लीना मणिमेकलाई को जो नहीं भी जानते थे वह भी इनसे परिचित हो गए। लेकिन इन्हें पता चल गया है कि अब यह भारत पहले वाला नहीं है, बदल चुका है।
इनकी डॉक्यूमेंट्री काली का आज टोरंटो विश्वविद्यालय में #प्रदर्शन_नहीं_हो_सका।
भारतीय उच्चायोग ने कनाडा सरकार से अपना विरोध दर्ज कराया और सारी तैयारी धरी की धरी रह गई।
आगे का नहीं मालूम लेकिन भारत का विरोध इतना तगड़ा है कि आसानी से वहां भी प्रदर्शन कराना संभव नहीं होगा। भारत में तो खैर अब शायद ही कोई इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने का साहस करे।
जो करेगा उसे हिंदू समाज के कोप का शिकार होना पड़ेगा। या तो फिल्म चलने नहीं दी जाएगी या कहीं चली भी तो दर्शक नहीं मिलेंगे।
लीना माणिमेकलई की समस्या का अंत यही नहीं होने वाला। अलग-अलग राज्यों में उनके विरुद्ध केस दर्ज हो गए हैं और उन्हें उनका सामना इसलिए करना पड़ेगा क्योंकि आज भी उनके पास भारतीय पासपोर्ट ही है।
दूसरे, ऐसे स्वयं को लिबरल ,वामपंथी, प्रगतिशील बताने वाले फिल्म फिल्म निर्माताओं के सामने भी यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि आगे कैसी फिल्में बनाई जाए।
सबको अंदाजा हो गया है कि हमने पहले की तरह हिंदू धर्म , संस्कृति, देवी-देवताओं ,महापुरुषों, धार्मिक प्रतीकों , धार्मिक विधाओं आदि को अपमानित या लांछित किया या फिर उसका उपहास उड़ाया तो हमारे लिए कठिनाइयां बढ़ जाएंगी।
एक फिल्म निर्माता के रूप में हमारा अस्तित्व संकट में आ जाएगा। इसलिए आगे से ऐसे निर्माता भी इस तरह की फिल्में बनाने से बचेंगे।
एक समय था जब हिंदू समाज अपने देवी-देवताओं, महापुरुषों पर त्योहारों, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धार्मिक प्रतीक चिन्हों आदि के अपमान का उपहास उड़ाए जाने पर संवेदनशील नहीं था।
अब वह स्थिति बदली है तो इसका असर होना निश्चित है। आने वाले समय में धीरे धीरे ऐसी फिल्में आएंगी जो सच को सच दिखाएंगी और उसके लिए उन्हें रिसर्च करना पड़ेगा
फेसबुक पर अवधेश कुमार जी की पोस्ट