनीकी के अनुरूप उसकी प्रगति के मार्ग निर्धारित करने पर सभी अतिथि वक्ताओं और विद्वानों ने गहन मंथन किया।
विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कुल निर्धारित बारह उप विषयों में प्रशासन में हिन्दी, बाल साहित्य में हिन्दी तथा विदेशों में हिन्दी शिक्षण जैसे तीन महत्वपूर्ण उप विषयों पर अपने विचार साझा किए। इनमें से पहले सत्र की अध्यक्षता मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने की। सत्र का संचालन प्रख्यात साहित्यकार डॉ.हरीश नवल ने किया। इस सत्र में डॉ.जैन ने सुझाव दिया कि प्रशासन में हिन्दी का त्वरित, स्वतःस्फूर्त और लगनशील प्रयोग करने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को हर वर्ष राष्ट्रीय पर्वों पर सम्मानित किया जाए, सतत प्रत्साहन दिया जाए । साथ ही हिन्दी सेवा के लिए उन्हें पदोन्नति में प्राथमिकता भी दी जाए। इस प्रस्ताव का स्वागत किया गया।
सम्मेलन में ‘बाल साहित्य में हिन्दी’ विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता बच्चों की अत्यंत लोकप्रिय पत्रिका ‘चंदा मामा’ के पूर्व संपादक और जाने-माने लेखक श्री बाल शौरि रेड्डी ने की। इसमें डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि बदलते समय की मांग को ध्यान में रखकर बाल साहित्य लेखकों को अपने लेखन को चित्रात्मक बनाना होगा। तभी उसका जीवन बचा रह सकता है। डॉ.जैन ने विदेश में हिन्दी शिक्षण – समस्याएं और समाधान विषय पर आयोजित सत्र में सुझाव दिया कि विदेशों में हिन्दी शिक्षकों के निरंतर प्रशिक्षण के अलावा भारत के कुशल हिन्दी शिक्षकों व प्रचारकों को समय-समय पर सम्बंधित देशों में भेजा जाये। उनके विचारों पर गौर किया गया। इस सत्र के अध्यक्ष प्रसिद्द लेखक डॉ.जनमेजय थे। संयोजक सांस्कृतिक परिषद के महानिदेशका श्री सतीश मेहता थे। गौरतलब है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन के लिए डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने हिन्दी पत्रकारिता की भाषा पर अपना आलेख भी प्रविष्ट किया। दिग्विजय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह, हिन्दी विभागध्यक्ष श्रीमती चन्द्रज्योति श्रीवस्तव सहित समस्त महाविद्यालय परिवार, गणमान्य जन और सुधी हिन्दी सेवकों ने इस विशिष्ट गौरवशाली सहभागिता के लिए डॉ.चन्द्रकुमार जैन को बधाई दी है।
डॉ.जैन ने बताया कि सम्मेलन में देश-विदेश के साहित्यकारों के नाम पर आकर्षक व संदेशवाहक सभागार बनाये गए थे। इनके अतिरिक्त विविध विषयों पर प्रदर्शनी, पुस्तकों, पांडुलिपियों के स्टॉल, सूचना तकनीक की महाक्रांति में हिन्दी की दस्तक का परिचय देती प्रख्यात कंपनियों की प्रस्तुति, विशाल आयोजन दीर्धा में सैकड़ों हिन्दी भाषा सेवकों की चित्रावली, एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी की भव्य प्रतिमा, हिन्दी की अमर ज्योति, मुख्य सभागार के बाहर हिन्दी की असंख्य किताबों के आवरणों के कलात्मक प्रदर्शन सहित सम्मेलन स्थल की नयनाभिराम सज्जा और उत्कृष्ट व्यवस्था ने विश्व हिंदी सम्मेलन को जीवंत बना दिया।