Friday, November 22, 2024
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हिन्दुओं पर मीडिया के आक्रमण और षड़यंत्र की गाथा

सीताराम गोयल लिखते हैं, “भारत अंग्रेजों और मुसलमानों से बच गया यह आश्चर्य का विषय नहीं है, वह साम्यवादी आक्रमण से बच गया यह हमारे देश का सौभाग्य और संसार की सबसे आश्चर्यजनक घटना है।”

सीताराम गोयल जैसे महान विद्वान के इस मूल्यांकन के पीछे उनका अनुभव है। वे स्वयं इस आक्रमण का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने कई जगह इस भयानक आक्रमण की चर्चा की है। यह इतना सुनियोजित, इतना शातिर और इतना शक्तिशाली था कि आज भी हम उसके थपेड़ों को झेलते हैं।।

100 साल के इस आक्रमण ने हिन्दुओं को सर्वथा बेहोश, विवेकशून्य और हीनभावना से ग्रस्त बना दिया।

एक उदाहरण:
विश्वनाथ 1917 में जन्मा और 1939 में उसने दिल्ली प्रेस क्लब की स्थापना की। दुर्भाग्य से इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। आजकल इसके बेटे बेटियां (नाथ परिवार) संभालते हैं। वह एक घनघोर हिन्दू द्रोही, खांटी कम्युनिस्ट व्यक्ति था जो निरन्तर हिन्दू धर्म के खिलाफ लिखता रहा।

क्या यह बिना रूसी सहयोग के सम्भव था? उनकी एक दर्जन से अधिक पत्र पत्रिकाएं निकलती है।

चंपक, सरस सलिल, मुक्ता, सरिता, कारवाँ…. इत्यादि। किसी समय पूरी हिंदी पट्टी की कुल पत्रिकाओं का 60 प्रतिशत विज्ञापन राजस्व इन्हें मिलता था। आज का प्रत्येक 40प्लस व्यक्ति कभी न कभी इसका पाठक रहा है।

इसकी पत्रिकाओं में कुछ स्थायी स्तम्भ होते थे जैसे “ऐसी कैसी परम्परा” में हिंदुओं की उन परम्पराओं का मजाक उड़ाया जाता था जो उनमें प्रचलित थी। कुछ पाठक उन्हें पत्र लिखकर बताते थे और वह छप जाता था। ज्यादातर महिलाएं होती थी। जैसे शादी में सास द्वारा दूल्हे की नाक खींचने का या विदाई के समय रोने का अथवा कोई व्रत उपवास कथा इत्यादि का।

यह सब इतने मनोरंजक तरीके से लिखा जाता था कि और कुछ पढ़े न पढ़े, इसे अवश्य पढ़ा जाता था। तुलसीदास को पथभ्रष्टक दिखाने के आलेख लगभग हरेक पत्रिका में होते थे। इस विषय पर मुकदमा भी चला था।

प्रत्येक अंक में एक कहानी ऐसी अवश्य होती थी जिसमें कोई साधु या तांत्रिक बलात्कार करता था। इस घटना को काफी रस लेकर लिखा जाता था जैसे — साधु की उंगलियां बहू के नङ्गे जिस्म पर रेंग रही थी…. एक स्टोरी या अनुभव ढोंगी पंडित को समर्पित रहता था। ज्योतिषी पर अनंत कहानियां होती थी। सूदखोर लाला भी इन्हीं का कॉन्सेप्ट था। दलित की नव ब्याहता को सुहागरात से पहले ठाकुर अपनी हवेली ले जाता है, मन्दिर का पुजारी देवदासी रखता है, दान के पैसे से मौज मस्ती और कुंए से पानी न भरने देना, खेत में बेगार मजदूरी करवाना, स्कूल में अलग मटकी, दलित को घोड़ी पर न बिठाना इत्यादि इनकी कहानियों की विषयवस्तु रहते थे।

युवाओं को सॉफ्ट पोर्न और अधनंगी तस्वीरे दिखाई जाती। हाई स्कूल के बच्चे इनकी किताबो से ऐसे फोटू काटकर अपनी किताबों में छिपाकर रखते। हस्तमैथून पर इनकी मेडिकल एडवाइजरी होती। हरेक पर्व त्यौहार पर उपदेश और मजाक उड़ाने का सिलसिला इसी ने आरम्भ किया था। इतना सब होने के बावजूद कभी भी exmuslim जो मुद्दे उठाते हैं उनका कोई जिक्र नहीं होता। कभी भी कांग्रेस के किसी घोटाले या परिवारवाद पर कहानी न लिखी।

अब्दुल अच्छा और रहीम चाचा का बलिदान भी इन्हीं की बनाई परम्परा है। सास बहू सीरियल और परिवार विघटन के एकता कपूर सीरियल के बीज इन्हीं पत्रिकाओं में बोए गये थे। इनका व्याप्त और बौद्धिक दबदबा इतना था कि हर रेलवे, बस स्टैंड इनके साहित्य से अटा पड़ा रहता। लोग टाइमपास के लिए इसे पढ़ते और आगे शेयर करते।

इन्हीं के कथन को फिल्मों द्वारा, कवियों द्वारा, पाठ्यक्रम द्वारा पुष्ट किया जाता। एक एक विषय पर परिचर्चा होती। अमेरिका और रूस प्रयोजित एनजीओ लगातार इस पर सेमिनार करवाते। आज के रवीश, बरखा, ध्रुव राठी, अपूर्वानंद, केजरीवाल, ये सब उसी की उपज हैं और आज भी वहीं से कंटेंट लेते हैं।

इनकी पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से 5 से 85 वर्ष के प्रति सप्ताह करोडों हिन्दू निरन्तर एन्टीहिन्दूडोज ले रहे होते। लगभग 75 वर्ष तक यह सिलसिला चला। जब इंटरनेट और सोशल मीडिया आया, इन्होंने सोचा अब इनके कार्य को गति मिलेगी। करोड़ों साधनों से हिन्दुओं पर एंटीहिन्दू की अग्निवर्षा की जाएगी।

ऐसा हुआ भी। 2010 तक ये जीत रहे थे। निराशा की भयंकर व्याप्ति हो गई थी। लेकिन सत्य तो सत्य ही होता है। 2012 कि बाद, बहुत थोड़ी संख्या में, बहुत अल्प साधनों से, अपने अनगढ़ कॉन्टेंट के साथ कुछ लोग आगे आये औऱ आज देखते देखते इनमें से कई तोपों को फुस्स कर दिया और ज्यादातर खदेड़ दिए गए।

मैंने यहाँ केवल एक मीडिया घराने के बारे में बताया है। ऐसे हजारों हमले हुए और चल रहे हैं। जब सीताराम गोयल यह कहते हैं कि ये सबसे बड़ा हमला था तो सच में यह भयावह था। आप इसका पूरा ताना बाना जानेंगे तो भारतभूमि और हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा और बढ़ जाएगी। साथ ही यह भी समझ पाओगे कि आरएसएस ने कितनी प्रतिकूलताओं में अपने विचार को न केवल सुरक्षित रखा, उसे स्थापित भी किया।

एक निवेदन

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