एक समय राजस्थान बीजेपी के कट्टर नेता रहे महावीर भगोरा का निधन 16 जनवरी को कोरोना की चपेट में आने से हो गया, जिसके बाद भगोरा के पैतृक गांव बदला उदयपुर में ईसाई रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया।
“ईसाई रीति रिवाज से” यह सुनकर आप चौक गए होंगे। परन्तु महावीर भगोरा के ईसाई रीतिरिवाजों के सेहत अंतिम संस्कार किये जाने पर हमने उनके पुत्र से संपर्क साधा जिन्होंने हमें इसका उत्तर दिया।
आशीष ने बताया कि उनके पिता ने बहुत पहले ही हिंदू धर्म त्यागकर ईसाई धर्म अपना लिया था, जिसके कारण उनका अंतिम संस्कार ईसाई पद्धति से किया गया है। जिसके बाद हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी व आर एस एस में बहस छिड़ गई है।
आपको बता दें कि महावीर भगोरा दैनिक जीवन में तो ईसाई थे लेकिन आंकड़ों में हिंदू बनकर अनुसूचित जनजाति को दिए गए आरक्षण का लाभ ले रहे थे। वह मीणा जाति के प्रमाणपत्र पर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ लोक सभा पहुंचे थे।
राजनीति से पहले महावीर समाज विभाग में उप निदेशक पद पर भी रहे थे तथा उसके बाद उन्होंने तत्कालीन सलूंबर लोकसभा सीट से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर सांसद का चुनाव लड़ा था। लेकिन पराजय हाथ लगी। इसके बाद उनका भाग्य चमका और 1993 में गोगुंदा से आरक्षित सीट पर चुनाव लड़कर विधायक बने और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत की सरकार में मंत्री बने थे।
ज्ञात हो इससे पहले भी महावीर भगोरा “वोट के बदले नोट” कांड को लेकर भी चर्चा में आए थे। 22 July 2008 को लोकसभा सत्र में जब 1 करोड़ रुपए उड़ाए गए थे तो उनमें तत्कालीन बीजेपी सांसद भगोरा भी शामिल थे। जिसके बाद पार्टी ने महावीर से किनारा कर लिया था।
बीजेपी और आर एस एस दोनों ही हिंदूवादी राजनीति के लिए जाने जाते हैं तब उन्हीं के नेता द्वारा धर्म परिवर्तन किया जाना और दलितों के व आदिवासियों के अधिकारों का गलत तरीके से इस्तेमाल करने के कारण दोनों ही संगठनों ने इससे किनारा कर लिया है।
गौरतलब है कि महावीर भगोरा से लेकर आईएएस टीना डाबी तक ऐसे बहुत से उदाहरण है जो कि हिंदू ना होने के बाद भी हिंदू जातियों को मिलने वाले अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। खैर मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार बौद्ध या अन्य धर्म अपना चुके दलितों को आरक्षण का फायदा नहीं दिया जा सकता है।
साभार- से https://falanadikhana.com/