देश में राष्ट्रभक्ति का संचार करने वाली 26 जनवरी, 15 अगस्त व 2 अक्टूबर आदि दिनांकों पर प्रायः ये ‘राष्ट्रीय पर्व’ सभी स्थानों पर अति उल्लास व उमंग के साथ मनाये जाते है। इन विशेष दिनांको पर बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक में देशभक्ति की भावनायें तरंगित हो उठती है।स्कूल, कालेज, सरकारी, व्यक्तिगत, समाजिक व राजनैतिक संगठनों के कार्यालयों में भी प्रायः इन दिनों कोई न कोई आयोजन होने की परम्परा चली आ रही है।जगह जगह देशभक्ति पूर्ण गीत व कविताओं के स्वर वीर रस का सुखद आंनद देते है।सारा वायुमण्डल ”भारतमय” हो जाता है।
परंतु यह कैसी हमारी विडंबना है कि यह सुखद अनुभूति उन दिनों के अतिरिक्त कभी कही देखने को नहीं मिलती, हां अपवादस्वरुप “चुनावो” के समय देशभक्तिपूर्ण गीतों का प्रसारण करके राजनीतिज्ञ देश की भावुक जनता को बहला कर भटकाने का कार्य अवश्य करते आ रहें है।वैसे सामान्यतः समाज में “राष्ट्रभक्ति” के भाव का अभाव ही होता जा रहा है। क्योकि उनके लिए समाज, धर्म व देश के प्रति चिंता व चिन्तन की चर्चायें अटपटी, स्तरहीन व कुंठित करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
जब तक विद्यालयों में भारत की शस्य श्यामला भूमि की विशेषता, देश का गौरवपूर्ण इतिहास व अमर बलिदानियों की प्रेरणादायी गाथाओं का विस्तृत वर्णन छात्र-छात्राओं के कोमल मन-मस्तिष्क पर उकेरा नहीं जाएगा तब तक वे किससे और क्यों ‘प्रेम’ करें ?
यह एक ऐसा प्रश्न है जो विवादित हो सकता है, पर आज यही सत्य है कि अधिकांश युवापीढ़ी को ‘देशप्रेम’ व ‘राष्ट्रभक्ति’ का न तो कोई ज्ञान है तथा न ही उससे कोई सरोकार। वे सामान्यतः सुखद व विलासितापूर्ण जीवन को ही एकमात्र लक्ष्य मानकर आधुनिकता की चकाचौंध से बाहर निकलना ही नहीं चाहते।भौतिकवाद की आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति में जीने वाला समाज उन पश्चिमी देशो के नागरिको के समान अपने राष्ट्र से प्रेम करना कब समझेगा ? ‘यह राष्ट्र मेरा है ये मुझे सब कुछ देता है तो में अपने महान पूर्वजो के समान मातृभूमि के लिए क्यों नहीं कुछ अच्छा करु’ ऐसा विचार जब नहीं आयेगा तब तक अपने ‘देश से प्रेम’ करो का भाव कैसे आयेगा?
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विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद