500 साल के विदेशी शासन की कालरात्रि कैसे समाप्त हुई? कैसे हमारे पूर्वजों ने बलिदान से दासता की जंजीर काटी। कैसे हिन्दवी स्वराज्य का सपना शुरू हुआ?
छत्रपति शिवाजी का वह अप्रतिम शौर्य जिसने केसरिया फहराया जानने के लिए पढ़िए-
हिन्दू पदपादशाही (लेखक वीर सावरकर)
छत्रपति शिवाजी (लेखक लाला लाजपतराय)
हिन्दू पदपादशाही पुस्तक का एक अंश
‘धर्म के लिए प्राण देने चाहिए। शत्रुओं का संहार कर प्राण तजने चाहिए। संहार करते हुए अपना राज्य हासिल करना चाहिए।’
– समर्थ गुरु रामदास स्वामी ”
शिवाजी महाराज ने शालिवाहन संवत् १५६७ (ई.स. १६४५) में अपने एक साथी के पास भेजे हुए पत्र में लिखा है – “आचार्य दादाजी कोंडदेव और अपने साथियों के साथ सह्याद्रि पर्वत के शृंग पर ईश्वर को साक्षी मानकर लक्ष्य प्राप्ति तक लड़ाई जारी रखने और हिंदुस्थान में ‘हिंदवी स्वराज्य’ – हिंदू- पदपादशाही – स्थापित करने की क्या आपने शपथ नहीं ली थी ? स्वयं ईश्वर ने हमें यह यश प्रदान किया है और हिंदवी स्वराज्य के निर्माण के रूप में वह हमारी मनीषा पूरी करनेवाला है। स्वयं भगवान् के ही मन में है कि यह राज्य प्रस्थापित हो ।”
शिवाजी महाराज की कलम से उतरे ‘हिंदवी स्वराज ‘ – इस शब्द मात्र से एक शताब्दी से भी अधिक समय तक जिस बेचैनी से महाराष्ट्र का जीवन तथा कर्तव्य निर्देशित हुआ और उसका आत्मस्वरूप जिस तरह से प्रकट हुआ, वैसा किसी अन्य से संभव नहीं था। मराठों की लड़ाई आरंभ से ही वैयक्तिक या विशिष्ट वर्ग की सीमित लड़ाई नहीं थी। हिंदूधर्म की रक्षा हेतु, विदेशी मुसलिम सत्ता का नामोनिशान मिटाने के लिए तथा स्वतंत्र और समर्थ हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने के लिए लड़ी गई वह संपूर्ण लड़ाई हिंदू लड़ाई थी ।
इस देशभक्ति के उत्साह से न केवल मराठा नेतृत्व प्रेरित हुआ था, बल्कि न्यूनाधिक रूप में उनके राज्य और सेना में शामिल सभी लोग उसी उत्साह से भर उठे थे। जिस देशभक्ति की भावना से शिवाजी महाराज के सभी प्रयत्न संचालित हुए थे, उसकी अनुभूति उन्हीं के समान सारी जनता को भी हुई थी । ‘अखिल हिंदूजाति के
संरक्षक’ के रूप में उन्हें हर जगह हाथोहाथ लिया जा रहा था।
लेकिन समस्त हिंदुओं—न केवल महाराष्ट्र, बल्कि समूचे दक्षिण के और संभवतः उत्तर भारतीय हिंदुओं को भी शिवाजी महाराज अपने सर्वश्रेष्ठ पक्षपोषक लगते थे। वे उन्हें अपने देश और जाति को राजनीतिक स्वतंत्रता दिलानेवाले ईश्वर नियुक्त वीर पुरुष मानते थे।
शिवाजी महाराज, श्रीरामदास और उस समय की मराठा पीढ़ी ने जो कार्य किया, संदेश दिया और उसके प्रति सभी प्रांतों के हिंदुओं ने जैसा आदरभाव व्यक्ति किया, उसके उदात्त वर्णन से उस जमाने का इतिहास, आख्यायिका और वाङ्मय भरा पड़ा है। अनेक नगर और प्रांत अपनी मुक्ति के लिए शिवाजी महाराज के मराठों को जरूरी बुलावा भेजकर आशा से प्रतीक्षा करते थे और मराठों द्वारा केसरिया ध्वज लहराते देखकर खुशी से नाचने लगते थे।
इस बात की पुष्टि के लिए केवल एक पत्र उद्धृत करना काफी है, जो सावनूर प्रांत के हिंदुओं ने शिवाजी महाराज के पास लिखा था- “यह यूसुफ बहुत अत्याचारी है। स्त्रियों पर और बाल – बच्चों पर अत्याचार करता है। गोवधादि निंद्य कार्य करता है। उसके अधीन हम परेशान हो गए हैं। आप हिंदूधर्म के संस्थापक और म्लेच्छों का संहार करनेवाले हैं। इसलिए हम आपके पास आए । आपसे गुहार लगाने के कारण हम बंधक बना लिये गए । हमारे द्वार पर पहरे लगाए गए हैं ! अन्न-जल रोककर हमारे प्राण लेने के लिए यह यूसुफ उतावला है। इसलिए आप अविलंब आइए।”
कहने की जरूरत नहीं कि महाराष्ट्र के बाहरी प्रांतों के हिंदुओं के इस अनुनय की उपेक्षा शिवाजी महाराज ने नहीं की। प्रसिद्ध मराठा सेनापति हंबीरराव तुरंत वहाँ पहुँचे। उन्होंने बीजापुर के सैनिकों को कई स्थानों पर बुरी तरह पराजित करके मुसलमानों के पाश से हिंदुओं को मुक्त कराया और उस प्रांत से उनकी सत्ता उखाड़ फेंकी |
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